Thursday, January 9, 2025
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पीएम ने संसद से किसानों को आंदोलन खत्म करने की अपील की

जनवाणी ब्यूरो |

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर जवाब दिया। 77 मिनट के भाषण में प्रधानमंत्री प्रमुख रूप से किसान आंदोलन, बंगाल और कृषि कानून पर बात रखी। संसद से किसानों को आंदोलन खत्म करने की अपील की। कानूनों में बदलाव का रास्ता भी सुझाया। वहीं, विपक्ष के हमले को लेकर कहा कि गालियां मेरे खाते में जाने दो। अच्छा आपके खाते में, बुरा मेरे खाते में। आओ, मिलकर अच्छा करें।

राष्ट्रपति के भाषण की ताकत महसूस करें

पूरी दुनिया चुनौतियों से जूझ रही है। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि इन सबसे गुजरना होगा। इस दशक के प्रारंभ में ही राष्ट्रपति ने संयुक्त सदन में जो उद्बोधन दिया, जो नया आत्मविश्वास पैदा करने वाला था। यह उद्बोधन आत्मनिर्भर भारत की राह दिखाने वाला और इस दशक के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाला था।

करीब 13-14 घंटे तक सांसदों ने कई पहलुओं पर विचार रखे। अच्छा होता कि राष्ट्रपति का अभिभाषण सुनने के लिए भी सभी लोग होते, तो लोकतंत्र की गरिमा और बढ़ जाती। राष्ट्रपति के भाषण की ताकत इतनी थी, कई लोग न सुनने के बावजूद बहुत लोग बोल पाए। इससे भाषण का मूल्य आंका जा सकता है।

आंदोलन खत्म करें, मिलकर चर्चा करते हैं

आंदोलन में बूढ़े लोग भी बैठे हैं, इसे खत्म करें। आइए, मिलकर चर्चा करते हैं। ये समय खेती को खुशहाल बनाने का है, जिसे गंवाना नहीं है। पक्ष-विपक्ष हो, इन सुधारों को हमें मौका देना चाहिए। ये भी देखना होगा कि इनसे ये लाभ होता है या नहीं। मंडियां ज्यादा आधुनिक हों। MSP था, है और रहेगा।

सदन की पवित्रता को समझें। जिन 80 करोड़ लोगों को सस्ते में राशन मिलता है, वो जारी रहेगा। आबादी बढ़ रही है, जमीन के टुकड़े छोटे हो रहे हैं, हमें कुछ ऐसा करना होगा कि किसानी पर बोझ कम हों और किसान परिवार के लिए रोजगार के अवसर बढ़ें। हम अपने ही राजनीतिक समीकरणों के फंसे रहेंगे तो कुछ नहीं हो पाएगा।

कर्ज माफी चुनावी नारा बनता जा रहा

चुनाव आते ही एक कार्यक्रम होता है- कर्ज माफी। इससे छोटे किसान का कोई फायदा नहीं होता, क्योंकि उसका तो बैंक का खाता भी नहीं होता। पहले की फसल बीमा योजना उस बड़े किसान के लिए थी, जो बैंक से लोन लेता था। सिंचाई की सुविधा भी बड़े किसान के लिए थी, वे ही ट्यूबवेल लगा सकते थे। बड़े किसान ही यूरिया ले सकते थे, छोटे किसान को तो लाठियां खानी पड़ती थीं।

नई सोच कभी भी आ सकती है

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना किसान की जिंदगी बदलने वाली योजना है। अब किसान शहरों तक अपना माल बेच रहा है। किसान उड़ान योजना का लाभ भी मिल रहा है। हर सरकारों ने कृषि सुधारों की वकालत की है। सबको लगा कि अब समय आ गया है कि ये हो जाएगा। मैं भी दावा नहीं कर सकता कि हम सबसे अच्छा सोच सकते हैं। आगे भी नई सोच आ सकती है। इसको कोई रोक नहीं सकता। आपको (विपक्ष) किसानों को ये बताना चाहिए कि सुधार वक्त की जरूरत है।

तीसरी दुनिया का देश रिकॉर्ड समय में वैक्सीन लाया

जिस देश को थर्ड वर्ल्ड में गिना जाता है, वह देश इतने कम समय में वैक्सीन लेकर आ जाए तो गर्व होता है। मेरे देश में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चल रहा है। कोरोना ने दुनिया के साथ हमारे रिश्तों को नया आयाम दिया। भारत ने 150 देशों में मानवजाति की रक्षा के लिए दवा भेजी।

