Sunday, May 4, 2025
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किसी को मोटापा तो किसी को खून की कमी सता रही है

 

Samvad 48

 


खानपान समेत विभिन्न कारणों के चलते मोटापा आज भले ही अमीरी की निशानी न रह गया हो मगर कुपोषण का कारण आज भी गरीबी ही है। भारत में कुपोषण के कारण जहां पचास प्रतिशत से अधिक महिलाएं कमजोर, बौने और जन्मजात बीमारियों से ग्रस्त बच्चों को जन्म दे रही हैं और रक्त अल्पता की बीमारियों का सामना कर रही हैं वहीं देश के कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां महिलाओं के लिये मोटापा गंभीर शारीरिक और मानसिक समस्या बन रही है।

केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रलय द्वारा जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार अधिकांश राज्यों-संघ राज्य क्षेत्रों में अधिक वजन या मोटापे की व्यापकता में वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय स्तर पर मोटापा महिलाओं में 21 प्रतिशत से बढकर 24 प्रतिशत और पुरुषों में 19 प्रतिशत से बढ़ कर 23 प्रतिशत हो गया है। केरल, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, आंध्र प्रदेश, गोवा, सिक्किम, मणिपुर, दिल्ली, तमिलनाडु, पुडुचेरी, पंजाब, चंडीगढ़ और लक्षद्वीप (34-46 प्रतिशत ) में एक तिहाई से अधिक महिलाएं अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त हैं जबकि देश में मातृ और बाल कुपोषण और रक्ताल्पता का स्तर चिंताजनक स्तर तक पहुंच चुका है और इसके पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे चक्र को तोड़ने की आवश्यकता है।

अधिक वजन होने या मोटापा होने से जोड़ों और कार्टिलेज पर अतिरिक्त दबाव आता है जिससे आस्टियोआर्थराइटिस होने का खतरा बढ़ सकता है। मोटे लोगों को मेटाबोलिक सिंड्रोम के कारण कई शारीरिक समस्याएं हो सकती हैं, जो हृदय रोग, मधुमेह और स्ट्रोक का जोखिम बढ़ा सकती हैं। इसे अल्जाइमर रोग जैसे तंत्रिका संबंधी रोगों के कारक के रूप में भी शामिल किया गया है। मोटापा बढ़ने का सबसे मुख्य कारण है लंबे समय तक जितनी कैलोरी आप रोज खाते हैं|

उससे कम दैनिक गतिविधि और व्यायाम में बर्न करते हैं। समय के साथ, ये अतिरिक्त कैलोरी जमा हो जाती हैं और वजन बढ़ने का कारण बनती हैं लेकिन इनके अलावा भी मोटापे के कुछ अन्य कारण हो सकते हैं।

इंडियन एकेडमी आॅफ न्यूरो साइंस के जर्नल ‘एनल्स आॅफ न्यूरोसाइंस’ में मई 2021 में छपे मुरली वेंकटराव आदि के शोध पत्र के अनुसार यद्यपि भारत में ओबेसिटी या मोटापे का अब तक कोई सटीक अनुमान उपलब्ध नहीं है। फिर भी शोधार्थियों ने देशभर से 1,00,531 वयस्कों के नमूनों के आधार पर निष्कर्ष निकाला भारत में मोटापे की व्यापकता 40.3प्रतिशत है। यह व्यपकता एक समान नहीं है। शोधपत्र के अनुसार दक्षिण में मोटापे की समस्या उच्चतम 46.51प्रतिशत और पूर्वोत्तर में सबसे कम 32.96 प्रतिशत पायी गयी।

पुरुषों की तुलना में महिलाओं में मोटापा पाया गया। महिलाओं में 41.88 प्रतिशत तथा पुरुषों में 38.67प्रतिशत पाया गया। ग्रामीण क्षेत्र में 36.०8 प्रतिशत और शहरी क्षेत्र में 44.17 प्रतिशत पाया गया और 4० से कम (45.81प्रतिशत के मुकाबले 34.58 प्रतिशत) की तुलना में अधिक अधिक शिक्षित लोगों में 44.6 प्रतिशत और अशिक्षित में 38 प्रतिशत पाया गया।

दूसरी ओर भारत में कुपोषित आबादी का आंकड़ा 20 करोड़ तक पहुंच गया है जिसमें 15 से 50 साल की उम्र की महिलाएं भी शामिल हैं जो खून की कमी से जूझ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और भी खराब है। मातृ एवं शिशु मृत्यु दर अधिक होने का एक प्रमुख कारण कुपोषण से खून की कमी भी है। माताएं कुपोषित होंगी तो उनके शिशु भी कुपोषित ही होंगे क्यों उन्हें पहला भोजन कुपोषित माता से ही मिलता है।

