Monday, September 16, 2024
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ई-कचरे की भेंट चढ़ती बहुमूल्य धातुएं

Ravivani 21

MANISH KUMAR CHAUDHARYई-कचरे में मौजूद धातुओं का पूरा लाभ उठाने के लिए ऊर्जा परिवर्तन के लिए बेहतर रीसाइक्लिंग नीतियों की आवश्यकता है। इसमें ऐसी नीतियां शामिल हो सकती हैं, जिनके लिए निर्माताओं को अपने उत्पादों को डिसएसेम्बली और रीसाइक्लिंग को ध्यान में रखकर डिजाइन करना होगा। जब तांबे जैसी धातु को रिसाइकल नहीं किया जा रहा है, तो आमतौर पर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यह स्मार्टफोन या अन्य छोटे उपभोक्ता डिवाइस में होता है जिसे अलग करना आसान नहीं होता।

पृथ्वी से उन धातुओं के खनन से क्षति और प्रदूषण पैदा होता है जो पारिस्थितिकी तंत्र और इंसानों के लिए खतरा है। लेकिन जलवायु को स्थिर करने के लिए आवश्यक तांबा, निकल, एल्यूमीनियम और दुर्लभ पृथ्वी खनिजों का एक और संभावित स्रोत है- इलेक्ट्रॉनिक कचरे का पहाड़, जिसे मानवता हर साल त्यागती है। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020 के अनुसार, दुनिया ने 2019 में 53.6 मीट्रिक टन ई-कचरा उत्पन्न किया, जिसमें से केवल 9.3 मीट्रिक टन (17 प्रतिशत) एकत्र और पुनर्नवीनीकरण के रूप में दर्ज किया गया था। जबकि 82.6 फीसदी हिस्से को फेंक दिया गया। जिसका मतलब है कि इस कचरे में मौजूद सोना, चांदी, तांबा, प्लेटिनम और अन्य कीमती सामग्री को ऐसे ही बर्बाद कर दिया गया। यदि इसकी कुल कीमत की बात करें तो वह करीब 5,700 करोड़ डॉलर के बराबर थी, जो कई देशों की जीडीपी से भी ज्यादा है। इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का छोटा जीवन चक्र भी एक बड़ी समस्या है, जो इस तेजी से बढ़ते इलेक्ट्रॉनिक कचरे में इजाफा कर रहा है।

शोधकर्ताओं अनुसार यदि हम करीब 10 लाख मोबाइल फोन को देखें तो उनमें करीब 24 किलो सोना, 16,000 किलो तांबा, 350 किलो चांदी और 14 किलो पैलेडियम होता है, जिसे रिसाइकल करके पुन: प्राप्त किया जा सकता है। यदि इसे ऐसे ही छोड़ दिया जाए तो इन संसाधनों को नए मोबाइल फोन बनाने के लिए दोबारा प्राप्त करना होगा, जिससे पर्यावरण पर दबाव और बढ़ जाएगा। 2022 में यूरोप, ओशिनिया और अमेरिका ने प्रति व्यक्ति सबसे अधिक इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा किया था। इस कचरे में यूरोप प्रति व्यक्ति 17.6 किलोग्राम के हिसाब से सबसे आगे है। इसके बाद ओशिनिया ने प्रति व्यक्ति 16.1 किलोग्राम और अमेरिका ने 14.1 किलोग्राम कचरा पैदा किया था। हालांकि इन देशों में ई-कचरे को इकट्ठा और रीसाइक्लिंग करने के भी पर्याप्त साधन हैं। नतीजन इन देशों में कचरे की संग्रह और रीसाइकलिंग की दर भी ऊंची है।

गौरतलब है कि यूरोप में प्रति व्यक्ति 7.53 किलोग्राम, ओशिनिया में प्रति व्यक्ति 6.66 किलोग्राम और अमेरिका में प्रति व्यक्ति 4.2 किलोग्राम कचरा एकत्र और रीसाइकल किया जा रहा है। समस्या यह है कि दुनिया में जिस तेजी से इलेक्ट्रॉनिक कचरा बढ़ रहा है, उसके रीसाइक्लिंग की दर उस गति से नहीं बढ़ रही है। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2024 का चौथा संस्करण ई-कचरे के उत्पादन में बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है, क्योंकि 2022 तक दुनिया ने 62 बिलियन किलोग्राम ई-कचरा उत्पन्न किया (प्रति व्यक्ति 7.8 किलोग्राम)। उत्पन्न ई-कचरे का केवल 22.3 प्रतिशत (13.8 बिलियन किलोग्राम) उचित रूप से एकत्रित और पुनर्नवीनीकरण के रूप में प्रलेखित किया गया था।

