जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में सिपाही के पद पर नियुक्ति के लिए दो वर्ष से संघर्ष कर रहे SSC GD 2018 के मेडिकल फिट अभ्यर्थियों को दिल्ली उच्च न्यायालय से बड़ी राहत मिली है। एसएसजीडी 2018 के मामले के साथ ही एसएसबी भर्ती 2016 के केस की भी सुनवाई की गई। दिल्ली हाईकोर्ट ने 21 दिसंबर को दिए अपने फैसले में 13 जून 2000 को डीओपीटी द्वारा जारी एक कार्यालय ज्ञापन का हवाला देते हुए कहा, सरकार के पास जो वैकेंसी बची हैं, उनके भरने से अभ्यर्थियों का भला होगा।
दूसरा, इससे सरकार का खर्च बचेगा, क्योंकि उसे दोबारा से भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं करनी पड़ेगी। एसएसबी व सीएपीएफ में जो रिक्त पद हैं, उन्हें भर्ती प्रक्रिया में पहले से शामिल रहे अभ्यर्थियों के माध्यम से भरा जाए। इसमें मेरिट, श्रेणी और स्टेट डोमिसाइल देखा जाएगा। कोर्ट ने सरकार को नियुक्ति पत्र देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है। साथ ही अभ्यर्थियों को वरिष्ठता भी देनी होगी, मगर उन्हें पिछले वेतन का लाभ नहीं मिलेगा।
यह फैसला कई याचिकाओं को मिलाकर उनकी एक साथ सुनवाई करते हुए दिया गया है। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के मुताबिक, एसएसबी में 2016 के दौरान एसआई, एएसआई व हवलदार ‘संचार’ के पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकला था। इसमें क्वालीफाइंग नंबर 50 फीसदी रखे गए थे। भर्ती का रिजल्ट 2019 में आया।
कई उम्मीदवार ऐसे भी थे, जिन्हें पचास फीसदी से ज्यादा अंक मिले, लेकिन वे नियुक्ति नहीं पा सके। उन्होंने 60/2020 व 9323/2020 संख्या के तहत अदालत में याचिका लगाई। साल 2018 में सीएपीएफ ने विभिन्न केंद्रीय बलों में 54953 पदों को भरने के लिए वैकेंसी निकाली।
अगले साल रिक्तियों को रिवाइज कर उन्हें 60210 कर दिया गया। भर्ती प्रक्रिया के विभिन्न चरणों को पास करते हुए 152226 अभ्यर्थी मेडिकल के लिए भेजे गए। इनमें से 109552 अभ्यर्थी पास हो गए। जब रिजल्ट घोषित किया गया, तो 54411 को नियुक्ति पत्र देने की बात सामने आई। 2599/2021 संख्या की रिट पिटिशन लगाई गई। उसमें यह आशय जताया गया कि जो रिक्त पद नहीं भरे जा सके हैं, अगर उन्हें भरने के लिए सरकार फ्रेश विज्ञापन देगी तो उससे अभ्यर्थियों को नुकसान होगा।
जो वैकेंसी नहीं भरी गई, उन्हें आगे नहीं ले जाना है
इसी मामले में संख्या 5211/2022, 6700/2022, 8263/2022, 11510/2022, 8247/2021, 13083/2021 और 2772/2022 के तहत याचिकाएं लगाई गई। इनमें वेटिंग लिस्ट न होने की बात कही गई। कोर्ट ने कहा, जब सभी याचिकाकर्ताओं के वकील एक हैं, सब्जेक्ट एक हैं तो इनकी सुनवाई भी एक साथ की जाए। 2016 के विज्ञापन से संबंधित रिट पिटिशन 60/2020, 9323/2020 और 2911/2021 में कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने हवलदार ‘संचार’ के पद के लिए आवेदन किया था।
उन्होंने तीन साल तक इंतजार किया। उन्हें जो नंबर मिले हैं, वे अंतिम चयनित प्रार्थी के आसपास या लगभग समान ही हैं। 746 में से 674 पदों को भरा गया। 72 पद खाली रह गए। वेटिंग लिस्ट जारी नहीं की गई। 13 जून 2000 को जारी डीओपीटी का कार्यालय ज्ञापन कहता है कि जो वैकेंसी नहीं भरी जाती, उन्हें आगे नहीं ले जाना है। उसी वर्ष वेटिंग लिस्ट/रिजर्व लिस्ट से भरा जाना है।
आठ याचिकाओं में कहा गया कि 2018 का एग्जाम था, जिसमें अभ्यर्थी क्वालीफाइंग अंकों से थोड़ा पीछे रह गए हैं। इसमें 5981 एक्स-सर्विस मैन की वैकेंसी थी। उसमें से 172 का चयन हुआ, बाकी पद खाली रह गए। 260 लोगों का रिजल्ट रोक दिया गया। इसके पीछे वेरिफिकेशन का कारण बताया गया। याचिका में कहा गया कि अगर ये वैकेंसी भरी जाती हैं तो हमारा चयन हो सकता है।
