- सरधना के लिए घोषित हुई सामान्य महिला सीट
- आरक्षण ने कई दावेदारों की उम्मीद पर फेरा पानी
जनवाणी संवाददाता |
सरधना: सोमवार को नगर निकाय के चुनाव को लेकर घोषित हुई आरक्षण ने दावेदारों का गणित पूरी तरह से बिगाड़ दिया। आरक्षण ने कई धुरंधरों को चुनाव से पहले ही चित कर दिया। सरधना के लिए घोषित हुई सामान्य महिला सीट ने कई दावेदारों की उम्मीदारों पर पानी फेर दिया।
क्योंकि कई दावेदार अविवाहित हैं और कुछ ने सामाजिक तौर पर अपनी पत्नी को चुनाव लड़ाने की बात से पहले ही इंकार कर दिया था। आरक्षण घोषित होते ही मैदान से बाहर हुए दावेदारों ने किंग मेकर की भूमिका में आना शुरू कर दिया है। वहीं, आरक्षण घोषित होने के बाद पूरी तरह से मैदान में उतरने के लिए तैयार हुए दावेदारों ने भी अपनी गोट फिर करनी शुरू कर दी है।
कुल मिलाकर आरक्षण ने कई के चेहरे पर खुशी तो कई हताश नजर आए। सरधना कस्बा वैसे तो मिश्रित आबादी वाला कस्बा है। मगर राजनीति तौर पर इसे मुस्लिम बाहुल्य के रूप में देखा जाता है। उसमें भी ओबीसी वोट अधिक आंकी जाती हैं। यही कारण है कि निकाय के चुनाव में अध्यक्ष पद पर ओबीसी की दावेदारी मजबूत रहती है। ओबीसी जिस ओर रुख कर देते हैं, जीत का ताज पहनाते हैं।
पिछले कुछ चुनाव की बात करें तो गत चुनाव में ओबीसी महिला सीट रही। उससे पहले 2012 में सामान्य, 2007 में ओबीसी महिला और उससे पहले भी ओबीसी सीट रही। इस बार अंदाजा लगाया जा रहा था कि सरधना सीट सामान्य या एससी आ सकती है। सामान्य की अधिक संभावना होने के कारण सामान्य वर्ग से कई मजबूत दावेदारों ने चुनावी ताल ठोक रखी थी। आरक्षण घोषित होने से पहले ही जनता के बीच जाक वादे करने भी शुरू कर दिए थे।
इनमें कई तो अविवाहित हैं और कई ने परिवार से महिला को चुनाव लड़ाने से इंकार कर दिया था। सोमवार को अध्यक्ष पद के लिए आरक्षण सामान्य महिला घोषित किया। इस घोषणा ने तमाम दावेदारों की उम्मीद पर पानी फेर दिया। आरक्षण ने कई धुरंधरों को चुनाव से पहले ही मैदान से बाहर कर दिया।
वहीं कई दावेदारों के चेहरे लिखे उठे। अब आरक्षण घोषित होने के बाद मैदान से बाहर हुए दावेदारों ने किंग मेकर की भूमि में आना शुरू कर दिया है। यानी चुना लड़ने की जगह लड़ाने की ओर ध्यान शुरू कर दिया है। वहीं आरक्षण से मजबूत हुई दावेदारी के बाद भावी उम्मीदवारों ने अपनी गोट नए सिरे से बिठाना शुरू कर दिया है। आरक्षण घोषित होते ही नगर में चुनाव को लेकर चर्चा गर्म रही।
निकाय चुनाव: जिसका हमें था इंतजार…वो घड़ी आ गई
किठौर: लंबे इंतजार और तमाम आशंकाओं व संभावनाओं के बीच नगर निकायों की अध्यक्ष पद आरक्षण सूची सोमवार शाम को जारी हो गई। जिसे देख किठौर और शाहजहांपुर में न सिर्फ संभावित चेयरमैन प्रत्याशियों के चेहरे खिल उठे बल्कि समर्थकों ने भी मिठाई बांटने के साथ आतिशबाजी कर खुशी मनाई। जश्न का महौल देख लगा कि दोनों कस्बों के बाशिंदों को शायद इसी घड़ी का इंतजार था।
सियासत में किठौर का स्थानीय से लेकर प्रदेश स्तर तक अलग मुकाम है। मुस्लिम बाहुल्य इस कस्बे में छह बार हुए निकाय चुनाव में सिर्फ 2017 में अध्यक्ष पद सामान्य महिला आरक्षित रहा। खास बात यह है कि 1988 में नगर पंचायत घोषित होने के बाद से यहां अध्यक्ष पद पर सामान्य वर्ग के मुस्लिमों का ही कब्जा रहा है, लेकिन पिछली बार सीट आरक्षित होने के कारण इस बार सामान्य वर्ग के संभावित अध्यक्ष पद प्रत्याशी उहापोह की स्थिति में थे।