कई देश कह रहे हैं कि हमारे पास भारत की वैक्सीन आ गई है। विदेशों में जब लोग ऑपरेशन कराने जाते हैं तो देखते हैं कि कोई भारतीय डॉक्टर है या नहीं। अगर ऐसा होता है तो उनकी आंखों में चमक आ जाती है। यही हमने कमाया है।

बंगाल के रास्ते लोकतंत्र की नसीहत

डेरेक ओ’ब्रायन (बंगाल से तृणमूल सांसद) से फ्रीडम ऑफ स्पीच इंटीमिडेटेशन, हाउडी जैसे शब्द सुन रहा था। लगा कि बंगाल की बात रहे हैं कि देश की। बहुत देर तक जब बोलते रहे तो लगा कि इमरजेंसी तक पहुंचेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। देश की मूलभूत शक्ति को समझने का प्रयास करें।

हमारा लोकतंत्र वेस्टर्न नहीं, ह्यूमन इंस्टीट्यूशन है। यहां लोकतंत्र को लेकर भी काफी कुछ कहा गया (हंसते हुए)। मैं नहीं मानता कि कोई भी नागरिक इस पर भरोसा करेगा। हम किसी की खाल उधेड़ सकते हैं, ऐसी गलती न करें।

हमारा लोकतंत्र सबसे पुराना, खुद को न कोसें

प्राचीन भारत में 181 गणतंत्रों का वर्णन है। भारत का राष्ट्रवाद न संकीर्ण, न स्वार्थी और न ही आक्रामक है। यह सत्यम, शिवम, सुंदरम से प्रेरित है। ऐसा सुभाष चंद्र बोस ने कहा है। जाने-अनजाने में हमने नेताजी के विचारों, आदर्शों को भुला दिया है। हम खुद को कोसने लगते हैं।

दुनिया हमें जो शब्द दे देती है, उसे पकड़कर चलने लगते हैं। हमने युवा पीढ़ी को सिखाया ही नहीं कि यह देश लोकतंत्र की जननी है। ये बात हमें गर्व से बोलनी होगी। इमरजेंसी को याद कीजिए कि उस समय क्या हाल था। हर संस्था जेल बन चुकी थी। पर संस्कारों की ताकत थी, लोकतंत्र कायम रह सका।

आत्मनिर्भर भारत की दुनिया में जय-जयकार

भारत में जबर्दस्त निवेश हो रहा है। एक तरफ निराशा का माहौल है। दूसरी तरफ डबल डिजिट में ग्रोथ का अनुमान है। हर महीने हम 4 लाख करोड़ का डिजिटल ट्रांजैक्शन कर रहे हैं। दुनिया में इसकी जय-जयकार हो रही है। 2014 में जब पहली बार सदन में आया था, तो कहा कि सरकार गरीबों को समर्पित है।

आज फिर यही बात कहता हूं। हमने अपना लक्ष्य डायल्यूट नहीं किया है। चुनौतियां जरूर हैं, पर तय यह करना है कि हम समस्या का हिस्सा बनना चाहते हैं या समाधान का। समस्या का हिस्सा बनेंगे, तो राजनीति चलेगी। समाधान का हिस्सा बनेंगे, तो राष्ट्रनीति मजबूत होती चली जाएगी।

देश का मनोबल तोड़ने वाली बातों में न उलझें

सोशल मीडिया में देखा होगा कि फुटपाथ पर बैठी बूढ़ी मां दीया जलाकर बैठी थी। हम उसका मखौल उड़ा रहे हैं। जिसने स्कूल का दरवाजा नहीं देखा, पर उन्होंने देश में सामूहिक शक्ति का परिचय करवाया, पर इन सबका मजाक उड़ाया गया। विरोध करने के लिए कितने मुद्दे होते हैं, देश के मनोबल तोड़ने वाली बातों में न उलझें। हमारे कोरोना वॉरियर्स ने कठिन समय में जिम्मेदारी निभाई, उनका आदर करना चाहिए।

मेरे साथ करोड़ों लोगों की ताकत

एक मंत्र का उल्लेख करना चाहूंगा। वेदों में महान विचार है- अयूतो अहम, अयूतो मे आत्मा, अयूतं मे चक्षु…। यानी मैं एक नहीं हूं, मैं अकेला नहीं हूं, मैं अपने साथ करोड़ों मानवों को देखता हूं, अनूभूत करता हूं, मेरे साथ करोड़ों की शक्ति है। इसलिए 130 करोड़ देशवासियों की सपने देश के सपने हैं। देश जो प्रयास कर रहा है, वो दूरगामी होंगे।

