- बज्म ए जिगर की नशिस्त में शायरों ने भाग लिया
जनवाणी संवाददाता |
नजीबाबाद: बज्म ए जिगर के तत्वावधान में मशहूर शायर अल्लामा इकबाल की यौम ए पैदाईश के मौके पर उर्दू डे मनाया गया। इस मौके पर शायर मौसूफ अहमद वासिफ के मौहल्ला रमपुरा स्थित आवास पर एक अदबी शेरी नशिस्त का आयोजन किया गया।
शेरी नशिस्त में शायर डाक्टर तैय्यब जमाल ने अल्लामा इकबाल की जिन्दगी और उनकी शायरी पर रोशनी डाली। तैय्यब जमाल ने जानकारी देते हुए बताया कि अल्लामा इकबाल की पैदाईश 9 नवम्बर 1877 को सियालकोट पंजाब में हुआ था। अल्लामा की शायरी से पूरी दुनियां आज भी फैज़याब हो रही हैं। उनकी 60 साल की जिन्दगी वली की तरहा गुजरी।
शेरी नशिस्त का आगा़ज अकरम जलालाबादी के नात ए पाक से हुआ उन्होंने कहा, मकाम ए मुस्तफा अल्लाह हो अकबर, हबीब ए किबरिया अल्लाह हो अकबर।
बुजुर्ग शायर शकील अहमद वफा ने कहा.. वो हुस्न का कूचा है हरगिज़ ना वहां जाना। युवा शायर सुहेल शहाब शम्सी ने कहा.. मिले गरीब की कुटिया में ये भी मुमकिन है, तलाश जिस को रहे हो बड़े घराने में। शादाब जफर शादाब ने कहा…गैर को अपना बनाने का हुनर आ जायेगा, आप को ये मशवरा है आप उर्दू बोलिये।
शेरी नशिस्त की निज़ामत कर रहे शायर डाक्टर तैय्यब जमाल ने कहा.. इक बार जिस पे चढ़ गया है आशिकी का रंग, ग़म क्या है उस के वास्ते क्या है खुशी का रंग। मौसूफ अहमद वासिफ ने कहा.. रोज़ घर पर उन्हें बुलाते है,बात कहने की भूल जाते हैं। अकरम जलालाबादी ने भी शेर पढ़े।
शेरी नशिस्त की सदारत कर रहे मशहूर शायर सरफराज साबरी जलालाबादी ने कहा.. दौर ए माजी हो या हो फिर ये जमाना हाल का, कोई भी सानी नहीं अल्लामा ए इकबाल का।
देर रात तक चली नशिस्त में जुबैर खां, अबरार सलमानी, आसिम खां, मुदस्सिर नज़र, शहज़ाद खां, उमर निज़ामी, आदि मौजूद रहे। शेरी नशिस्त की सदारत सरफराज साबरी व निज़ामत डाक्टर तैय्यब जमाल ने की।