Saturday, June 14, 2025
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सरकारी सिस्टम पर सवाल: ट्रैफिक सिग्नल खराब

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: स्मार्ट सिटी बनाने के लिये मेरठ विकास प्राधिकरण ने ट्रैफिक विभाग को 85 करोड़ रुपये ट्रैफिक सिग्नल, लोहे के डिवाइडर और सीसीटीवी कैमरों के लिये दिये थे। स्मार्ट सिटी तो मेरठ बना नहीं, लेकिन चौराहों पर लगे ट्रैफिक सिग्नल जरूर शोपीस बनकर शहर की भद पिटवाने में कामयाब हो रहे है। इन खराब पड़े सिग्नलों के कारण चौराहों पर जहां दिन भर जाम रहता है वहीं जरुरत से ज्यादा स्टाफ ट्रैफिक संचालन के लिये लगाना पड़ रहा है।

शहर के ट्रैफिक सिग्नल इस वक्त बेहतरीन शोपीस का काम कर रही है। वर्षों से चौराहों पर इन खामोश रेड लाइटों के कारण हमेशा जाम की स्थिति बनी रहती है और अतिरिक्त स्टाफ लगाकर ट्रैफिक नियंत्रित करना पड़ रहा है। हालात यह है कि दूसरे राज्यों से आने वाले लोग ट्रैफिक लाइट देखकर वाहन चलाते हैं और उनको निराशा मिलती है। शहर के बेगमपुल, रेलवे रोड चौराहा, तेजगढ़ी चौराहा, ईव्ज चौपला, हापुड़ अड्डा चौराहा और कमिश्नरी चौराहे पर ट्रैफिक लाइट्स लगी हुई है।

दुर्भाग्य की बात यह है कि इनका संचालन फाइलों में तो हो रहा है, लेकिन हकीकत में इनको शोपीस के रुप में देखा जा सकता है। सबसे ज्यादा व्यस्त रहने वाले बेगमपुल चौराहे की स्थिति बेहद दयनीय हो गई है। इस चौराहे पर ट्रैफिक नियंत्रित करने के लिये ट्रैफिक पुलिस के अलावा होमगार्डस भी खड़े करने पड़ रहे हैं, लेकिन ग्रीन और रेड लाइट की सेटिंग गड़बड़ाने के कारण हमेशा बेवजह का जाम लगा रहता है।

इसी तरह रेलवे रोड चौराहे पर हमेशा जाम लगा रहता है। इस चौराहे की रेड लाइटस ठीक होने का नाम नहीं ले रही है। तेजगढ़ी और शॉप्रिक्स मॉल चौराहे पर लगी ट्रैफिक लाइट्स भी शोपीस बनी हुई है। कई बार मेरठ विकास प्राधिकरण की बैठकों में शहर के सौंदर्यीकरण के सवाल पर ट्रैफिक लाइट्स के सुधार पर चर्चाएं भी हुई, लेकिन रेड, ग्रीन और यलो लाइट्स के आपसी तालमेल की सेटिंग को लेकर प्रयास सफल नहीं हुए।

एमडीए ने 85 करोड़ रुपये भी दिये। शहर में एक भी चौराहे पर ट्रैफिक सिग्नल सही न होने के कारण ऐसा लग रहा है कि एमडीए द्वारा दिये गए रुपयों पर पानी फिर गया है। दिल्ली, नोएडा और गाजियाबाद में एक चौराहे पर एक ट्रैफिक पुलिस ट्रैफिक को इसलिये कंट्रोल कर लेता है, क्योंकि रेड लाइट्स की सेटिंग्स टाइम के अनुसार है।

जबकि मेरठ में हालात यह है कि सिपाही ट्रैफिक को चलने का इशारा करता है और उस वक्त रेड लाइट्स जगमगा जाती है। एसपी ट्रैफिक जितेन्द्र कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि ट्रैफिक सिग्नल को सेट करने के लिए प्रयास चल रहे हैं। बहुत ही जल्दी काम करना शुरू कर देंगे।

जिला महिला अस्पताल की तीसरी आंख बंद

जिला महिला अस्पताल में नहीं सुरक्षा व्यवस्था के पर्याप्त इंतजाम

 मेरठ: जिला महिला अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे है। डफरिन में हर रोज बड़ी संख्या में मरीज व तीमारदार आते हैं, लेकिन यहां की सुरक्षा व्यवस्था का बुरा हाल है। सरकारी ढर्रे पर चल रहे अस्पतालों में समय पर डाक्टर, स्वास्थ्य कर्मी पहुंचे और मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाएं भी समय पर मिल पाएं। इसके लिए जिला महिला अस्पताल में निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे लगवाए गए थे।