कुछेक जहां अध्यक्ष पद दूसरे वर्गों के लिए आरक्षित होने आशंका जता रहे थे वहीं कई प्रत्याशियों को सीट अनारक्षित श्रेणी में आने की उम्मीद थी। यही स्थिति कस्बा शाहजहांपुर में भी देखने को मिल रही थी। यहां दूसरी बार होने जा रहे निकाय चुनाव में सामान्य वर्ग से अध्यक्ष पद के कई संभावित प्रत्याशी तो आरक्षण स्पष्ट न होने के चलते चुप्पी साधे हुए थे। क्योंकि पिछले चुनाव में यहां किठौर की तरह ही अध्यक्ष पद सामान्य महिला आरक्षित था।
बहरहाल सोमवार शाम जारी हुई आरक्षण सूची में जैसे ही दोनों कस्बे अनारक्षित घोषित हुए संभावित प्रत्याशियों और समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ गई। समर्थकों ने मिठाईं बांटने के साथ जमकर आतिशबाजी की। उधर, खरखौदा में नगर पंचायत अध्यक्ष पद की की सीट ओबीसी आरक्षित होने से सामान्य सीट की संभावना को लेकर चुनाव की तैयारी कर रहे संभावित उम्मीदवारों के चेहरों पर छाई मायूसी।
खरखौदा नगर पंचायत अध्यक्ष पद की सीट को लेकर रोज नए नए क्यास लगाए जा रहे थे की सीट सामान्य या एससी के खाते में जाएगी जिसको लेकर सामान्य सीट तथा एससी सीट की संभावना को लेकर हाल ही के चेयरमैन पुत्र सहित दो पूर्व चेयरमैन के अलावा आधा दर्जन से अधिक संभावित उम्मीदवार जोर शोर से चुनाव की तैयारी कर रहे थे। सोमवार शाम जैसे ही संभावित उम्मीदवारों को सीट ओबीसी के खाते में चले जाने का पता चला तो सभी हैरान हो गए और चेहरों पर मायूसी छा गई।
एक दशक से खरखौदा नगर पंचायत अध्यक्ष पद की सीट आरक्षित चली आ रही है जिसमें 2012 में ओबीसी महिला तथा 2017 में एससी पुरुष आरक्षित की गई थी। जिसके चलते इस बार सामान्य सीट आने की अधिक संभावना मान संभावित उम्मीदवार जी जान से चुनाव की तैयारी कर रहे थे, लेकिन सोमवार शाम ओबीसी सीट होने की घोषणा से सभी संभावित उम्मीदवारों की उम्मीदों पर पानी फिर गया। और चेहरों पर मायूसी छा गई।
अनारक्षित चुनावी दंगल में उतरने को निर्दलीय कसने लगे लंगोट
फलावदा: स्थानीय नगर पंचायत अध्यक्ष पद अनारक्षित होने से भावी उम्मीदवारों के संशय पर विराम लग गया है। सियासी धुरंधर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी दंगल में उतरने को तैयार है। भाजपा के टिकट की आस में कई लोग पार्टी के दिशा निर्देश के इंतजार में खामोश बैठे हैं।
स्थानीय नगर पंचायत अध्यक्ष पद अनारक्षित होने से चुनाव लड़ने के ख्वाहिशमंदों का रास्ता साफ हो गया है। लिहाजा उम्मीदवारों की भरमार रहेगी। कस्बे में वोट बैंक रखने वाले भावी उम्मीदवार भी सियासी दंगल में उतरने के लिए लंगोट कसने लगे हैं। पंचायत की सत्ता की खातिर नगर के वार्डों में मोहरे फिट करने के लिए सभी गुटों में विचार हो रहा है। चर्चा है कि वर्ष 2000 में कई पार्टियों के संगठन के टिकट पर चेयरमैन बने नैयर आलम भी इस बार खुद चुनाव लड़ने के मूड में है।
वर्ष 2012 में इसी संगठन के वोट बैंक से चेयरपर्सन बनी आयशा खातून के पुत्र मो ईसा ने भी कस्बे में जनसंपर्क अभियान चला रखा है। आरक्षण की मजबूरी के चलते उन्होंने वर्ष 2017 में सपा के सिंबल पर पिछड़े वर्ग से उम्मीदवार खड़ा किया था। इस बार वह अपने गुट की स्थिति मजबूत मानकर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। एक लंबे अरसे से नगर पंचायत की सत्ता पर काबिज रहने वाले पूर्व विधायक स्व. जकीउद्दीन के गुट से भी सैयद रिहान तैयारी में है। उपरोक्त सभी भावी उम्मीदवार निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे।