देश में नई बिरादरी सामने आई-आंदोलनजीवी

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हम लोग कुछ शब्दों से परिचित हैं- श्रमजीवी, बुद्धिजीवी। मैं देख रहा हूं कि पिछले कुछ समय से इस देश में नई जमात पैदा हुई है। एक नई बिरादरी सामने आई है- आंदोलनजीवी। आप देखेंगे कि आंदोलन चाहे वकीलों का हो, स्टूडेंट्स का हो, मजदूरों का हो, हर आंदोलन में ये जमात नजर आएगी। आंदोलनजीवियों की पूरी टोली है। ये आंदोलन के बिना जी नहीं सकते। आंदोलन से जीने के लिए रास्ते खोजते रहते हैं। हमें इन्हें पहचानना होगा।’

मोदी ने कहा, ‘ऐसे आंदोलनजीवी सब जगह पहुंचकर आइडियोलॉजिकल स्टैंड ले लेते हैं। नए-नए तरीके बताते हैं। देश आंदोलनजीवी लोगों से बचे, ये हम सभी को देखना होगा। ये अपना आंदोलन खड़ा नहीं कर पाते। किसी का आंदोलन चल रहा तो वहां जाकर बैठ जाते हैं। ये सारे आंदोलनजीवी परजीवी होते हैं।’

फॉरेन डिस्ट्रक्टिव आइडियोलॉजी

मोदी ने कहा, ‘देश प्रगति कर रहा है और हम फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट की बात कर रहे हैं, लेकिन बाहर से एक नया FDI नजर आ रहा है। ये नया FDI है- फॉरेन डिस्ट्रक्टिव आइडियोलॉजी। इस FDI से देश को बचाने के लिए हमें और जागरूक रहने की जरूरत है।’

प्रधानमंत्री का इशारा क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग से लेकर पॉप सिंगर रिहाना तक ऐसी विदेशी हस्तियों पर था, जिन्होंने हाल ही में अपनी सोशल मीडिया पोस्ट्स के जरिए किसान आंदोलन का समर्थन किया है।

सिखों की तारीफ

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘कुछ लोग हमारे पंजाब के सिख भाइयों के दिमाग में कुछ गलत चीजें भरने में लगे हैं। ये देश हर सिख के लिए गर्व करता है। देश के लिए क्या कुछ नहीं किया इन्होंने। इनका जितना आदर करें, कम है। गुरुओं की महान परंपरा रही है। मुझे पंजाब की रोटी खाने का मौका मिला है, इसलिए मालूम है। मैंने कई साल पंजाब में बिताए हैं। कुछ लोग सिखों को गुमराह करने की कोशिश करते हैं। इससे देश का भला नहीं होगा।’

कांग्रेस गुलाम नबी की बात को जी-23 की राय न मान ले

प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद के बहाने कांग्रेस की चुटकी ली। उन्होंने कहा कि मैं गुलाम नबी आजाद की तारीफ करता हूं। वे मृदुता, सौम्यता से बोलते हैं। कभी भी कटु शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते। सभी सांसदों को उनसे सीखना चाहिए।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर में हुए चुनावों की तारीफ की। इसके लिए मैं आपका आभारी हूं। लेकिन मुझे डर भी लगता है। मुझे भरोसा है कि आपकी पार्टी वाले इसे उचित स्पिरिट में लेंगे। गलती से जी-23 की राय मानकर उल्टा न कर दें।’

यहां जी-23 से मोदी का इशारा कांग्रेस के उन 23 नेताओं की तरफ था, जिन्होंने अगस्त 2020 में सोनिया गांधी को चिट्‌ठी लिखकर कहा था कि पार्टी को फुलटाइम लीडरशिप की जरूरत है। बाद में इन नेताओं की बात को पार्टी लाइन के खिलाफ मानकर उन्हें किनारा करने की कोशिशें हुई थीं।

मैथिलीशरण आज होते तो क्या लिखते?

