पूनम दिनकर
वर्षा ऋतु के बाद शीतऋतु का आगमन होता है। इस मौसम में सूर्य की किरणें तेज हो जाती हैं, जिसके कारण वषार्काल में संचित हुए पित्त का प्रकोप होने लगता है। उल्टी एवं पित्तदोष से उत्पन्न वायरल फीवर, मलेरिया आदि का इन दिनों काफी प्रकोप बना रहता है। वर्षाऋतु की समाप्ति के बाद शीतऋतु में अपनी सेहत का ख्याल कैसे रखा जाए, इसका ध्यान रखना परम आवश्यक है।
वर्षा ऋतु के समाप्त होते ही एक दिन का उपवास रखकर केवल फलों के जूस, सूप एवं नींबू पानी का ही प्रयोग करना चाहिए। अगर भोजन के बिना नहीं रहा जाए तो थोड़ी-सी मूंग-चावल की खिचड़ी खाई जा सकती है। रात को सोने से पहले गर्म पानी के साथ दो चम्मच पंचसकार चूर्ण का सेवन कर लें। इस प्रयोग से उदर की शुद्धि हो जाएगी। शरीर में जमा पित्त भी निकल जाएगा।
पित्त शमन के लिए नींबू और आंवले को भी खाया जा सकता है या आंवले के चूर्ण में मिश्री मिलाकर भी ली जा सकती है अथवा दो चम्मच गुलकन्द को रात में खाकर ऊपर से सुगम मीठा दूध भी पीया जा सकता है। इसका प्रयोग दो-तीन रात तक करना चाहिए। चूंकि आने वाली ऋतु शक्ति-संचय के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, अत: इन उपायों को कर लेने से शरीर में शक्ति संचय की क्षमता पैदा हो जाती है।
शीतऋतु में जठराग्नि प्रबल रहने से पौष्टिक आहार-विहार का सेवन उचित होता है। इस ऋतु में घी, दूध, मलाई, बादाम, काजू सहित अन्य सूखे मेवे, केले, सेब, खजूर, गुड़, गजक, मूंगफली, उड़द, शहद आदि का यथेष्ट मात्र में सेवन करते रहना चाहिए। इसका ध्यान रखना आवश्यक है कि पौष्टिक चीजों का सेवन धीरे-धीरे बढ़ाएं। जो भी खाएं ठीक तरह से पच जाए और कब्ज न होने पाए, इसका भी ध्यान रखना आवश्यक है।
आहार के साथ ही विहार का भी शीतऋतु में ध्यान देना आवश्यक है। चूंकि शीतऋतु में पौष्टिक आहार-विहार का सेवन लाभकारी है अत: इन्हें पचाने के लिए प्रात: कालीन भ्रमण तथा व्यायाम करना जरूरी है। इन उपायों से पाचन अग्नि बढ़ती है, वहीं शरीर पुष्ट भी होता है। प्रात:भ्रमण, योगासन, सूर्यनमस्कार, दण्ड-बैठक आदि को करते रहना चाहिए।
प्रात: धूप में बैठकर तेल-मालिश करना शीतऋतु में लाभदायक माना जाता है। इससे मांस-पेशियों में ताकत आती है तथा शरीर की त्वचा शुष्क (रूखी) होने से बचती है। अगर सप्ताह में एक दिन उबटन कर लिया जाए तो अधिक उत्तम है। शीतऋतु में दिन में सोना हानिकारक माना जाता है। इन दिनों दिन में सोने से कफ का प्रकोप होने लगता है। इससे आलस्य, अरूचि एवं सिरदर्द भी पैदा हो जाता है।
शीतऋतु में स्नान करना कई लोगों को पसन्द नहीं होता। खास करके वृद्ध, बालक एवं रोगी व्यक्ति स्नान से कतराते हैं। इन्हें सुसुम पानी से धूप में बैठकर स्नान करना चाहिए। शेष व्यक्तियों को ताजे जल से नित्य स्नान करना चाहिए क्योंकि इससे स्नायुमण्डल सशक्त बनता है।
ठंड के मौसम में गाजर का सेवन अति लाभदायक माना जाता है। गाजर का हलुआ वीर्य को बढ़ाता है, खून को साफ करता है, मस्तिष्क को ताकत देता है तथा शरीर को कामोपयोगी बनाता है। पीलिया, बवासीर एवं क्षय रोगियों को छोडकर शेष सभी गाजर का यथेष्ट प्रयोग कर सकते हैं। विवाहित व्यक्तियों को गाजर का हलुआ, खजूर, सफेद तिल के व्यंजनों का प्रयोग अधिक करना चाहिए।
शीतऋतु में मौसम के प्रभाव से त्वचा की चिकनाई कम हो जाती है और वह सूखने लगती है। खुश्की पैदा हो जाने से त्वचा रूखी-सूखी और बेजान-सी दिखने लगती है। गाल, होंठ एवं दोनों हाथ पैरों की त्वचा आमतौर पर फटने लग जाती है। इन समस्याओं से छुटकारा के लिए लिए उबटन लगाना लाभकारी होता है। सप्ताह में कम से कम एक दिन पूरे शरीर पर उबटन लगाना चाहिए।
साबुन का प्रयोग इस ऋतु में बहुत ही कम करना चाहिए। रात को सोने से पहले या प्रात: नहाने से पहले हाथ-पैर पर दूध की मलाई लगा लेनी चाहिए।
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