Saturday, June 21, 2025
- Advertisement -

पौराणिक संदर्भों में शंख

Sanskar 8


विवेक रंजन श्रीवास्तव |

हिंदू धर्म और संस्कृति विज्ञान सम्मत है। हमारी संस्कृति में पूजा , जन्म , विवाह , युद्ध , आदि अवसरों पर शंख नाद किये जाने की परम्परा आज भी बनी हुई है। भारतवर्ष के पूर्व से पश्चिम , उत्तर से दक्षिण हर घर मंदिर में पूजा स्थल पर शंख मिल जाता है। भारतीय डायस्पोरा के विश्व व्यापक होने एवं अक्षरधाम , इस्कान तथा अन्य वैश्विक समूहों के माध्यम से शंख विश्व व्यापी हो गया है। दरअसल शंख मूल रूप से एक समुद्री जीव का कवच ढांचा होता है। पौराणिक रूप से शंख की उत्पत्ति समुद्र से मानी जाती है। चूंकि समुद्र मंथन से ही लक्ष्मी जी का प्रादुर्भाव कल्पित है अत: शंख को लक्ष्मी जी का भाई भी कहा जाता है। बंगाल की देवी पूजा में शंखनाद का विशेष महत्व होता है , वहां महिलायें भी सहज ही दीर्घ शंखनाद करती मिल जाती हैं।

शंख बजाने का स्पष्ट लाभ शारीरिक स्वास्थ्य पर दिखता है। मुंह की मसल्स का सर्वोत्तम व्यायाम हो जाता है जो किसी भी फेशियल से बेहतर है। शंख बजाने से गैस की समस्या दूर होती है।इससे शरीर के श्वसन अंगों की एक्सरसाइज होती है जिससे हृदय रोग की संभावनायें नगण्य हो जाती हैं। शंख की ध्वनि की फ्रीक्वेंसी ऐसी कही गई है जिससे कई कीड़े मकोड़े वह स्थान छोड़ देते हैं जहां नियमित शंख की आवाज की जाती है। शंख के प्रक्षालित जल के पीने से मुंहासे, झाइयां, काले धब्घ्बे दूर होने लगते हैं , हड्डियां मजबूत होती हैं और दांत भी स्वस्थ रहते हैं। संभवत: ऐसा इसलिये होता है क्योंकि इस तरह हमारे शरीर में कैल्शियम का वह प्रकार पहुंचता है जो इस तरह के रोगों के उपचार में प्रयुक्त होता है।

पौराणिक काल से शंख को शौर्य का द्योतक भी माना जाता था। प्रत्येक योद्धा के पास अपना शंख होता था। जैसे योद्धाओं के घोड़ों के नाम सुप्रसिद्ध हैं उसी तरह महाभारत के योद्धाओं के शंखों के नाम भगवत गीता में वर्णित हैं और विश्वप्रसिद्ध हैं। श्रीमद्भगवतगीता के पहले अध्याय में अनेक महारथियों के शंखों का वर्णन है।

भगवान श्रीकृष्ण का प्रसिद्ध शंख पाञ्चजन्य था। जब श्रीकृष्ण और बलराम ने महर्षि संदीपनी के आश्रम में उज्जयनी में शिक्षा समाप्त की, तब महर्षि संदीपनी ने गुरुदक्षिणा के रूप में भगवान कृष्ण से अपने मृत पुत्र को मांगा था। तब गुरु इच्छा की पूर्ति के लिए श्रीकृष्ण ने समुद्र में जाकर शंखासुर नामक असुर का वध किया था। शंखासुर की मृत्यु उपरांत उसका कवच शंख अर्थात खोल शेष रह गया जिसे श्रीकृष्ण ने पांचजन्य नाम दिया था। गंगापुत्र भीष्म का प्रसिद्ध शंख था जो उन्हें उनकी माता गंगा से प्राप्त हुआ था। गंगनाभ का अर्थ होता है ‘गंगा की ध्वनि’। जब भीष्म इस शंख को बजाते थे, तब उसकी भयानक ध्वनि शत्रुओं के हृदय में भय उत्पन्न कर देती थी। महाभारत युद्ध का आरंभ पांडवों की ओर से श्रीकृष्ण ने पांचजन्य और कौरवों की ओर से भीष्म ने गंगनाभ को बजा कर ही किया था।

