एक दिन भगवान बुद्ध ने सोचा अपने शिष्यों को दीक्षा देने के बाद उनकी परीक्षा ली जाए। उन्होंने शिष्यों से कहा, ‘तुम सभी जहां कहीं भी जाओगे वहां तुम्हें अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के लोग मिलेंगे। अच्छे लोग तुम्हारी बातों को गौर से सुनेंगे और तुम्हारी सहायता करेंगे, लेकिन बुरे लोग तुम्हारी निंदा करेंगे और तुम्हें गालियां देंगे। तुम्हें इससे कैसा लगेगा?’ एक गुणी शिष्य ने बुद्ध को जवाब दिया, ‘मैं तो किसी को बुरा नहीं समझता। यदि कोई मेरी निंदा करेगा या मुझे गालियां भी देगा तो मैं समझूंगा कि वह भला व्यक्ति है, क्योंकि उसने मुझे सिर्फ गालियां ही दीं, कम से कम मुझ पर धूल तो नहीं फेंकी।’बुद्ध ने पूछा, ‘और यदि कोई तुम पर धूल ही फेंक दे तो?’ ‘फिर भी मैं उसे भला ही कहूंगा, क्योंकि उसने सिर्फ धूल ही तो फेंकी, थप्पड़ तो नहीं मारा।’ ‘और यदि कोई थप्पड़ ही मार दे तो क्या करोगे?’ ‘मैं उन्हें बुरा नहीं कहूंगा, क्योंकि उन्होंने मुझे थप्पड़ ही तो मारा, डंडा तो नहीं मारा।’ ‘यदि कोई डंडा मार दे तो?’ ‘तब मैं उसे धन्यवाद दूंगा, क्योंकि उसने मुझे केवल डंडे से ही मारा, हथियार से तो नहीं मारा।’ ‘लेकिन मार्ग में तुम्हें कभी डाकू भी मिल सकते हैं जो तुम पर घातक हथियार से प्रहार कर सकते हैं।’ ‘तो क्या? मैं तो उन्हें दयालु ही समझूंगा, क्योंकि वे केवल मारते ही हैं, मार नहीं डालते।’ ‘और यदि वे तुम्हें मार ही डालें तो?’ शिष्य बोला, ‘इस जीवन और संसार में केवल दु:ख ही है। जितना अधिक जीवित रहूंगा उतना अधिक दु:ख देखना पड़ेगा। जीवन से मुक्ति के लिए आत्महत्या करना तो महापाप है। यदि कोई जीवन से ऐसे ही छुटकारा दिला दे तो उसका भी उपकार मानूंगा।’ शिष्य के यह वचन सुनकर बुद्ध को अपार संतोष हुआ। वे बोले तुम धन्य हो। केवल तुम ही सच्चे साधु हो। सच्चा साधु किसी भी दशा में दूसरे को बुरा नहीं समझता। तुम सदैव धर्म के मार्ग पर चलोगे।’
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