Saturday, June 29, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादमुक्ति और दान

मुक्ति और दान

- Advertisement -

Amritvani


अहं का त्याग करके प्रसन्नतापूर्वक निस्वार्थ भाव से किया जाने वाला सहयोग ही दान है। सनातन धर्म में दान को सबसे पुण्य का कार्य माना गया है। दान देने की स्वाभाविक प्रक्रिया मानव मन में सहज रूप से उत्पन्न हो सकती है और यह किसी क्रिया के विपरीत भी किया जाता है। दान के अनेक रूप हैं-अन्न दान, वस्त्रदान, कन्यादान, ज्ञानदान, अंगदान…आदि । दान मोह से मुक्ति का कारण बन सकता है। किसी भूखे, गरीब, लाचार, असहाय व्यक्ति के लिए अन्न, वस्त्र…इत्यादि ऐसा महत्व रखते हैं जैसा कि भक्तों के लिए ईश्वर के दर्शन।

हिंदू वैवाहिक संस्कार के अंतर्गत जब वधू पक्ष से कन्या के पिता अपनी पुत्री का दान करते हैं तो उसे कन्यादान कहा जाता है, जिसे महादान कहा गया है। लेकिन ऐसा दान जो बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी दिखावे के और बिना किसी प्रसिद्धि की आकांक्षा से गुप्त रूप से किया गया हो, वह गुप्तदान सर्वश्रेष्ठ है। शास्त्रों में कहा गया है कि माता, पिता, गुरु, दोस्त, विनयी, परोपकारी व्यक्ति, दीन, अनाथ और सज्जन इन नौ लोगों को दान करने से सफलता प्राप्त होती है।

सबसे उत्तम दान की बात करें तो ज्ञानदान ऐसा दान है जिसे जितना दो उतना हीं आपको भी मिलेगा। अर्थात ज्ञान कभी कम या खत्म नहीं होने वाला सर्वोत्तम दान है। कुरान के अनुसार, ‘प्रार्थना ईश्वर की तरफ आधे रस्ते तक ले जाती है, उपवास हमको उनके महल के दरवाजे तक पहुंचा देता है और दान से हम अंदर प्रवेश करते हैं।’ दान करने की कोई सीमा नहीं है। यह एक तिनके मात्र से लेकर अनंत हो सकता है। दान करने वाले व्यक्ति का धनवान होने से ज्यादा महत्वपूर्ण व्यक्ति का हृदय निश्छल व लोभरहित होना महत्वपूर्ण है।
                                                                                                  प्रस्तुति : पल्लवी सिंह


janwani address 9

What’s your Reaction?
+1
0
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments