Sunday, May 4, 2025
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Pradosh Vrat: इस दिन रखा जाएगा प्रदोष व्रत, जानें तिथि और शुभ मुहूर्त

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। हिंदू धर्म में भगवान शिव की आराधना का अत्यंत महत्व है। महादेव की पूजा से न केवल जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं, बल्कि मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं और भय व भ्रम से मुक्ति मिलती है। प्रदोष व्रत उन विशेष दिनों में से एक है जब महाकाल की कृपा प्राप्त करना अत्यंत सरल व प्रभावी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की आराधना से शिव परिवार का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन के समस्त संकट दूर हो जाते हैं। हर माह के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। वैशाख मास के अंतर्गत 25 अप्रैल 2025, शुक्रवार प्रदोष व्रत रखा जाएगा।

प्रदोष व्रत तिथि

इस बार वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 25 अप्रैल को सुबह 11: 44 मिनट पर होगी। इस तिथि का समापन 26 अप्रैल के दिन सुबह 8 बजकर 27 मिनट पर है। उदया तिथि के मुताबिक 25 अप्रैल 2025 को वैशाख माह का पहला प्रदोष व्रत रखा जाएगा। इस दिन शुक्रवार होने के कारण इसे शुक्र प्रदोष कहा जाएगा।

पूजा का शुभ मुहूर्त

25 अप्रैल 2025 शुक्र प्रदोष व्रत के दिन महादेव की पूजा के लिए शाम 6 बजकर 53 मिनट से लेकर रात 9 बजकर 3 मिनट तक का शुभ मुहूर्त बन रहा है। आप इस अवधि में महाकाल की उपासना कर सकते हैं।

पूजा विधि

  • प्रदोष व्रत पूजा के लिए सबसे पहले पूजा स्थल पर शिवलिंग स्थापित करें।
  • इसके बाद शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
  • अब आप बेलपत्र, फूल, गुड़हल के फूल और कुछ फल अर्पित करें।
  • इस दौरान आप महादेव को मिठाई का भोग भी लगा सकते हैं।
  • इसके बाद शुक्र प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करें।

भगवान शिव की आरती करें।

  • इस दौरान आप महादेव के साथ-साथ पूरे शिव परिवार की आरती भी कर सकते हैं।
  • अंत में सुख-समृद्धि की कामना करते हुए गलतियों की क्षमा मांगे।

भगवान शिव की आरती

जय शिव ओंकारा ऊँ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
ऊँ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥
ऊँ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे॥
ऊँ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥
ऊँ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ऊँ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥
ऊँ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका॥
ऊँ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी॥
ऊँ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे॥
ऊँ जय शिव…॥
जय शिव ओंकारा हर ऊँ शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ऊँ जय शिव ओंकारा…॥

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