इन भावी प्रत्याशियों में सियासी पार्टी के सिंबल पर कतई भरोसा नहीं है। दरअसल, सिंबल पर यहां किसी को कभी जीत नहीं मिल पाई। सबसे अधिक कैडर वोट रखने वाली भाजपा विगत चुनाव की भांति इस बार भी सिंबल पर ही दाव लगाएगी। चुनावी हलचल के बावजूद भाजपा के भावी उम्मीदवार आलाकमान के आदेश निर्देशों के इंतजार में खामोशी से बैठे हुए हैं।
भाजपाई इस बार निकाय चुनाव का मिथक तोड़ने को लामबंद हो रहे हैं। हालांकि आजादी से अब तक एक बार भी भाजपा को अपने दम पर नगर पंचायत की सत्ता नसीब नहीं हुई है। आरक्षण की तस्वीर साफ होते ही कस्बे में चुनावी हलचल तेज हो गई है। कयास लगाए जा रहे हैं। इस बार कई उम्मीदवारों के बीच मुकाबला कांटे का रहेगा।
आरक्षण की स्थिति साफ, चुनावी रण में कूदे संभावित प्रत्याशी
सरूरपुर: नगर पंचायत में आरक्षण साफ होने के बाद संभावित प्रत्याशी चुनावी रण में जोर आजमाइश करने के लिए कूद चुके हैं। नगर पंचायत अध्यक्ष के प्रत्याशियों व सभासद पद के प्रत्याशियों के लिए जोर आजमाइश का काम आरक्षण की स्थिति साफ होने के बाद शुरू हो गया है। इसके लिए दो-दो हाथ खींच कर संभावित प्रत्याशी मैदान में ताल ठोककर कूद चुके हैं। जिसके लिए अपने पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए संभावित प्रत्याशी ने जोर आजमाइश शुरू कर दी है।
आरक्षण साफ होने के तुरंत बाद चुनावी रण में कूद कर प्रत्याशियों ने तेजी ला दी है। हालांकि अभी संभावित चुनाव की तिथि घोषित नहींं हो पाई है, लेकिन संभावित प्रत्याशियों भाग्य प्रत्याशियों और पूर्व पदों पर काबिज अध्यक्षों व सभासदों के बीच घमासान चढ़ने के पूरे आसार बन गए हैं। इसे लेकर नगर पंचायत में राजनीतिक माहौल की सरकार में पूरी तरह से गर्मा चुकी हैं। नगर पंचायत को पोस्टर बैनर से पाट दिया गया है।
नगर पंचायतों में पोस्टर बैनर के साथ सोशल मीडिया पर पर भी वार छिड़ गया है। इस लेकर अपने पक्ष में समर्थन जुटाने और एक-दूसरे को उठाने बैठाने का भी सिलसिला और जोड़-तोड़ का काम तेजी के साथ शुरू हो गया है। चुनाव की तिथियों और आरक्षण की तिथि को लेकर टकटकी लगाए बैठे संभावित प्रत्याशियों में आरक्षण की स्थिति साफ होते ही अपने पत्ते खोल दिए हैं।
पिछली बार के निकाय चुनाव में पहली बार नगर पंचायत के गठन के बाद जीत का स्वाद चखने वाले नगर पंचायत हर्रा व खिवाई में चुनावी रण में और तेजी आ गई है। यहां पदों को कब्जाने के लिए संभावित प्रत्याशियों ने जी-जान लगाकर जोड़-तोड़ शुरू करते हुए चुनावी रणभेरी बजा दी है। पहली बार जीत का स्वाद चखने के बाद दूसरी बार की तैयारी के लिए नगर पंचायत अध्यक्षों में पूर्व प्रत्याशियों में जमकर वार छिड गया है।
वहीं, दूसरी ओर नगर पंचायत में सभासद पदों के लिए भी घमासान होने के पूरे आसार बन गए हैं और संभावित प्रत्याशियों ने अभी से ही जोड़-तोड़ शुरू करने के साथ पोस्टर वार छिड़ गया है। कुछ संभावित प्रत्याशियों ने तो बड़े-बड़े दावे और वादे भी कर रखे हैं।
नगर पंचायत अध्यक्ष सीट महिला घोषित होने पर कहीं खुशी कही गम
परीक्षिगढ़: नगर पंचायत अध्यक्ष आरक्षण सूची देखकर किसी के खिले चेहरे तो कई चेहरों पर छाई मायूसी। नगर पंचायत अध्यक्ष चुनाव की आरक्षण सूची आने पर कुछ प्रत्याशियों को झटका लगा तो कुछ दावेदारों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। नगर पंचायत अध्यक्ष सीट को लेकर चल रहा घमासान सोमवार देर शाम खत्म हो गया। चुनाव आयोग ने परीक्षितगढ़ नगर पंचायत अध्यक्ष महिला सीट घोषित की है।
