Friday, July 5, 2024
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पितरों की शांति व तर्पण के लिए विशेष फलदायी है सोमवती अमावस्या

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भारत वर्ष में मनाए जाने वाला पर्व है, यह दिवस भगवान शिव को अर्पित होता है। अमावस्या प्रत्येक माह में आती है जिसमें चंद्र देव के दर्शन नहीं हो पाते। वर्ष में आने वाली बारह अमावस्याओं का अपना महत्व होता है और प्रत्येक उत्सव को मनाए जाने के पीछे सर्व-मान्य पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई होती है।

अमावस्या के इस दिन से चंद्रमा के प्रकाश के पखवाड़े का आरंभ हो जाता है। इसलिए इसे चंद्रमा दिवस मानकर भी मनाया जाता है और साल में 12 बार अमावस्या की रात आती है। सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। सनातन धर्म में इस अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है।

यह साल में लगभग एक या दो ही बार पड़ती है और इस दिन किसी भी पवित्र तीर्थ स्नान व दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्तियों को भी इस दिन दान करना चाहिए। सोमवती अमावस्या के दिन माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा का विधान है। साथ ही पीपल के वृक्ष की भी पूजा की जाती है। सोमवती अमावस्या को पितरों के लिए विशेष दिन माना जाता है।यदि किसी की कुंडली में पितृ दोष है तो इस दिन स्नान, दान करने से मुक्ति मिलती है।

शास्त्रों के अनुसार अमावस्या के दिन पितर (पितृ) पृथ्वी पर आते हैं इसलिए इसे पितरों की तिथि माना गया है, पृथ्वी पर विचरण के दौरान पितृ अपने परिजनों तथा वंशजों द्वारा दिए गए पिंडदान, तर्पण आदि को ग्रहण करते हैं। इससे उन्हें भोजन प्राप्त होता है और संतुष्ट होते हैं फिर आशीर्वाद देकर अपने लोक चले जाते हैं।इस दिन पितरों की शांति के लिए पिंडदान, श्राद्ध तथा तर्पण आदि कार्य करने चाहिए। आप अपने पूर्वजों की आत्मा की प्रसन्नता के लिए किसी गरीब भिखारी, गाय अथवा साधु को भोजन कराना चाहिए।

इस दिन गीता पाठ का भी विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करनी चाहिए, पीपल को पितरों का वृक्ष माना जाता है। पीपल पर जल अर्पित करें तथा देसी घी का दीपक जलाएं। इससे घर में खुशहाली आती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पीपल के वृक्ष में देवी-देवताओं का वास होता है इसलिए इस दिन पीपल के पेड़ में जल अर्पित करने से और पेड़ के नीचे दीपक जलाने से हर मनोकामना पूरी होती है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीघार्यु की कामना के लिए व्रत रखती हैं।

साथ ही पीपल के पेड़ की परिक्रमा भी करती हैं। इस दिन मौन व्रत रखने से हजारों गौ दान के बराबर फल प्राप्त होता है।सोमवती अमावस्या के दिन गाय, कौआ और कुत्ते को पितरों के भोजन से कुछ अंश निकाल कर देने से ये उन तक पहुंचता है और उन्हें संतुष्ट करता है,इसलिए इस दिन भूलकर भी कुत्ते और गाय को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए।

सोमवती अमावस्या व्रत कथा

कथा के अनुसार एक ब्राह्मण परिवार था जिसमें सात बेटे और एक बेटी थी। सभी बेटों का विवाह हो चुका था लेकिन अभी तक बेटी की शादी नहीं हुई थी। इस कारण से ब्राह्मण और उसकी पत्नी काफी दुखी थे। एक साधु बहुधा उनके घर भिक्षा लेने आता रहता था। वह साधु सभी बहूओं और बेटों को सुखद जीवन का आशीर्वाद देता था, लेकिन उसकी बेटी के समय वह आशीर्वाद नहीं देता था। ऐसा देखकर उस ब्राह्मण ने अपनी बेटी की कुंडली को दिखाने का निर्णय लिया।

पंडित ने जब उस कन्या की कुंडली को देखा तो उसमें विवाह के अशुभ योग बने हुए थे। कन्या के इस योग के अनुसार यदि उसकी बेटी की शादी हो भी जाती है तो वह विधवा हो जाएगी। ऐसे में ज्योतिष शास्त्र के उस विद्वान ने बेटी से सिंघल नाम के द्वीप पर जाने को कहा और बताया कि वहां पर आपको एक धोबिन मिलेगी जोकि इसका उपाय आपको बता देगी।

पंडित की आज्ञा का पालन करते हुए वह कन्या अपने भाई के साथ उस टापू तक पहुंचने के लिए यात्रा पर निकल गई। द्वीप तक पहुंचने का रास्ता जटिल था। रास्ते के दौरान कन्या को एक गिद्ध का घोंसला दिखाई दिया। उस घोंसले में गिद्ध के बच्चे थे। उस घोंसले के पास एक सांप घूम रहा था और कुछ ही समय में सांप घोंसले के पास जाने लगा। गिद्ध के बच्चों की जान को संकट में देख उस कन्या ने सांप को मार दिया। तब गिद्ध ने अपने बच्चों को सही हालात में पाकर उस कन्या को उस धोबिन के आवास तक पहुंचाया।

इस रास्ते को तय करते समय उस कन्या ने पीपल के वृक्ष का पूजन भी किया।धोबिन के स्थान पर पहुंचने के बाद उस कन्या ने पूरी श्रद्धा भावना के साथ उसकी सेवा की और कन्या द्वारा की गई सेवा से धोबिन बहुत प्रसन्न हुई। उसके बाद कन्या को अशुभ योग से मुक्ति दिलाने के लिए उस धोबिन ने कन्या को सोमवती अमावस्या के व्रत को करने का आदेश दिया। कन्या ने धोबिन द्वारा बताए गए अनुष्ठानों का पालन करते हुए इस व्रत को पूरे विधि विधान से किया। जिसके बाद धोबिन ने उस कन्या के माथे पर सिंदूर लगाया, जिससे कि वह उस अशुभ योग से मुक्त हो गई।

  • सोमवती अमावस्या का उत्सव हिंदुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।
  • इस दिन गंगा में स्नान करने से सभी कष्टों का नाश हो जाता है और आने वाली बाधाओं से जीवन मुक्त हो जाता है। गंगा स्नान के साथ-साथ अन्य पवित्र नदियों में किए गए स्नान का भी समान महत्व है।
  • इस दिन जरूरतमंदों और गरीबों को भोजन कराना चाहिए और उनको वस्त्र और धन का दान देकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। जिससे पुण्य प्राप्त होता है और सभी कष्टों का निवारण हो जाता है।
  • सोमवती अमावस्या के दिन अपने पितरों के निमित्त जो व्यक्ति भोजन, फल व वस्त्र के साथ-साथ श्रद्धानुसार दक्षिणा दान करता है, उससे संतुष्ट होकर उनके पितर साधक को यश, संपदा तथा दीघार्यु का आशीर्वाद देते हैं। इसके साथ-साथ पितरों की शांति के लिए तिल, जौ, चावल का पिंडदान भी किया जाना श्रेष्ठ माना गया है।

डॉ.पवन शर्मा


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