गिरीश पांडेय |
चुनावी नतीजों के साथ ही देश के सबसे बड़े और राजनैतिक रूप से बेहद संवेदनशील उत्तर प्रदेश की तस्वीर साफ हो गई। तमाम अटकलों को धता बताते हुए भाजपा के पक्ष में जो नतीजे आए हैं उनसे साबित होता है कि भाजपा के पक्ष में एक अंडर करेंट था। इसकी वजह अगर मोदी हैं तो मुमकिन का नारा रहा है तो योगी हैं तो यकीन वाले स्लोगन पर भी लोंगों ने मुकम्मल यकीन जताया।
रही सही कसर सपा की जातीय गोलबंदी, सत्ता की मलाई खाने के बाद पिछड़ों की अनदेखी का आरोप लगाने वाले पिछड़ों के कथित और बड़बोले नेता ओमप्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी आदि ने पूरी कर दी। सपा के नकारात्मक प्रचार की भी इसमें बड़ी भूमिका रही।
बार-बार अपने बयानों के जरिए योगी आदित्यनाथ को मठ भेजने वाले यह भूल गए कि योगी ने राजधर्म के लिए सिर्फ मठ छोड़ा था, संस्कार नहीं। इन्हीं संस्कारों के नाते जनता ने उनको सिरमौर बनाया। उसने देखा कि सबसे बड़े प्रदेश का मुख्यमंत्री होते हुए भी वह संत की तरह पद से निर्लिप्त रहे।
प्रदेश की 25 करोड़ जनता को अपना परिवार माना। पूरे पांच साल तक एक मुखिया की तरह हर सुख-दुख में उनके साथ और उनके बीच दिखे। सब कुछ लीलने को आतुर बाढ़ हो या हाड़ कंपाने वाली ठंड। योगी कभी बाढ़ पीड़ितों के बीच दिखे तो कभी रैन बसेरों का दौरा करते। यहां तक कि वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान जब पूरा विपक्ष जनता के बीच से गायब था तब भी खुद की सेहत की परवाह किए बिना वह कोरोना के संक्रमण से मुक्त होते ही ग्राउंड जीरो पर थे।
खुद को परिवार का एक काबिल और बेतरीन मुखिया साबित करने के साथ सुशासन पर भी उनका बराबर का जोर रहा। लोगों ने देखा कि पहली बार प्रदेश को एक ऐसा मुख्यमंत्री मिला है जो सिर्फ और सिर्फ प्रदेश और यहां के लोंगों की बेहतरी के बाबत सोच रहा है। न सिर्फ सोचा बल्कि उस सोच को जमीन पर उतारने के लिए दिन-रात एक कर दिया।
दो साल कोरोना की चुनौतियों से जूझने के बावजूद दशकों से लंबित बाणसागर, अर्जुन सहायक नहर, सरयू नहर परियोजना, गोरखपुर का खाद कारखाना, एम्स, पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, पिपराईच और मुंडेरवा की अत्याधुनिक चीनी मिलें, कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट जैसे तमाम काम किसी कमाल से कम नहीं हैं।
योगी शासन में उपलब्धियों की फेहरिस्त आकाशगामी है। एशिया का सबसे बड़ा जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट, दुनिया की सबसे बेहतरीन फ़िल्म सिटी, अयोध्या का कायाकल्प, इंटरनेशनल एयरपोर्ट, बुन्देलखण्ड एक्सप्रेसवे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे, गंगा एक्सप्रेसवे, हर जिले में मेडिकल कॉलेज, कानपुर, आगरा, झांसी, गोरखपुर में मेट्रो जैसी परियोजनाओं पर या तो काम जारी है या इनके समेत कई परियोजनाएं पाइपलाइन में हैं।
योगी ने किसानों और जनता के कल्याण को सबसे ऊपर रखा। पहली ही कैबिनेट मीटिंग में 86 लाख किसानों के हित में 36000 करोड़ रुपये की कर्जमाफी के निर्णय से उन्होंने पांच साल तक चली फिल्म का ट्रेलर दिखा दिया था। नई चीनी मिलों की स्थापना, कोरोना संकट में भी सभी मिलों का संचलन, गन्ना किसानों को डेढ़ साल करोड़ रुपये का ऐतिहासिक भुगतान, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न की रिकार्ड खरीद व भुगतान की बात हो या फिर केंद्र की किसान हित वाली योजनाओं की। हरेक मामले में योगी सरकार नम्बर वन रही।
जनकल्याण की योजनाओं पर हासिल उपलब्धियों पर गौर करें तो 43.50 लाख गरीबों की प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री आवास की सौगात, 2.61 करोड़ परिवारों को व्यक्तिगत शौचालय, करोडों की संख्या में उज्ज्वला योजना के तहत निशुल्क रसोई गैस कनेक्शन व सौभाग्य योजना के तहत निशुल्क बिजली कनेक्शन। कोरोना संकट काल से ही जारी 15 करोड़ लोगों के लिए मुफ्त डबल राशन (दाल, तेल व नमक के साथ), मुफ्त जांच, इलाज व टीकाकरण की सुविधा। इतना कुछ कि लिखने व पढ़ने वाले थक जाएं।
पांच साल इस सरकार ने हरेक वर्ग का भरपूर ख्याल रखा। महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान व आत्मनिर्भरता के लिए मिशन शक्ति एक नजीर बनी। पांच लाख युवाओं को सरकारी नौकरी मिली तो सुरक्षा के माहौल से धरातल पर उतरे निवेश से करीब दो करोड़ को निजी क्षेत्र में रोजगार और स्वतः रोजगार से जोड़ा गया।
प्रदेश में करीब पौने चार लाख करोड़ रुपये का औद्योगिक निवेश हुआ। यही नहीं योगी आदित्यनाथ की सरकार ने एक जिला, एक उत्पाद योजना के तहत जिलों के पारंपरिक शिल्प को उद्यम का दर्जा देकर इसे अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग बनाया।
ऐसे में जब इस उत्तर प्रदेश के लोगों को दोबारा अपना मुखिया चुनने का मौका मिला तो उसने सारे कयासों का अंत करते हुए जो श्रेष्ठतम था उसे चुन लिया। दरअसल योगी आदित्यनाथ ने बतौर मुख्यमंत्री जो किया वह बतौर गोरक्षपीठाधीश्वर उनके सांस्कार में रहा है। जिस गोरक्षपीठ के वह पीठाधीश्वर हैं, लोक कल्याण उसकी परंपरा रही है। पंथ के संस्थापक गुरु गोरखनाथ ने योग को आम लोगों के कल्याण से जोड़कर जो सिलसिला शुरू किया वह आज भी जारी है।
मठ से जुड़े चार दर्जन से अधिक शिक्षण संस्थान, चिकित्सालय व सेवा के अन्य प्रकल्प इसके उदाहरण हैं। बतौर मुख्यमंत्री व्यापक फलक पर एक सन्यासी ने जिस तरह पूरी पारदर्शिता, बिना भेदभाव के सबका साथ, सबका विकास के नारे को हक्कीत में बदला, सच्चे अर्थों में राजधर्म का पालन किया।
आज का जनादेश उसी का नतीजा है। जनता ने योगी के राजधर्म पर अपनी मुहर लगा दी है। इस तरह से इतिहास में गोरक्षपीठ ऐसी पीढ़ियों में शुमार हो गया जिसकी तीन पीढ़ियां लोककल्याण के मामले में एक से बढ़कर एक निकलीं। इन तीनों ने राजनीति को सेवा और लोककल्याण का जरिया बनाकर औरों के लिए एक लंबी लकीर खिंची।