Saturday, June 21, 2025
- Advertisement -

सावित्रीबाई फुले को अतीत में नहीं वर्तमान में देखने की जरूरत

RAVIWANI


anishशिक्षा समाज के जागरण में मुख्य भूमिका निभाती है। वास्तव में शिक्षा किसी भी देश या समाज के विकास का आधारभूत ढांचा होता है। यह विदित है कि जिस समाज या देश की शिक्षा प्रणाली उच्च कोटि की होती है या यूं कहें कि जिस समाज या देश की शिक्षा उस समाज के सापेक्ष होती है, उस समाज के तत्व निहित होते हैं, उस देश का विकास बहुत तेज गति से होता है । आज दुनिया भर में यह प्रमाणित हो चुका है कि शिक्षा हर एक नागरिक का सम्पूर्ण विकास करती है। शिक्षा हमें जहां एक ओर स्कूली पाठ्यक्रमों से मिलती है वहीं दूसरी ओर सामाजिक परम्पराओं से भी मिलती है। समाज का ढांचा जैसा होगा शिक्षा उतनी ही महत्वपूर्ण हो जाती है। मतलब यह कि समाज का ढांचा यदि निम्न वर्ग का है तो उस समाज के शिक्षा कि महत्ता और अधिक बढ़ जाति है।

गौरतलब है कि जिस समाज के भीतर स्त्रियाँ अधिक जागरूक होती है वह समाज कहीं अधिक विकसित हो रहा होता है। स्त्रियों के भीतर एक प्रशासक की क्षमता पुरुषों की अपेक्षा अधिक बेहतर होता है। भारत देश में ऐसी कई नायिकाएँ हैं, जिन्होंने अपना योगदान देकर समाज को एक नयी दिशा प्रदान की है। इनमें सावित्रीबाई फुले का नाम अग्रणीय है। इन्हें क्रांति ज्योति भी कहा जाता है।

क्रांति सिर्फ राजनीतिक रूप में नहीं होती बल्कि समाज के भीतर फैली विभेदता, अंधविश्वास आदि को दूर करने के लिए विचारों कि क्रांति भी होती है। सावित्रीबाई फुले के द्वारा जलायी गयी ज्योति आज के समय में और अधिक प्रासंगिक है। आज देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के योगदान को जिस तरह याद करना चाहिए,वैसे नहीं किया जाता।

उन्नीसवीं सदी में जब देश में राजनैतिक गुलामी के साथ-साथ सामाजिक गुलामी का भी दौर था, तब सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा के महत्व को जाना, समझा और महिलाओं की आजादी के नए द्वार खोलकर उनमें नई चेतना का सृजन किया। स्त्रियों को उनके अधिकारों के प्रति चेतना से लैस किया। यदि दूसरे पक्ष से देखें तो हम पाते हैं कि संविधान लागू होने बाद स्त्रियों को उनका अधिकार कानूनी रूप से मिला है, किन्तु सावित्रीबाई फुले इस अधिकार की बात स्वतन्त्रता के पहले ही कर रही थीं।

इस लिहाज से आज के समय में उनके द्वारा किए गए योगदान को समझना और जानना और भी जरूरी हो जाता है कि कैसे उन्होंने उस दौर में स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सती प्रथा, बाल या विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों पर आवाज उठाई होगी? कैसे उन रूढ़िवादी परंपराओ को तोड़कर महिलाओं को पढ़ने व आगे बढ़ने की राह दी होगी और देश की आधी आबादी महिलाओं को शिक्षा के माध्यम से मुख्यधारा में ला खड़ा किया होगा।

उनका यह कार्य उनके स्त्री होने के कारण कहीं अधिक दुरूह था जबकि पूरा समाज पितृसत्ता कि जड़ों से लैस था। ऐसे में दांत के भीतर जीभ बनकर उन्होंने न केवल स्त्रियों के बारें में सोचा बल्कि एक नया रास्ता भी तैयार किया। तत्कालीन प्रतिकूल परिस्थितियों में समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले एक युग नायिका बनकर उभरीं। उन्हें सिर्फ समाज सुधारक कहकर उनके द्वारा किए गए कार्यों को सीमित नहीं किया जा सकता।

अपनी तीक्ष्ण बुद्धि, निर्भीक व्यक्तित्व, सामाजिक सरोकारो से ओत-प्रोत ज्योतिबा फुले के साथ कंधे से कंधा मिलाकर दकियानूसी समाज को बदलने हेतु इन्होंने अपने तर्कों के आधार पर बहस किया। आज की स्त्री अभी भी इन तर्कों को अपने विषय वस्तु में शामिल करने से कतराती है। वे स्त्री जीवन को गौरवान्वित किया एवं सामाजिक न्याय को लक्षित किया।

दरअसल आज देखिये तो सावित्रीबाई फुले को सिर्फ दलित वर्ग की समाज सुधारक के तौर पर ही देखा जाता है। कहा जाता है कि ‘स्त्रियाँ जन्म से ही शूद्र होती हैं’ हालांकि वर्णव्यवस्था के अनुसार शूद्र सबसे निचले पायदान पर रखा गया है इसलिए स्त्रियाँ भी समाज में सबसे निचले पायदान पर ही मानी गई हैं चाहें वह किसी वर्ग/जाति की हों। ऐसे में यदि सावित्री जी स्त्री हितों की बात करती हैं तो वह सिर्फ दलित स्त्रियों की ही बात नहीं करती हैं।