इससे पहले हुये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएम-4), रिपोर्ट 2015-16 के अनुसार पांच वर्ष से नीचे के 35.7 प्रतिशत बच्चे अल्प वजनी थे तथा 38.4 प्रतिशत बच्चे ठिगने थे जो एनएफएचएस-3, 2005-06 में रिपोर्ट की गई पांच वर्ष से नीचे के बच्चों में 42.5 प्रतिशत अल्पवजनी तथा 48 प्रतिशत ठिगने के पहले के डाटा की तुलना में गिरावट को दशार्ता है।

बौनापन (स्टंटिंग) बच्चों पर अपरिवर्तनीय शारीरिक और मानसिक प्रभाव डालता है। एक बौना (स्टंटेड) बच्चा अपनी उम्र के हिसाब से बहुत छोटा होता है। उसका पूरा विकास नहीं होता और यह शुरूआती जीवन में बढ़ोतरी और विकास के सबसे अधिक महत्वपूर्ण समय में अत्यधिक कुपोषण को दशार्ता है। नवीनतम परिवार स्वास्थ्य रिपोर्ट कि पिछले चार वर्षों से भारत में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में बौनेपन का स्तर 38 से 36 प्रतिशत तक मामूली रूप से कम हो पाया है।

2019-21 में शहरी क्षेत्रों (30 प्रतिशत) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (37 प्रतिशत ) के बच्चों में बौनापन अधिक है। बौनेपन में भिन्नता पुडुचेरी में सबसे कम (20 प्रतिशत) और मेघालय में सबसे ज्यादा (47 प्रतिशत) है। हरियाणा, उत्तराखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और सिक्किम (प्रत्येक में 7 प्रतिशत अंक), झारखंड, मध्य प्रदेश और मणिपुर (प्रत्येक में 6 प्रतिशत अंक), और चंडीगढ़ और बिहार (प्रत्येक में 5 प्रतिशत अंक) में बौनेपन में कमी देखी गई।

महिलाओं और बच्चों के कुपोषण का असली कारण गरीबी ही है। विश्व बैंक की नवीनतम् रिपोर्ट के अनुसार भारत की 22 प्रतिशत आबादी याने कि 27 करोड़ लोग गरीब हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार हर पांचवें भारतीय में से एक गरीब है। कम आय वाले राज्यों में देश के 62 प्रतिशत गरीब रहते हैं जो कि कुल देश की जनसंख्या के 45 प्रतिशत हैं। भारत के 80 प्रतिशत गरीब ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। गरीबी में उत्तर प्रदेश का पहला स्थान है जहां 60 प्रतिशत गरीब रहते हैं। दूसरे नंबर पर बिहार और तीसरे नंबर पर मध्य प्रदेश हैं।

भारत के महापंजीयक द्वारा जारी मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 2016-18 के दौरान जो मातृ मृत्यु दर प्रति लाख प्रसव 113 थी वह घट कर 2017-19 में 103 रह गयी है। इससे पहले 2014 से 2016 के बीच मातृ मृत्यु दर 130 थी। महापंजीयक की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 2030 तक प्रति लाख जीवित जन्म पर मातृ मृत्यु दर 70 तक लाने में कामयाब हो सकेगा।

इससे पहले ही इस लक्ष्य को हासिल करने वाले राज्यों की संख्या अब 5 से बढकर 7 हो गई हैं। इन राज्यों के नाम है- केरल (30), महाराष्ट्र (38), तेलंगाना (56), तमिलनाडु (58), आंध्र प्रदेश (58), झारखंड (61) और गुजरात (70)। अब 9 राज्य ऐसे हैं जिन्होंने एनएचपी द्वारा निर्धारित एमएमआर के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। जिनमें इन 7 राज्यों के अलावा कर्नाटक (83) और हरियाणा (96) राज्य शामिल हो गए हैं।

पांच राज्यों उत्तराखंड (101), पश्चिम बंगाल (109), पंजाब (114), बिहार (130), ओडिशा (136) और राजस्थान (141) में एमएमआर 100-150 के बीच है, जबकि 4 राज्य- छत्तीसगढ़ (160), मध्य प्रदेश (163), उत्तर प्रदेश (167) और असम (205) ऐसे हैं जहां एमएमआर 150 से अधिक है।

जयसिंह रावत


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