- दोषी पर होगी कार्रवाई या फिर जांच के नाम पर दोषी को बचाने के लिये अधिकारी करेंगे खानापूर्ति
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: नगर निगम के जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र विभाग से जारी जन्म-प्रमाण पत्र को लेकर बखेड़ा हुआ। वह असली है या फर्जी अभी स्पष्ट नहीं हो सका है। पार्षद संजय सैनी के द्वारा जो आरोप लगाया गया था। जिसमें तीन महीनों से जिस प्रमाण पत्र की फाइल एसडीएम के यहां भेजी जानी थी। उसके बाद नगर निगम से जन्म-प्रमाण पत्र जारी किया जाना था।
उसे सात हजार रुपये लेकर बिना एसडीएम के यहां अनुमति को भेजे जाने से पहले ही जारी कर दिया गया। जिसको लेकर चर्चा रही कि जांच में नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने उसे जांच में फर्जी बता दिया है, लेकिन समझौता होने के बाद नगर स्वास्थ्य अधिकारी डा. गजेंद्र सिंह से बात की गई तो उन्होंने बताया कि यह जन्म-प्रमाण पत्र असली या फिर फर्जी अभी तक स्पष्ट नहीं हैं।
नगर निगम के जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र विभाग में भ्रष्टाचार एवं अभद्र व्यवहार को लेकर पार्षद संजय सैनी व लिपिक दिनेश के बीच विवाद हुआ था। इस विवाद में तो महापौर हरिकांत अहलूवालिया एवं तमाम भाजपा के दिग्गज नेताओं के द्वारा पार्षद व लिपिक के बीच गले मिलवाकर मामले में समझौता करा दिया। जिसमेंं भ्रष्टाचार व अभद्र व्यवहार का मामला भी खत्म हो गया, लेकिन इस पूरे प्रकरण में एक बड़ा यक्ष प्रश्न यह है कि जिस जन्म-प्रमाण पत्र को बिना एसडीएम के यहां भेजे जाने से पहले ही सात हजार रुपये में जारी करना पार्षद संजय सैनी द्वारा बताया गया।
उसको नगर स्वास्थ्य अधिकारी डा. गजेंद्र सिंह के द्वारा फर्जी बताए जाने की चर्चा चली। रविवार को मामले में समझौते के बाद सोमवार को डा. गजेंद्र सिंह से इस पूरे प्रकरण पर बातचीत की गई कि नगर निगम में आये दिन फर्जी जन्म-एवं मृत्यु प्रमाण पत्र के मामले सामने आते रहे हैं, लेकिन इस तरह का पहला मामला संज्ञान में आया कि खुद एक जनप्रतिनिधि के रूप में पार्षद संजय सैनी द्वारा जो प्रमाण पत्र सात हजार रुपये खर्च करके बनवाया उसे फर्जी बताया जा रहा है।
जिस पर जनवाणी से बातचीत में उनके द्वारा बताया गया कि जिस दिन पार्षद एवं लिपिक के बीच विवाद हुआ मैं उस समय कार्यालय से घर के लिये चला गया था। उसके बाद से अभी तक नगर निगम नहीं पहुंचा तो फिर वह जन्म-प्रमाण पत्र असली है या फिर नकली यह स्पष्ट नहीं हैं। न ही मेरे द्वारा जन्म प्रमाण पत्र को असली बताया गया और न ही फर्जी बताया गया। पार्षद व लिपिक दोनों के बीच विवाद हुआ था,
जिसमें भ्रष्टाचार व अभद्र व्यवहार के आरोप-प्रत्यारोप लगाए गए और उनमें उसमें समझौता होने की बात भी सामने आई, लेकिन जांच में मेरे द्वारा जन्म प्रमाण पत्र को फर्जी या असली नहीं बताया गया। वह तो निगम कार्यालय के खुलने के बाद ही रिकार्ड देने के बाद पता चल सकेगा कि प्रमाण पत्र असली है या फर्जी।