उनकी पाठशाला और विधवा आश्रमों में सभी वर्गों की महिलाओं का प्रवेश होता था। किन्तु आज के समय में हम यह देखते हैं कि ज्यादातर गैर दलित स्त्रियां सावित्रीबाई को अपनी नायिका नहीं मानती हैं। सावित्रीबाई फुले को सिर्फ इस लिहाज से न देखा जाए कि वह एक दलित महिला थीं और उन्होंने कुछ स्कूलों की स्थापना की। उनका योगदान सिर्फ कुछ जातियों के विकास तक नहीं सीमित है।

सावित्रीबाई फुले अपने आपको एक मनुष्य की दृष्टि से देखती थीं । उनके समय में किसी भी जाति की महिलाओं को पढ़ने का अधिकार न के बराबर था। उन्होंने सभी वर्ग की महिलाओं के लिए स्कूल खोले और उसमे बिना किसी भेदभाव के सभी उपस्थिती सुनिश्चित किया।

इस कार्य में उनके जीवन साथी ज्योतिबा फुले जी का पूरा योगदान मिला। फुले दंपति शिक्षा को बेहद महत्व देते थे। ज्योतिबा फुले के द्वारा चलाये गए शिक्षा के आंदोलन को सावित्रीबाई फुले ने बखूबी आगे बढ़ाने में पूरा सहयोग दिया। ज्योतिबा फुले विद्या के महत्व धार्मिक किताबों से कहीं अधिक महत्व देते थे उनका मानना था कि –

विद्या बिना मति गयी, मति बिना नीति गयी
नीति बिना गति गयी, गति बिना वित्त गया
वित्त बिना शूद्र गये!
इतने अनर्थ एक अविद्या ने किये।

महात्मा फुले ने जीवन में शिक्षा के अभाव से पड़ने वाले प्रभाव को रेखांकित करते हुए ये पंक्तियां ‘किसानों का कोड़ा’ नामक किताब में लिखी है। ज्योतिबा फुले ने समय रहते शिक्षा के महत्व को पहचाना। उन्होंने महसूस किया कि बहुजन समाज और उनके आसपास की महिलाएं शिक्षा की कमी के कारण गुलामी में हैं।

इस आधार पर उन्होंने सुझाव दिया है कि ज्ञान की कमी के चलते बहुजन समाज को दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं का जीवन भर सामना करना पड़ता है । उन्होंने निदान बताते हुए कहा है कि इस दुर्भाग्य की जड़ अज्ञानता है। आज भारतीय समाज के जो हालात हैं उससे यह दिखाई देता है कि भारतीय समाज फिर से उन्हीं सामाजिक बुराइयों कि तरफ लौट रहा है। जिसका सावित्रीबाई आजीवन विरोध करती रहीं।

स्त्रियों और दलितों को सावित्रीबाई गुलामी से मुक्त कर उन्हें सम्मान के साथ जीने के लिए जिन्दगी भर संघर्ष करती रहीं उनको फिर गुलाम बनाए रखने की साजिश होने लगी है। उनकी अभिव्यक्ति की आजादी पर पहरा लगाया जा रहा है। उन्हें उनके मानवाधिकारों से वंचित किया जा रहा है। समाज की आधी आबादी महिलाओं/लड़कियों को ऐसे माहौल में शिक्षा के साथ-साथ स्वाभिमान से जीने के लिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है।

उनका अपने हक-अधिकारों के लिए जागरूक होना जरूरी है। महिलाएं अपने आपको एक मनुष्य की दृष्टि से देखें। उनके मनुष्य बनने के रास्ते में जो भी आए उससे संघर्ष करना जरूरी हो गया है और जब उनके अधिकारों का हनन हो तो उसके लिए संघर्ष करना, लड़ना बहुत जरूरी है।

यदि आज लड़कियां और महिलाएं सावित्रीबाई फुले की शिक्षा को अपनाएं और उनको अपना रोल मॉडल बनाएं तो कोई उनका किसी भी प्रकार का शोषण नहीं कर सकता। कोई उन पर हिंसा नहीं कर पायेगा। कोई उन पर पितृसत्ता व्यवस्था नहीं थोप पायेगा। जब महिलाएं शत-प्रतिशत आत्मनिर्भर बनेगीं तो इससे देश का भी विकास होगा और देश प्रगतिशील बनेगा।

सावित्रीबाई फुले से प्रेरणा लेकर शिक्षित-जागरूक लड़कियां अन्य लड़कियों और महिलाओं को शिक्षित, जागरूक कर समाज और देश के विकास प्रगति में अपना योगदान कर सकती हैं।जब स्त्रियाँ पढ़-लिखकर शिक्षित होकर, सावित्रीबाई के संघर्ष को जानकार जितना जागरूक होंगी समाज का विस्तार उतना ही अधिक होगा। समाज से पितृसत्ता धीरे-धीरे खत्म होने लगेगी। (लेखक गुरु घासीदास (केंद्रीय) विश्वविद्यालय बिलासपुर में हिंदी सहायक प्रोफेसर हैं)


janwani address 9

What’s your Reaction?
+1
0
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Saharanpur News: एसएसपी ने रिजर्व पुलिस लाइन का किया निरीक्षण, परेड की ली सलामी

जनवाणी संवाददाता |सहारनपुर: वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रोहित सिंह सजवाण...

Saharanpur News: अंतरराष्ट्रीय तनावों के बीच डगमगाया सहारनपुर का लकड़ी हस्तशिल्प उद्योग

जनवाणी संवाददाता |सहारनपुर: जनपद की नक्काशीदार लकड़ी से बनी...

Share Market Today: तीन दिनों की गिरावट के बाद Share Bazar में जबरदस्त तेजी, Sunsex 790 और Nifty 230 अंक उछला

नमस्कार,दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और...
spot_imgspot_img