‘अनंतविजय’ युधिष्ठिर का शंख था जिसकी ध्वनि अनंत तक जाती थी। इस शंख को साक्षी मान कर चारों पांडवों ने दिग्विजय किया और युधिष्ठिर के साम्राज्य को अनंत तक फैलाया। इस शंख को धर्मराज ने युधिष्ठिर को प्रदान किया था।
‘हिरण्यगर्भ’ सूर्यपुत्र कर्ण का शंख था। ये शंख उन्हें उनके पिता सूर्यदेव से प्राप्त हुआ था। हिरण्यगर्भ का अर्थ सृष्टि का आरंभ होता है और इसका एक संदर्भ ज्येष्ठ के रूप में भी है। कर्ण भी कुंती के ज्येष्ठ पुत्र थे।

‘विदारक’ दुर्योधन का शंख था। विदारक का अर्थ होता है विदीर्ण करने वाला या अत्यंत दु:ख पहुंचाने वाला। इस शंख को दुर्योधन ने गांधार की सीमा से प्राप्त किया था।

भीम का प्रसिद्ध शंख ‘पौंड्र’ था। इसका आकार बहुत विशाल था और इसे बजाना तो दूर, भीमसेन के अतिरिक्त कोई इसे उठा भी नहीं सकता था। इसकी ध्वनि इतनी भीषण थी कि उसके कंपन से मनुष्यों की तो क्या बात है, अश्व और यहां तक कि गजों का भी मल-मूत्र निकल जाया करता था। यह शंख भीम को नागलोक से प्राप्त हुआ था।

अर्जुन का प्रसिद्ध शंख ‘देवदत्त’ था जो पाञ्चजन्य के समान ही शक्तिशाली था। इस शंख को स्वयं वरुणदेव ने अर्जुन को वरदान स्वरूप दिया था। जब कुरुक्षेत्र के मैदान में पांचजन्य और देवदत्त एक साथ बजते थे तो दुश्मन पलायन करने लगते थे।

‘सुघोष’ माद्रीपुत्र नकुल का शंख था। अपने नाम के अनुरूप ही ये शंख किसी भी नकारात्मक शक्ति का नाश कर देता था।

‘मणिपुष्पक’ सहदेव का शंख था। यह शंख मणि, माणिकों से ज्यादा दुर्लभ था। वर्णन है कि नकुल और सहदेव को उनके शंख अश्विनीकुमारों से प्राप्त हुए थे।

‘यत्रघोष’ द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न का शंख था जो उसी के साथ अग्नि से उत्पन्न हुआ था और तेज में अग्नि के समान ही था। इसी शंख के उद्घोष के साथ वे पांडव सेना की व्यूह रचना और संचालन करते थे।

आज भी किसी महती कार्य के शुभारम्भ को शंखनाद लिखा जाता है। उदाहरण के लिये चुनाव प्रचार का शंखनाद, अर्थात शंखनाद हमारी संस्कृति में रचा बसा हुआ है।


janwani address 8

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Saharanpur News: एसएसपी ने रिजर्व पुलिस लाइन का किया निरीक्षण, परेड की ली सलामी

जनवाणी संवाददाता |सहारनपुर: वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रोहित सिंह सजवाण...

Saharanpur News: अंतरराष्ट्रीय तनावों के बीच डगमगाया सहारनपुर का लकड़ी हस्तशिल्प उद्योग

जनवाणी संवाददाता |सहारनपुर: जनपद की नक्काशीदार लकड़ी से बनी...

Share Market Today: तीन दिनों की गिरावट के बाद Share Bazar में जबरदस्त तेजी, Sunsex 790 और Nifty 230 अंक उछला

नमस्कार,दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और...
spot_imgspot_img