मोदी ने राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि हम सभी के लिए ये एक अवसर है कि हम आजादी के 75वें साल में प्रवेश कर रहे हैं। यह पर्व कुछ कर गुजरने का होना चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि आजादी के 100वें साल यानी 2047 में हम कहां होंगे। आज दुनिया की निगाह हम पर है।

मोदी ने कहा, ‘जब मैं अवसरों की चर्चा कर रहा हूं, तब मैथिलीशरण गुप्त की कविता कहना चाहूंगा- अवसर तेरे लिए खड़ा है, फिर भी तू चुपचाप पड़ा है। तेरा कर्मक्षेत्र बड़ा है, पल-पल है अनमोल, अरे भारत उठ, आंखें खोल। मैं सोच रहा था, 21वीं सदी में वो क्या लिखते- अवसर तेरे लिए खड़ा है, तू आत्मविश्वास से भरा पड़ा है, हर बाधा, हर बंदिश को तोड़, अरे भारत, आत्मनिर्भरता के पथ पर दौड़।’

मुझ पर भी हमला हुआ, आनंद लेते रहिए, मोदी है तो मौका लीजिए

अपना भाषण खत्म करते हुए प्रधानमंत्री बोले, ‘सदन में चर्चा का स्तर अच्छा था। वातावरण भी अच्छा था। मुझ पर भी कितना हमला हुआ। जो भी कहा जा सकता है, कहा गया। मुझे आनंद हुआ कि मैं कम से कम आपके काम तो आया। कोरोना के कारण ज्यादा आना-जाना नहीं होता होगा। कोरोना के कारण फंसे रहते होंगे। घर में भी किच-किच चलती रहती होगी। इतना गुस्सा यहां निकाल दिया तो आपका मन कितना हल्का हो गया होगा। अब घर के अंदर कितने खुशी-चैन से समय बिताते होंगे।’

मोदी ने कहा, ‘किसान आंदोलन पर खूब चर्चा हुई। मूल बात पर चर्चा होती, तो अच्छा होता। कृषि मंत्री ने अच्छे ढंग से सवाल पूछे, पर उनके जवाब नहीं मिलेंगे। देवेगौड़ा जी ने सरकार के प्रयासों की सराहना की, क्योंकि वे कृषि से लंबे समय से जुड़े रहे हैं।’

चौधरी चरण सिंह का बयान याद दिलाया

मोदी बोले, ‘‘आखिर खेती की समस्या क्या है? मैं चौधरी चरण सिंह के हवाले से कहना चाहता हूं। उन्होंने 1971 में कहा था, ‘33 फ़ीसदी किसानों का पास 2 बीघा से कम जमीन है। 18 फ़ीसदी के पास 2 से 4 बीघा जमीन है। 51 फ़ीसदी किसानों का गुजर-बसर जमीन से नहीं हो सकता।’ आज देश में ऐसे किसानों की संख्या बढ़ रही है, जिनके पास 2 हेक्टेयर के कम जमीन है। ऐसे 12 करोड़ किसान हैं। हमें योजनाओं के केंद्र में 12 करोड़ किसानों को रखना होगा, तभी चौधरी साहब को श्रद्धांजलि होगी।’’

शास्त्रीजी को भी सोचना पड़ता था

मोदी ने कहा, ‘जरा हरित क्रांति की बात सोचिए। सख्त फैसले लेने के लिए लालबहादुर शास्त्री को भी सोचना पड़ता था। तब भी कोई कृषि मंत्री नहीं बनना चाहता था, क्योंकि उन्हें लगता कि कहीं कड़े फैसलों के चलते राजनीति न खत्म हो जाए। आज जो भाषा मेरे लिए बोली जा रही है, तब उनके लिए बोली जाती थी कि अमेरिका के इशारे पर हो रहा है। कभी जो अनाज विदेशों से मंगाकर खाते थे, आज हम रिकॉर्ड उत्पादन कर रहे हैं।’

मनमोहन जो बोले, मैं भी वही कर रहा हूं

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘मनमोहन सिंह जी ने किसानों को भारत में एक बाजार देने की बात कही थी। जो आज यू-टर्न ले चुके हैं, वे शायद उनकी बात से सहमत होंगे। मनमोहन सिंह जी ने कहा था, ‘1930 के दशक में मार्केटिंग की जो व्यवस्था बनी, उससे मुश्किलें आईं और उसने किसानों को अपनी उपज को अच्छे दामों पर बेचने से रोका। हमारा इरादा है कि भारत को एक बड़ा कॉमन मार्केट की राह में मौजूद दिक्कतों को खत्म करें।’ आप लोगों को गर्व करना चाहिए कि जो बात सिंह साहब ने कही थी, वही मोदी कर रहा है। मजा ये है कि लोग राजनीतिक बयानबाजी करते हैं।’’

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