लेकिन अफसोस की बात है कि जिला महिला अस्पताल में परिसर के अंदर लगे अधिकांश सीसीटीवी कैमरे महीनों से बंद पड़े हैं। वहीं, कुछ कैमरों की फुटेज खराब है। ऐसी स्थिति में अस्पताल प्रबंधन की तीसरी आंख कारगर साबित नहीं हो रही है। इन कैमरों में कैद हो रही तस्वीरें अपने उद्देश्य को पूरा करने में विफल साबित हो रही हैं।

ऐसे में यदि कोई हादसा होने पर जांच करना पुलिस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं, लेकिन अस्पताल प्रबंधन इसे लेकर जरा भी गंभीर नहीं है। अस्पताल परिसर में लगे जहां कैमरे बंद पड़े हैं, कुछ कैमरों के तार, कुछ की लीड निकली हुई है, तो कुछ की फुटेज खराब है। चोरी, दलाल, वसूली आदि घटनाओं पर नजर रखने के लिए लगाए गए कैमरे शोपीश बनकर रह गए हैं।

जब कैमरे खराब स्थिति में हैं तो ऐसे में सिविल सर्जन कक्ष की निगरानी कौन कर रहा है, यह विचारणीय प्रश्न है। वहीं, जिला महिला अस्पताल की ओपीडी में रोजाना बड़ी संख्या में मरीज आते हैं। ऐसे में मरीजों व तीमारदारों की मांग है कि जिला महिला अस्पताल प्रबंधन शीघ्र ही परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरों की मरम्मत कराए और स्पष्ट फुटेज वाला कैमरा लगवाए।

शोपीस बने डफरिन में लगे कैमरे

डफरिन में लगे सीसीटीवी कैमरे शोपीस बनकर रह गए हैं। जिला महिला अस्पताल की सुरक्षा एवं अपराधी गतिविधियों पर निगरानी तथा नियंत्रण रखने के लिए परिसर में अंदर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे। जिससे अस्पताल परिसर में होने वाली गतिविधियों पर अधिकारी कंट्रोल रूम में बैठकर देख सकें। इसके लिए कंट्रोल रूम भी सीएमएस के कार्यालय में ही बनाया गया है।

इसके बावजूद न तो अस्पताल की सुरक्षा ठीक प्रकार से हो रही है और न ही आपराधिक गतिविधियों पर रोक लग पा रही है। इसकी वजह यह है कि अस्पताल प्रबंधन द्वारा परिसर में हर गतिविधि पर नजर रखने के लिए लगाए गए सीसीटीवी कैमरे पूरी तरह से खराब पड़े हैं। यहां लाखों की लागत से लगाए गए सीसीटीवी कैमरों की बुरी स्थिति है। पिछले कई महीनों से यही स्थिति है।

जिसका भरपूर फायदा असामाजिक तत्व और दलाल आसानी से उठा रहे हैं। अस्पताल की लापरवाही का आलम यह है कि डफरिन में महीनों से खराब पड़े सीसीटीवी कैमरों को ठीक नहीं कराया जा रहा है। इससे अस्पताल प्रबंधन में काफी अनियमितता हो रही है।

वहीं, चिकित्सकों एवं कर्मियों की डयूटी पर आने-जाने या अन्य गतिविधियों की भी जानकारी ठीक से नहीं मिल पा रही है। लेकिन अस्पताल प्रबंधन को इससे कोई मतलब नहीं है कि सीसीटीवी फुटेज ठीक है या खराब।

पोल खुलने का डर

जिला महिला अस्पताल में अभी भी अव्यवस्था का आलम है। व्हील चेयर, स्ट्रेचर पर ले जाने का काम मरीज के परिजनों को स्वयं ही करना पड़ रहा है। वहीं, अस्पताल में कुछ स्वास्थ्य कर्मी भी समय पर नहीं आ रहे हैं।

हाल ही के दिनों में डफरिन में स्टाफ और महिला कर्मचारी पर बधाई के नाम पर पैसे वसूलने का आरोप भी मरीजों ने लगाया है। ऐसे में अस्पताल प्रबंधन के लापरवाही की कहीं पोल न खुल जाए इसलिए कैमरों को ठीक कराने में अस्पताल की ओर से कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।

जिला महिला अस्पताल की सीएमएस डा. मनीषा अग्रवाल का कहना है कि अस्पताल के गेट पर लगे कैमरे ठीक हैं। वहीं, खराब फुटेज वाले कैमरों को ठीक कराने के निर्देश संबंधित अधिकारी को दिए गए हैं। खराब सीसीटीवी कैमरों की मरम्मत कराने की प्रक्रिया जारी है। पिछले दिनों कैमरों को दिखाया गया है, जल्द ही परिसर में लगे सभी सीसीटीवी कैमरों को ठीक करा लिया जाएगा।

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