Wednesday, July 3, 2024
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गिलहरी और राम

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गिलहरी पूरी तरह काली हुआ करती थी। गिलहरी को गांव के परिवारों के साथ रहना पसंद था लेकिन गाँव वाले उसे पसंद नहीं करते थे। वह घरों में पहुंच जाती तो बच्चे डर जाते और लोग उसे भगाने लगते। गांव में एक आश्रम था जिसमें साधू बाबा रहते थे। गिलहरी उनके पास रहने लगी। जो बाबा खाते वह गिलहरी खाती, जो वे यज्ञ हवन करते उसकी साक्षी बनती और जो वे जप मंत्र पढ़ते उसके पुण्य का लाभ उठाती। धीरे धीरे गिलहरी बीज, कंद और मूल खाने वाली साध्वी बन गई। कुछ समय बाद बाबा रामेश्वरम की तीर्थयात्रा पर निकले तो वह गिलहरी भी उनके साथ हो ली। रामेश्वरम के समुद्र तट पर बाबा ने जहां डेरा डाला वहीं किसी पेड़ पर एक कोटर में गिलहरी ने भी अपना घर बना लिया।
रामेश्वरम में थोड़ा ही समय बीता था कि राम और रावण का युद्ध छिड़ गया और राम जी ने सिंधु में सेतु निर्माण का कार्य प्रारम्भ कर दिया। यह देखकर गिलहरी भी रेत के कण उठाकर समुद्र में डालने लगी। भगवान राम उसे चुपचाप काम करते देखते। जिस दिन पुल का निर्माण पूरा हुआ, उस दिन, नन्हीं सी गिलहरी द्वारा प्रदर्शित उत्तरदायित्व, लगन और श्रम की भावना को पुरस्कृत करने के लिए भगवान राम ने उसे अपने हाथों में उठाया और आशीर्वाद से भरी अपनी अंगुलियों को उस पर फेरा।

आश्चर्य! भगवान राम के हाथ और ऊंगलियों के निशान जहाँ लगे वहां का रंग भगवान की त्वचा जैसा सांवला हो गया और वह अत्यंत आकर्षक दिखाई देने लगी। कहते हैं तभी से गिलहरी की गणना सुंदर प्राणियों में होने लगी। जब सेतु निर्माण का इतिहास लिखा गया तब हर कवि और रचनाकार ने उस नन्हीं गिलहरी का उल्लेख अपनी रचना में किया।


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