इसका सबसे बड़ा विरोधी पक्ष यह है कि वर्तमान में कुछ प्रकार के ई-कचरे का पुनर्चक्रण तथा सामग्रियों और धातुओं को पुनर्प्राप्त करना एक महंगी प्रक्रिया है। इसलिए यह जानते-बूझते कि ऐसी सामग्री पर्यावरण हितैषी नहीं है, फिर भी अधिक लागत के चलते उनको रिसाइकल नहीं किया जाता। गौरतलब है कि पुनर्चक्रित धातुएं वर्जिन अयस्क से गलाई गई धातुओं की तुलना में दो से 10 गुना अधिक ऊर्जा कुशल भी होती हैं।जमीन से खनन करने की तुलना में त्यागे गए इलेक्ट्रॉनिक्स के खनन से सोने की प्रति इकाई कार्बन डाइआॅक्साइड का उत्सर्जन 80 प्रतिशत कम होता है। किंतु यह चिंताजनक तो है ही कि ऊर्जा संक्रमण धातुओं की कुछ चौंका देने वाली मात्रा कूड़ेदान में जा रही हैं।

ई-कचरे में प्रचुर मात्रा में पायी जाने वाली दो सबसे अधिक पुनर्चक्रण योग्य धातुएं एल्यूमीनियम और तांबा हैं। फिर भी 2022 में ई-कचरे में मौजूद अनुमानित 4 मिलियन मीट्रिक टन एल्यूमीनियम और 2 मिलियन मीट्रिक टन तांबे में से केवल 60 प्रतिशत का ही पुनर्चक्रण हुआ। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार 2022 में जलवायु प्रौद्योगिकी क्षेत्र में तांबे की मांग लगभग 6 मिलियन मीट्रिक टन थी। ऐसे परिदृश्य में जहां दुनिया ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए आक्रामक रूप से उत्सर्जन को कम करने का प्रयास कर रही है, कम कार्बन प्रौद्योगिकियों के लिए तांबे की मांग 2030 तक लगभग तीन गुना हो सकती है। अब तक उत्पादित प्रत्येक उपकरण में कार्बन फुटप्रिंट होता है और यह मानव निर्मित ग्लोबल वार्मिंग में योगदान दे रहा है। एक टन लैपटॉप के निर्माण में संभावित रूप से 10 टन कार्बन डाइआॅक्साइड यानी सीओटू उत्सर्जित होती है।

हर टन ई-कचरे को रिसाइकल करने से करीब 2 टन कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। इस लिहाज से देखें तो यदि 2021 में पैदा होने वाले कुल ई-वेस्ट को रिसाइकल कर दिया जाए तो उससे करीब 11.4 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन को रोका जा सकता है। इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए दुर्लभ धातुओं और कच्चे माल की आवश्यकता होती है, जो ज्यादातर जीवाश्म ईंधन की मदद से प्राप्त होती हैं। ऐसे में इनकी बढ़ती मांग और रीसाइकल की घटती दर के साथ वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में भी वृद्धि हो रही है। अन्य ऊर्जा संक्रमण धातुओं के लिए भी पुनर्चक्रण दरें बहुत कम हैं। अंतर्निहित पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों की अपरिपक्वता के साथ-साथ प्रौद्योगिकी से दुर्लभ पृथ्वी-समृद्ध घटकों को इकट्ठा करने की लागत और तार्किक चुनौतियों के कारण, ई-कचरे में मौजूद सभी दुर्लभ तत्वों में से 1 प्रतिशत से भी कम का पुनर्नवीनीकरण किया जाता है। ई-कचरे में मौजूद धातुएं जरूरी नहीं कि हर जलवायु तकनीकी अनुप्रयोग के लिए उपयोगी हों, भले ही उन्हें पुनर्चक्रित किया गया हो। कम मात्रा में मौजूद होने के बावजूद कुछ प्लैटिनम समूह धातुएं, जो मुद्रित सर्किट बोर्डों और चिकित्सा उपकरणों के अंदर पायी जाती हैं, पहले से ही उनके मूल्य के कारण उच्च दरों पर पुनर्नवीनीकृत की जाती हैं।

ई-कचरे में मौजूद धातुओं का पूरा लाभ उठाने के लिए ऊर्जा परिवर्तन के लिए बेहतर रीसाइक्लिंग नीतियों की आवश्यकता है। इसमें ऐसी नीतियां शामिल हो सकती हैं, जिनके लिए निर्माताओं को अपने उत्पादों को डिसएसेम्बली और रीसाइक्लिंग को ध्यान में रखकर डिजाइन करना होगा। जब तांबे जैसी धातु को रिसाइकल नहीं किया जा रहा है, तो आमतौर पर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यह स्मार्टफोन या अन्य छोटे उपभोक्ता डिवाइस में होता है जिसे अलग करना आसान नहीं होता।

जलवायु परिवर्तन से निपटने, उभरती चुनौतियों और अवसरों का जवाब देने तथा हमारी ऊर्जा स्वतंत्रता को मजबूत करने के लिए हमें महत्वपूर्ण सामग्रियों की घरेलू आपूर्ति बढ़ाने की जरूरत है। इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल सामानों के उत्पादन और उपभोग के लिए एक नई दृष्टि की आवश्यकता है। ई-कचरे को उपभोक्ता के बाद की समस्या के रूप में समझना आसान है, लेकिन यह मुद्दा उन उपकरणों के जीवनचक्र को शामिल करता है जिनका उपयोग हर कोई करता है। ई-कचरे से अधिक धातुओं का संचयन चुनौतीपूर्ण जरूर है, लेकिन इसकी कीमत और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को देखते हुए इस मुद्दे पर ठोस क्रियान्वयन भी आवश्यक है।

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