नगर पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म था तथा सीट को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही थी। सोमवार को चुनाव आयोग ने नगर पंचायत अध्यक्ष महिला सीट घोषित कर दी है। जिससे कुछ उम्मीदवारों के अरमानों पर पानी फिरा कुछ के चेहरे खुशी से चहक उठे। बता दे कि सन 2012 में भाजपा से प्रत्याशी राखी अमित मोहन गुप्ता व 2017 में राखी मोहन गुप्ता के पति वर्तमान चेयरमैन अमित मोहन टीूप ने नगर पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में विजय हासिल की थी।
चुनाव आंकडेÞ बताते हैं कि दो बार पूर्व चेयरमैन हिटलर त्यागी बसपा पार्टी से नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीते थे। पिछले हुए चुनाव में बहुत कम वोटों से अमित मोहन टीपू ने हरा दिया था। चुनाव को लेकर नगर की गलियों में चुनावी माहौल गर्मा गया है। भाजपा से अमित मोहन टीपू की पत्नी पूर्व चेयरपर्सन राखी मोहन गुप्ता, गौरव गर्ग की पत्नी, गुल्लू प्रधान की पत्नी आदि कई चेहरे टिकट की दौड़ में है
तथा 10 वर्षों से चेयरमैन बनने का ख्वाब सजाएं हुए पूर्व चेयरमैन हिटलर त्यागी की तैयारियां धरी की धरी रह गई है। उनका मुकाबला सीधा भाजपा प्रत्याशी से माना जा रहा था। त्यागी समाज से भी कोई नया चेहरा निकलकर आएगा। जिससे चुनावी समीकरण बदल जाएंगे। आरक्षण सूची जारी होने पर दिग्गजों के अरमानों पर पानी फिर गया है। बसपा व सपा से प्रत्याशी कम ही है। सबसे ज्यादा भाजपा के टिकट पर महामारी रहेगी।
आरक्षण जारी होने के बाद प्रत्याशियों के चेहरे लटके
दौराला/लावड़: निकाय चुनाव का आरक्षण जारी होने के बाद से कुछ प्रत्याशियों के चेहरे पर मुस्कान आ गई तो कुछ प्रत्याशियों के चेहरे मुरझाा गए। सोमवार को निकाय आरक्षण की सूची जारी कर दी गई। जिसके मद्देनजर दौराला नगर पंचायत को ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित किया गया है। जबकि लावड़ को सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित किया गया है। दोनों सीटों क ा आरक्षण फाइनल होने के बाद से लोगों में सरगर्मी तेज हो गई है।
क्योंकि दौराला की सीट को सामान्य में माना जा रहा था। जबकि लावड़ की सीट को ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित माना जा रहा था, लेकिन दोनों की सीट में बड़ा बदलाव देखने को मिला। जिसके बाद से प्रत्याशियों के चेहरे पर सिकन आ गई है। दौराला में सामान्य वर्ग सीट के लिए कई प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। सभी अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे थे, लेकिन इस बार अचानक आरक्षण में परिवर्तन हो गया।
क्योंकि यह सीट ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित हो गई है। जिसके बाद सामान्य वर्ग की श्रेणी में चुनाव लड़ने की योजना बना रहे प्रत्याशियों के चेहरे लटक गए है। उधर, लावड़ नगर पंचायत की सीट सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित हो गई है। यहां कुछ प्रत्याशी ओबीसी वर्ग के लिए इस सीट को आना मान रहे थे, लेकिन अचानक यह सीट सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित होने के बाद से यहां भी प्रत्याशियों के चेहरे लटक गए हैं।
जिसके चलते उनकी परेशानी बढ़ गई है। हालांकि अब देखना है कि दौराला और लावड़ नगर पंचायत में चुनाव का क्या मोड़ होगा। उधर, दौराला और लावड़ में सीट के आरक्षण को लेकर आपत्ति दाखिल करने के लिए प्रत्याशियों ने तुरंत तैयारी शुरु कर दी है।