Friday, June 27, 2025
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गहरी जुताई से गहरा लाभ

KHETIBADI


जुताई का वैज्ञानिक अर्थ मिट्टी काटकर इस प्रकार पलट देना है कि भूमि की ऊपरी सतह की मिट्टी नीचे जाये और नीचे की मिट्टी ऊपर आ जाए। अत: गर्मी की जुताई इन दिनों कभी भी की जा सकती है। रबी फसलों की कटाई के तुरंत बाद ही जुताई करने में सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि उस समय खेत में नमी रहने के कारण जुताई करने में सुविधा रहती है। यदि जुताई कुछ दिनों बाद करनी हो और सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो तो सिंचाई करने के बाद ही गर्मी में जुताई करें।

गर्मी में जुताई की जरूरत

गर्मियों में जुताई करने की आवश्यकता के अनेक कारण हैं। इससे मिट्टी के अंदर सूर्य की रोशनी और हवा प्रवेश करती है। सूर्य की तेज किरणों के भूूमि के अंदर प्रवेश करने से खरपतवार के बीज और कीड़े-मकोड़े नष्ट हो जाते हैं। इसलिए इस प्रकार की मिट्टियों में गर्मी की जुताई करें। जहां तक बलुई, बलुई-दोमट और हल्की मिट्टी का प्रश्र है, वहां इस जुताई से अधिक लाभ नहीं होगा, क्योंकि इन मिट्टियों में प्राय: नमी और जीवांश की कमी होती है और इन्हें गर्मी में गहरा जोत दिया जाने पर अनेक जीवांश का हृास हो जाता है, अत: इन मिट्टियों को गहरा न जोतें। अधिकांश रुप से एक ही प्रकार के यंत्रों से लगातार जुताई करने से भूमि में कठोर पटल पाये जाते हैं, अत: ग्रीष्मकालीन जुताई तीन वर्षों में एक बार प्रत्येक खेत में करना चाहिए।

जुताई के लाभ

सूखे क्षेत्रों (वर्षा आधारित भूमि में) गर्मियों में गहरी जुताई करने से अधिक लाभ होता है। सूखे क्षेत्रों में अधिकांश रुप से देशी हल का ही प्रयोग किया जाता है। देशी हल से या कल्टीवेटर या डिस्क हेरो से बार-बार जुताई होने से मिट्टी के नीचे की सतह कड़ी हो जाती है। कभी-कभी मिट्टी के नीचे की कड़ी तह प्रकृति से भी मौजूद होती है। भूमि में इस प्रकार कड़ी तहोंं की उपस्थिति से नमी अवशोषण और जड़ों की गहराई पर जाने में रुकावट होती है। ऐसी परिस्थिति में बरसात शुरू होने से पूर्व मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करना गर्मी में लाभप्रद होता है।

भूमि के अंदर नमी का संरक्षण

अगर गर्मी की जुताई कर दी जाती है तो वर्षा होने पर धरती की गीली सतह और भूगर्भ की गीली सतह का मेल जल्दी हो जाता है। ऐसा होने से खरीफ की बुआई के बाद यदि दूसरी बार वर्षा होने में देरी हो जाय तो भी भूमि के ऊपर की सतह जल्दी नहीं सूखती और न ही छोटे-छोटे अंकुरित पौधे ही मुरझा कर सूखते हंै।

मिट्टी के रोगों की रोकथाम

भारी कपास मिट्टी वाले क्षेत्र जैसे मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ जिलों में कहीं-कहीं असिंचित रबी ज्वार की फसल प्राय: चारे के लिए ली जाती है। इसी रबी ज्वार की फसल को कटाने के बाद उसमें नई कोपल फूटती है। इन कोपलों में एक जहरीला पदार्थ जिसे हाईड्रोसायनिक एसिड कहते हैं, अधिक मात्रा में होता है। यदि कोई पशु इन्हें अधिक मात्रा में खा जाये तो उसके मरने की संभावना रहती है इसके अलावा इनकी जड़ें भी जहरीला पदार्थ उगलती रहती है और भूमि इस तरह धीरे-धीरे जहरीली होने लगती है। भूमि की इस स्थिति की मिट्टी का रोग कहते हैं। इसके बाद बोई जाने वाली किसी भी फसल पर विशेष रुप से ज्वार की फसल पर, इसका बहुत ही प्रतिकूल असर होता है। इसलिए जिन क्षेत्रों में रबी ज्वार की बुआई की जाती है, वहां फसल की कटाई के बाद गर्मियों में अवश्य जुताई करें।

कीट नियंत्रण में सहायक

बहुत से कीट जैसे टिड्डी, अपने अण्डे मिट्टी में कुछ सेमी भीतर रख देती है, जो वर्षा की पहली फुहार पर विकसित हो जाते हैं और बाहर निकलने लगते हैं। यदि गर्मियों में जुताई की जाय तो ये सब सतह पर आ जाते हंै और पक्षियों द्वारा नष्ट कर दिये जाते हैं या सूर्य के प्रकाश से स्वयं मर जाते हंै।

भूमि की सतह का खुलना

जब निश्चित समय में रबी मौसम की फसलों की कटाई की जाती है तो भूमि सतह खुलने से भूमि में वायु का संचार प्रचुर मात्रा में होता है। सूर्य का प्रकाश भूमि में पहुंचता है, फलस्वरुप इससे पौधे मिट्टी के खनिज पदार्थो को आसानी से भोजन के रुप में ग्रहण कर लेते हैं। साथ ही साथ धूप और वायु गर्मी की जुताई से भूमि को पर्याप्त मात्रा में मिलता रहता है। इससे भूमि में नाइट्रोजन तेजी से बनता है। भूमि में उपस्थित जैवीय पदार्थ जल्दी ही नाइट्रेट की शक्ल में बदल जाते हैं। जिससे इस खेत में बोयी जाने वाली फसल को लाभ पहुंचता है।

