जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर से करवट लेती नजर आ रही है। लंबे समय से राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहे राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे अब एक साथ मंच साझा करने की तैयारी में हैं। स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने के मुद्दे पर दोनों ठाकरे भाइयों के संभावित गठजोड़ की अटकलें तेज हो गई हैं।
बीते दो दशकों से अलग राह पर चल रहे दोनों नेताओं के बीच यह मुद्दा ‘मराठी अस्मिता’ और ‘भाषाई पहचान’ को लेकर एकजुटता का कारण बनता दिख रहा है। गौरतलब है कि 20 साल पहले राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर ‘महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना’ (MNS) का गठन किया था।
क्या बोले संजय राउत?
इस बीच, शिवसेना (UBT) के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने शुक्रवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक तस्वीर साझा की, जिसमें राज और उद्धव ठाकरे साथ नजर आ रहे हैं। तस्वीर के साथ लिखा गया, “महाराष्ट्र के स्कूलों में अनिवार्य हिंदी के खिलाफ एकजुट प्रदर्शन होगा। ठाकरे ही ब्रांड हैं।” इसके साथ साझा एक अन्य फोटो में दोनों भाई एक साथ खड़े हैं और उनके पीछे बालासाहेब ठाकरे की तस्वीर नजर आ रही है।
एक साथ आंदोलन का ऐलान
बताया जा रहा है कि राज ठाकरे ने 6 जुलाई को मुंबई में मार्च का आह्वान किया है, जबकि उद्धव ठाकरे ने 7 जुलाई को आजाद मैदान में आंदोलन की घोषणा की थी। अब दोनों नेताओं ने इसे संयुक्त आंदोलन में बदलने का फैसला लिया है। यह कदम महाराष्ट्र में केंद्र सरकार द्वारा स्कूलों में हिंदी भाषा को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के फैसले के विरोध में उठाया गया है।
हिंदी थोपने का विरोध
उद्धव ठाकरे ने पहले ही राज्य सरकार पर ‘हिंदी लादने’ का आरोप लगाया था। उन्होंने स्पष्ट किया था कि उन्हें किसी भाषा या हिंदी भाषी समाज से कोई विरोध नहीं है, लेकिन वह किसी भाषा को जबरन थोपे जाने के खिलाफ हैं। उन्होंने भाजपा पर ‘भाजपा की बांटने और काटने की नीति’ का भी आरोप लगाया, और कहा कि यह मराठी और अन्य भाषाओं के बीच की एकता को तोड़ने की साजिश है।
भाषा नहीं, सम्मान का मुद्दा
राज और उद्धव ठाकरे दोनों के लिए यह आंदोलन सिर्फ एक भाषा का मुद्दा नहीं बल्कि ‘मराठी माणुस’ के सम्मान का सवाल बन चुका है। यही वजह है कि दशकों पुरानी दूरी अब कम होती दिख रही है।