- ‘संजय दत्त’ और ‘रणबीर कपूर’ की एक्टिंग से फिल्म शमशीरा मचा रही है सिनेमाघरों में धूम, विलन के रोल में बिग स्क्रीन पर छाए ‘संजय दत्त’
- सिनेमाघरों में देखने को मिला फैंस का क्रेज़, फिल्म को देखने पहुंचे लोगो ने फिल्म में डबल रोल में दिखे ‘रणबीर कपूर’ की एक्टिंग के बांधे पूल
डिजिटल फीचर डेस्क |
बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री में रणबीर कपूर, संजय दत्त और वाणी कपूर स्टारर फिल्म शमशेरा की खूब चर्चा हो रही है। ‘शमशीरा’ का ट्रेलर लांच होने के बाद से ही फैंस के अंदर फिल्म को लेरक क्रेज़ देखने को मिल रहा था। अब जब फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज़ हो गयी है तो दर्शक फिल्म देखने के लिए थिएटर में पहुंच रहे है। फिल्म में रणबीर कपूर डबल रोल में हैं। यानि रणबीर के फैंस को दोगुना मजा मिला है। फिल्म की कहानी डकैत ड्रामा है। जो 70, 80 और 90 के दशक की याद दिलाती है। रणबीर कपूर, संजय दत्त और वाणी कपूर जैसे सितारों से सजी ये फिल्म आखिर कैसी है। ये जानने के लिए यहां पढ़िए पूरा रिव्यू।
क्या है कहानी ?
शमशेरा/बल्ली यानी रणबीर कपूर अपने कबीले के मसीहा हैं, जिन्हें निम्न जाति से होने की वजह से अंग्रेजों की उच्च जाति के गुंडों ने त्याग दिया था। अपने पिता की विरासत और समाज को मिली शर्मिंदी से बचाने के लिए वो एक बार फिर अपने लोगों के लिए ब्रिटिश और भ्रष्ट भारतीय पुलिस अधिकारियों जैसे दरोगा शुद्ध सिंह (संजय दत्त) के खिलाफ लड़ता है।
क्या है खास?
रणबीर कपूर की फिल्म शमशेरा 60, 70 और 80 के दशक की बेहतरीन डकैतों की दुनिया पर बनी फिल्मों की याद दिलाती है। इसमें काफी पुरानी यादें नए अंदाज में पेश की गई हैं। फिल्म के लेखक-निर्देशक करण मल्होत्रा और उनके सह-लेखकों ने इन पुरानी यादों को बिल्कुल नए अंदाज में पेश किया है। जो हर किसी वर्ग के दर्शकों को आकर्षित करेगी। फिल्म में रणबीर कपूर की एक्टिंग, संजय दत्त की डायलॉग डिलीवरी, वाणी कपूर का सिजलिंग डांस समेत कई आकर्षण हैं। जो दर्शकों को रिझाने के लिए काफी हैं। फिल्म में रोनित रॉय और सौरभ शुक्ला ने भी अपना किरदार बेहतरीन तरीके से निभाया है। साथ ही क्लाइमेक्स में संजय दत्त और रणबीर कपूर की भिड़ंत भी देखने लायक है।
कहां रह गई कमी?
शमशेरा की शुरुआत कुछ ज्यादा ही विशाल स्तर पर हुई है। इंट्रोडक्शन में ही 10-15 मिनट लगते हैं जबकि इसमें 8-10 मिनट कम किए जा सकते थे। फिल्म का संगीत भी आपको निराश करता है। फितूर के अलावा कोई भी गाना दर्शकों पर छाप छोड़ने में सफल नहीं होता। फिल्म का मेन प्वाइंट डकैत बने रणबीर कपूर की लूट है। जिसे और बेहतरीन बनाया जा सकता था। ये ही हिस्सा फिल्म को आगे की कहानी और कैरेक्टर्स से जोड़ने की ताकत रखता है।
साथ ही, निर्देशक करण मल्होत्रा को इंटरवल और क्लाइमेक्स के अलावा फिल्म में कुछ और बड़े सीन्स लाने चाहिए थे। जो दर्शकों को बांधने में कामयाब होते। खासकर तब जब साउथ सिनेमाई फिल्में आरआरआर और पुष्पा में इसी तरह के कई जबरदस्त सीन्स ने दर्शकों को इंप्रेस किया। फिल्म फर्स्ट हाफ तक बढ़िया चलती है। जबकि सेकेंड हाफ में पटरी से उतरती दिखती है। इंटरवल में सीन्स को हाई नोट पर छोड़ने के बाद दूसरे हाफ की शुरुआत काफी सुस्त है जो फिर से माहौल बनाने में करीब 30 मिनट ले जाती है।
फिल्म का इंटरवल से पहले का फर्स्ट हाफ काफी मज़ेदार और दिलजस्प है लेकिन इंटरवल के बाद की आधी फिल्म को हाई नोट पर पहुंचने के लिए काफी टाइम लग जाता है। कुल मिलाकर देखा जाये तो रणबीर कपूर और संजय दत्त की एक्टिंग ने फिल्म को मसालेदार और एंटरटेनिंग बनाया है। लेकिन फिल्म के गानों की बात करे तो फितूर गाने के अलावा कोई और गाना दर्शको के दिलो को नहीं छू पाया।