एक बार एक टीचर ने एक ग्लास पकड़ते हुए उसे ऊपर उठाया और पूछा कि बच्चों, इस ग्लास का वजन कितना है? 100 ग्राम, 500 ग्राम, 250 ग्राम? बच्चों ने उत्तर दिया। टीचर ने कहा कि जब तक मैं इसका सही वजन न कर लूं तब तक मुझे इसका सही वजन नहीं पता चलेगा। टीचर ने फिर बच्चों से पूछा, इसी तरह मैं इस ग्लास को पकडेÞ रहूं तो क्या होगा।? बच्चों ने कहा, कुछ नहीं। टीचर ने फिर पूछा, यदि मैं इसे एक घंटे तक ऊपर उठाए रहूं तो क्या होगा? आपके हाथों में दर्द होगा, एक छात्र ने उत्तर दिया। तुम सही बोल रहे, टीचर ने उत्तर दिया। लेकिन यदि मैं दिनभर इसे ऊपर उठाए रहूं तो क्या होगा? छात्रों ने कहा, सर दिनभर उठाए रहेंगे तो आपके हाथों में तनाव आ सकता है, लकवा मार सकता है और आपको हॉस्पिटल भी जाना पड़ सकता है, छात्रों ने उत्तर दिया। टीचर ने कहा, बहुत अच्छा, लेकिन क्या इसका वजन बदला? एक लड़का खड़ा होकर बोला, नहीं सर। तब भला हाथों में तनाव क्यों आया, टीचर ने पूछा?
बच्चे अचरज में पड़ गए और एक दूसरे का मुंह देखने लगे। फिर टीचर ने पूछा, अच्छा इस दर्द से मुक्ति पाने के लिए मुझे क्या करना पड़ेगा? ग्लास नीचे रख दीजिये सर, बच्चों ने उत्तर दिया। बिलकुल सही, टीचर ने कहा। टीचर ने कहा कि जीवन में कठिनाइयां भी कुछ इसी तरह हैं। इन्हें कुछ समय तक अपने दिमाग में रखिए तो लगेगा, सब कुछ ठीक है। उनके बारे में ज्यादा सोचेंगे तो पीड़ा होने लगेगी। फिर इन्हें ज्यादा दिमाग में रखेंगे तो सिर में दर्द होने लगेगा। समस्याओं के बारे में सोचना जरूरी है, पर इससे भी ज्यादा जरूरी है कि दिन के अंत में सोते समय आप इन्हें ग्लास की तरह नीचे रख देंगे, अर्थात भूल जाएं, जिससे आप दूसरे दिन ताजगी और उमंग से उठें और हर परिस्थिति का सामना कर सकें।