Sunday, June 30, 2024
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सफेद मूसली की खेती

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सफेद मूसली का औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह एक ऐसी जड़ी-बूटी मानी गई है, जिसमें किसी भी प्रकार की तथा किसी भी कारण से आई शारीरिक शिथिलता को दूर करने की क्षमता पाई जाती है। यह इतनी पौष्टिक तथा बलवर्धक होती है कि इसे दूसरे शिलाजीत की संज्ञा दी जाती है। सफेद मूसली एक बहुत ही उपयोगी पौधा है, जो कुदरती तौर पर बरसात के मौसम में जंगल में उगता है। सफेद मूसली की जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक और यूनानी दवाएं बनाने में किया जाता है। इस की उपयोगिता को देखते हुए इस की कारोबारी खेती भी की जाती है। सफेद मूसली की कारोबारी खेती करने वाले राज्य हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल व वेस्ट बंगाल (ज्यादा ठंडे क्षेत्रों को छोड़कर) में सफलता पूर्वक की जा सकती है। विश्व भर में वार्षिक उपलब्धता लगभग 5000 टन है। जबकि इसकी मांग लगभग 35000 टन है। इस जड़ी बूटी को बचाने के लिए किसानों के खेतों में खेती करना आवश्यक हो गया है। सफेद मुसली की खेती कर किसान अपने आर्थिक स्थिति को सुधार सकते हैं।

सफेद मूसली की बुवाई का समय और विधि

सफेद मूसली की बुवाई का सही तरीका अधिक उपज सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बुवाई मानसून के आगमन की पहली या दूसरी बारिश में की जानी चाहिए। बुवाई के लिए मिट्टी की बनावट और जल निकासी का ध्यान रखना आवश्यक है। सफेद मूसली की खेती ऊंचे बेड्स, मेड़ों या समतल बेड पर की जा सकती है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी रखनी चाहिए। सही बुवाई विधि से पौधों का विकास अच्छा होता है और उपज में वृद्धि होती है, जिससे किसानों को अधिक लाभ मिलता है। एक हेक्टेयर क्षेत्र में बुवाई के लिए 600 से 1000 किलोग्राम रोपण सामग्री (जड़ें) की आवश्यकता होती है। सामग्री की गुणवत्ता और वजन का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

सिंचाई

ड्रिप सिंचाई सफेद मूसली की व्यावसायिक खेती के लिए आर्थिक और व्यवहार्य पाई गई है। वर्षा के पैटर्न के अनुसार 10-15 दिनों के अंतराल पर कम से कम 6-8 सिंचाई की आवश्यकता होती है।

उर्वरक

अच्छे परिणाम के लिए भूमि की तैयारी के समय 10-15 टन/हेक्टेयर गोबर की खाद डाली जा सकती है। पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए प्रति हेक्टेयर 50:40:40 किलोग्राम एनपीके का उपयोग अनुकूल है। सही सिंचाई और उर्वरक के उपयोग से पौधों की वृद्धि और उपज में वृद्धि होती है, जिससे किसानों को बेहतर मुनाफा प्राप्त होता है।

मिट्टी और जलवायु की अनुकूलताए

सफेद मूसली के लिए अच्छी जल निकास वाली बलुई दोमट और दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। इसका पीएच 6.0 से 8.0 के बीच होना चाहिए। यह पौधा 30 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान और 500-1500 मिमी वर्षा में अच्छी तरह बढ़ता है। सही मिट्टी और जलवायु का चयन करने से सफेद मूसली की फसल अच्छी होती है और उपज में वृद्धि होती है, जिससे किसानों को अधिक लाभ मिलता है।

निराई-गुड़ाई

सफेद मूसली की अच्छी उपज के लिए फूल निपिंग और हाथ से निराई-गुड़ाई आवश्यक होती है। पुष्पक्रम दिखाई देने पर नियमित रूप से निपिंग करनी चाहिए। इससे जड़ों की उपज में 35 प्रतिशत तक वृद्धि हो सकती है। फूल निपिंग से पौधों की ऊर्जा जड़ों के विकास में लगती है, जिससे उपज बढ़ती है। फसल की वृद्धि के दौरान दो से तीन बार हाथ से निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। इससे पौधों को पोषक तत्व मिलते हैं और उनकी वृद्धि बेहतर होती है। निराई-गुड़ाई से मिट्टी की गुणवत्ता भी बनी रहती है। फूल निपिंग और निराई-गुड़ाई से पौधों की सेहत अच्छी रहती है और उपज में वृद्धि होती है, जिससे किसानों को अधिक मुनाफा प्राप्त होता है।

कटाई का समय

सफेद मूसली की कटाई नवंबर से दिसंबर के बीच की जानी चाहिए। पत्ती मुरझाने और जड़ पकने के बीच का समय महत्वपूर्ण होता है। कटाई से पहले हल्की सिंचाई करनी चाहिए ताकि जड़ों को आसानी से निकाला जा सके।

कटाई के बाद का प्रबंधन

खुदाई के बाद जड़ों को 3-4 दिनों तक छाया में सुखाया जाता है। इससे नमी और चिपकी हुई मिट्टी हट जाती है। इसके बाद जड़ों को धोकर, छीलकर और सुखाया जाता है। सही कटाई और प्रबंधन से सफेद मूसली की गुणवत्ता और शेल्फ-लाइफ सुनिश्चित होती है, जिससे बाजार में अच्छे दाम मिलते हैं।

प्रसंस्करण विधियां

औषधीय उपयोग के लिए जड़ों को धोकर, छीलकर और स्क्रैपिंग द्वारा साफ किया जाता है। इसके बाद इन्हें 35-40त्उ तापमान पर 3-4 दिनों के लिए छाया में सुखाया जाता है। सूखने के बाद मूसली को पॉली बैग में पैक किया जाता है। सही प्रसंस्करण से मूसली की गुणवत्ता बनी रहती है और प्रीमियम मूल्य प्राप्त होता है, जिससे किसानों को अधिक मुनाफा प्राप्त होता है।

सहफसल की संभावनाएं

सफेद मूसली को अरहर, लोबिया, मूंग, टमाटर, अश्वगंधा और काले चने जैसी फसलों के साथ उगाया जा सकता है। ये पौधे अधिक प्रतिस्पर्धा नहीं करते हैं और उत्पादक संघों को बढ़ावा देते हैं। सहफसल से भूमि का उपयोग अधिकतम होता है और विभिन्न फसलों का उत्पादन बढ़ता है, जिससे किसानों को अधिक मुनाफा प्राप्त होता है।


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