रामायण को भारतीय जीवन की आधारशिला कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति ना होगी। इसी तरह राम परिवार को भारतीय पारिवारिक जीवन का सबसे बड़ा आदर्श कहने पर भी शायद ही किसी को आपत्ति हो। इसका कारण यह है कि भगवान राम का परिवार त्याग का सबसे बड़ा उदाहरण प्रस्तुत करता है।
राम परिवार का प्रत्येक सदस्य एक- दूसरे के लिए जीवन के सुखों को खुशी- खुशी क्षण मात्र में त्याग देता है। यही कारण है कि इस आदर्श भारतीय परिवार में हर कोई संतुष्ट दिखाई पड़ता है, हर कोई एक- दूसरे पर विश्वास करता है, सभी आपसी प्रेम में रंगे दिखाई पड़ते हैं।
राम परिवार के इस त्याग की एक झलक आज रामायण के कुछ प्रसंगों के माध्यम से देखते हैं- सर्वविदित है कि महारानी कैकेयी के हठ से श्री राम वनवास जाने को उद्यत होते हैं। इस समय राजा दशरथ की विह्ल दशा किसी से छिपी नहीं रहती। इस समय दशरथ स्वयं राम से कहते हैं कि पुत्र! मेरे आदेश की अवहेलना करो। मुझे राजसिंहासन से अपदस्थ कर कारागार में डाल दो और स्वयं राजपद ग्रहण करो। किसी भी तरह से मेरा परित्याग ना करो। ये पिता के त्याग की पराकाष्ठा नहीं, तो और क्या है?
लक्ष्मण जब श्री राम के साथ वनवास पर जाने से पहले पत्नी उर्मिला से आज्ञा और विदा लेने जाते हैं, तो वे पहले हिचक के कारण कुछ कह नहीं पाते। तब उर्मिला स्वयं उनसे कहती हैं कि नाथ! मैं आपकी मनोदशा समझती हूं। आप सहर्ष वनवास पर श्री राम के साथ जाकर उनकी सेवा कीजिए, यही आपका कर्तव्य है। लक्ष्मण के जाने के बाद उर्मिला ने भी पूरे 14 वर्ष तक नर्म बिछौने का त्याग कर पत्थर की शिला पर ही विश्राम किया। वन में यदि राम- सीता की सुरक्षा के लिए लक्ष्मण ने पूरी रात जागकर पहरा दिया, तो महल में उर्मिला भी 14 वर्ष तक एक दीपक सारी रात जलाए जागती रहीं।
उधर, राम के वन में जाने के बाद भरत कभी राजमहल में नहीं रहे। उन्होंने राजसी जीवन का त्याग कर दिया, स्वयं कुटिया बनाकर रहे और श्री राम की चरण पादुका को सिंहासन पर रख कर उनके नाम से ही राजकार्य करते रहे। वहीं, इस दौरान शत्रुघ्न ने भी अपनी पत्नी और राजसी सुख- ऐश्वर्य का त्याग किया और राजमहल के बाहर उद्यान में एक शिला पर ही पूरे 14 वर्ष जीवन बिताया।
लंका में जब लक्ष्मण जी मेघनाद के दिव्यास्त्र से मूर्छित हो गए और हनुमान उनके लिए संजीवनी लेकर लौट रहे थे, तब भरत ने उन्हें श्री राम का शत्रु समझ तीर से प्रहार किया। श्री राम के भाई का मान रखने के लिए हनुमान ने प्रहार स्वीकार किया और अयोध्या में उतर कर युद्ध का समाचार दिया। इस समाचार को सुनकर कौशल्या माता ने कहा- हे हनुमान! राम से कहना कि लक्ष्मण को लिए बिना अयोध्या ना आएं, भले ही वह कभी अयोध्या ना आ पाएं। वहीं सुमित्रा ने कहा- हनुमान! राम से कहना कि आवश्यकता हो, तो शत्रुघ्न को भेज दूं। अभी उनका एक और भाई सेवा के लिए उपलब्ध है।
दोस्तों, ये होता है असली परिवार। यहां परिवार के लिए त्याग करने की जिम्मेदारी किसी एक के कंधों पर नहीं डाल दी जाती। यहां हर कोई एक- दूसरे के लिए बढ़- चढ़कर त्याग करने को प्रस्तुत है। यही भावना परिवार में आपसी प्रेम और विश्वास की नींव बनाती है। एक- दूसरे के लिए यही पवित्र भावना राम परिवार को बनाती है जीवन का आदर्श।