एक मजदूर की पत्नी बहुत बीमार थी। वह बहुत परेशान था। एक तो पत्नी बीमार, दूसरे उसके इलाज के लिए पास में पैसे नहीं। दोहरी मार पड़ रही थी, इसलिए चिंता स्वाभाविक थी। उसकी चिंता को समझकर किसी ने उससे कहा कि वह पास में ही रहने वाले बौद्ध भिक्षु से अपनी पत्नी के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करने के लिए कहे। मजदूर ने बौद्ध भिक्षु को अपनी झोपड़ी में बुला लिया। भिक्षु ने आसन ग्रहण करने के बाद सकल जगत के प्राणियों के लिए प्रार्थना प्रारंभ कर दी, सबका मंगल हो, सबका कल्याण हो, सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों, सबके दुख दूर हों…। रुकिए! मजदूर ने कहा, मैंने तो आपको अपनी पत्नी के भले के लिए प्रार्थना करने के लिए बुलाया है और आप दुनिया के सभी बीमारों के लिए प्रार्थना कर रहे हैं! मैं तुम्हारी पत्नी के लिए भी प्रार्थना कर रहा हूं, भिक्षु ने कहा। हां, लेकिन आप औरों के लिए भी प्रार्थना कर रहे हैं। इस तरह तो आप मेरे दुष्ट पडोसी की भी मदद कर देंगे, जो बीमार है। मैं चाहता हूं कि वह कभी अच्छा न हो। मजदूर भिक्षु से नाराजगी जताने लगा। उसे यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगा कि वह सभी बीमारों के लिए दुआ करे। मजदूर ने कहा, तुम प्रार्थना और रोगमुक्ति के बारे में कुछ नहीं जानते हो। भिक्षु ने उठते हुए कहा, सभी के लिए मंगलकामना करते समय मेरी प्रार्थना उन करोड़ों लोगों की प्रार्थना में समाहित हो जाती है, जो अपने परिजनों के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। सभी की प्रार्थनाएं एक दूसरे में मिलकर विराट चेतनता से युक्त हो जाती हैं और सभी का हित करती हैं। केवल स्वयं के हित के लिए की गयी प्रार्थनाएं अपनी शक्ति खो देती हैं और विलुप्त हो जातीं हैं। अब मजदूर भिक्षु की बात समझ गया था।