खरीफ फसलों से अधिक पैदावार

गर्मियों की जुताई से जीवांश पदार्थ (रबी फसलों के ठूंठ) नाइट्रेट में परिवर्तित हो जाता है। पहली वर्षा के साथ यह नाइट्रोजन और धूल के कण, जिसमें ढेर सारे जीवांश होते हैं मिट्टी में मिल जाते हैं। इससे यह लाभ होता है कि आगामी खरीफ फसल की बुवाई के समय आधार खाद के रुप में प्रयोग की गई फास्फोरस और पोटाश की उपलब्धता बढ़
जाती है।

जुताई करने का तरीका

गर्मियों में 15 सेमी गहरी जुताई्र करना फायदेमंद है। यदि ढलान पूरब से पश्चिम की ओर हो तो जुताई उत्तर से दक्षिण की ओर करनी चाहिए। यदि भूमि ढाल और ऊंची-नीची है तो इस प्रकार जोतना चाहिए कि मिट्टी का बहाव न हो अर्थात ढाल के विपरीत दिशा में जुताई करना चाहिए। तात्पर्य यह हुआ कि यदि ढलान पूरब से पश्चिम हो तो जुताई उत्तर से दक्षिण की ओर करना चाहिए। यदि एकदम ढलान हो तो टेढ़ी-मेढ़ी जुताई करना उपयुक्त होगा। ट्रैक्टर से चलाने वाले तवेदार और मोल्ड बोर्ड हल का प्रयोग ग्रीष्म ऋतु के लिए उपयुक्त है। रबी फसलों की कटाई के तुरंत बाद ही यह जुताई कर देनी चाहिए, क्योंंकि इस समय मिट्टी में कुछ नमी शेष रह जाती है। पौधों की पत्तियां और डंठल जो समय पर जुताई न कर पाने से उडकर खेत के बाहर चले जाते हैं या ऐसे खेतों में जहां कम्बाइन चली होती है, यह जुताई और भी लाभकारी हो जाती है। तवेदार हल (डिस्क प्लाऊ) के प्रयोग से फसल के डंठल कटकर छोटे हो जाते हैं और साथ ही साथ वे भूमि में जीवाश्म मात्रा की बढ़ोत्तरी करते हैं।

जुताई के लिए उपयुक्त यंत्र का चुनाव

खेतों में गर्मियों की जुताई मुख्यतया तीन प्रकार से की जा सकती है: (क) बाहर से भीतर (ख) भीतर सें बाहर और चक्करदार। कहां पर कौन-सी विधि अपनाई जावे, यह खेत की लम्बाई-चौड़ाई, ऊंचाई-निचाई, हलों के प्रकार, मिट्टी की दशा और जोतने वाले की इच्छा पर निर्भर करता है। बाहर से भीतर की जुताई में जब एक बार जुताई समाप्त हो जाये तो दूसरी हलाई काटकर जोतना शुरू करें। इसमें यह ध्यान रखना जरुरी है। इसमें यह ध्यान रखना जरुरी है कि मिट्टी पलटने वाले हल से लगातार जुताई न करें । अगर चक्करदार जुताई करना है तो टर्नरिस्ट हल से जोतना ही उपयुक्त है, क्योंकि इससे भूमि की समतलता बिगड?े का कम खतरा है। इस हल से एक कोने से जुताई करके दूसरे कोने में समाप्त कर देते हैं। सीमांत प्रगतिशील कृषक देश में कई तरह के हल काम में लाते हैं। कोई भी ऐसा हल नहीं है, जो हर जगह गर्मियों में इस्तेमाल किया जा सके। जलवायु और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार कई तरह के मिट्टी पलटने वाले हल अभी भी प्रयोग किए जा रहे हैं। जैसे एक हत्थे वाला हल-मेस्टन, प्रजा, गुर्जर, केयर आदि। इन्हें छोटी जोत वाले किसान आसानी से बैल-जोड़ी से चला लेते हैं। उत्तरी भारत के कुछ क्षेत्रों में अभी भी दो हत्थे वाला हल विक्ट्री पंजाब और टर्नरिस्ट सीमांत कृषकों द्वारा प्रयोग किया जाता है।

गर्मियों में खेत की जुताई के साथ-साथ किसानों को बरसात शुरू होने से पहले ही सिंचाई और जल निकास नालियों को उचित स्थान पर बना लेना चाहिए। निकास नालियों का आकार पिछले कुछ वर्षो से बहने वाले पानी को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए। इसके लिए बहुउद्देशीय समतल करने वाले यंत्र को ठीक प्रकार से प्रयोग करें और ध्यान रखें कि इस कार्य में मिट्टी अंदर से बाहर की ओर जाए, जिससे नाली बन जाए।

रोटावेटर बनाए मिट्टी को उपजाऊ

कृषि यंत्र किसानों की एक ऐसी जरूरत है, जिसकी मदद से किसान कृषि कार्यों को आसान और सुविधाजनक बनाते हैं। एक ऐसा ही कृषि यंत्र रोटोवेटर है। इसका उपयोग ट्रैक्टर में जोडकर होता है।


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