भर्ती प्रक्रिया पर नहीं उठा कोई सवाल
सरकारी काउंसिल ने भर्ती प्रक्रिया के समर्थन में तर्क देते हुए कहा, उम्मीदवार ज्यादा थे, इसके चलते भर्ती में ज्यादा समय लग गया। हालांकि प्रक्रिया पर कोई सवाल नहीं उठा है। जो उम्मीदवार क्वालीफाइंग करते हैं, उसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें नियुक्ति का हक मिल जाएगा। उसके बाद कट ऑफ मार्क्स सूची बनती है, तब जाकर नियुक्ति होती है। सरकारी काउंसिल ने भर्ती के तरीके को सही बताया।
एसएससीजीडी 2018 के एग्जाम में 3041284 प्रत्याशी, कंप्यूटर आधारित परीक्षा में शामिल हुए। इनमें से 554903 आवेदकों को शारीरिक परीक्षा के लिए शॉर्ट लिस्ट किया गया। इसके बाद 152226 अभ्यर्थियों को मेडिकल जांच के लिए चयनित हुए। 29 लोगों ने कोर्ट से आदेश लेकर अपना मेडिकल कराया। कुल 109552 अभ्यर्थी मेडिकल में पास हुए। सरकार ने इसमें वेटिंग लिस्ट का कोई प्रावधान नहीं रखा, इसके संबंध में अदालत के समक्ष कोई दस्तावेज पेश नहीं किया जा सका।
छह हजार पदों पर अटका था मामला
अब मामला लगभग छह हजार पदों पर अटका था। वहां भर्ती होनी थी। सरकारी वकील ने कहा, वैकेंसी की संख्या अलग-अलग राज्यों के लिए तय है। एक राज्य के लिए तय पदों को दूसरे प्रदेश के अभ्यर्थियों से नहीं भरा जा सकता। उसी राज्य से अभ्यर्थी लेने होंगे। उसमें मेरिट और श्रेणी का भी ध्यान रखना होगा।
10 फीसदी पद एक्स-सर्विस के लिए थे। अगर वह नहीं भर सके हैं, तो दूसरे उम्मीदवारों को मौका दिया जा सकता है। इस प्रक्रिया को सरकारी वकील ने भी ठीक माना था। रिजल्ट जारी होने से पहले दूसरे वर्गों से एक्स- सर्विस मैन के लिए तय वैकेंसी भर दी गई।
इस केस के फैसले में 13 जून 2000 को जारी डीओपीटी का कार्यालय ज्ञापन मुख्य आधार बना है। सरकारी पक्ष द्वारा कहा गया कि यह नियम पदोन्नति पर लागू होता है, फ्रेश नियुक्तियों पर नहीं। किन्हीं कारणों से जो वैकेंसी नहीं भरी जा सकी, सरकार ने उसका ध्यान रखा है। अगले वर्ष यानी के 2021 के एग्जाम में उन्हें एडजस्ट कर दिया जाएगा। 55912 आवेदकों का चयन किया गया।
कुछ पद कोर्ट के आदेश पर खाली रखे गए। लगभग चार हजार पद खाली रहे, क्योंकि योग्य उम्मीदवार नहीं मिले थे। डीओपीटी का कार्यालय ज्ञापन कहता है कि खाली पदों को वेटिंग लिस्ट से ही भरना है। इस मामले में वेटिंग लिस्ट/रिजर्व लिस्ट नहीं नहीं रखी गई। प्रार्थी के वकील ने कहा, डीओपीटी के कार्यालय ज्ञापन के अनुसार, खाली पदों को रिजर्व लिस्ट से भरा जाना चाहिए। भर्ती प्रक्रिया में लंबा समय लगा, कोर्ट ने इस बात को खारिज कर दिया।
मेरिट लिस्ट और सेलेक्ट लिस्ट पर विज्ञापन मौन
कोर्ट में 2016 और 2018 की भर्ती के लिए जारी विज्ञापन को पढ़ा गया। उसके पैरा 22 में वैकेंसी और चयन की प्रक्रिया पर बहुत कुछ कहा गया है। जो रिक्तियां रह जाती हैं, उन पर विज्ञापन खामोश है। उन पदों को कैसे भरा जाए। उसमें मेरिट लिस्ट और सेलेक्ट लिस्ट पर कुछ नहीं कहा गया। कोर्ट ने कार्यालय ज्ञापन को एग्जामिन कर कहा, उसमें साफ लिखा है कि सीधी नियुक्ति, तबादला और प्रतिनियुक्ति के लिए यह कार्यालय ज्ञापन लागू होता है।
जो पद नहीं भरे गए, उन्हें रिजर्व लिस्ट से भरा जाए। उन पदों को नई रिक्तियों में शामिल न किया जाए। वे फ्रेश रिक्तियां नहीं बन सकती। कोर्ट के समक्ष, सरकार रिजर्व या वेटिंग लिस्ट नहीं बनाने के संबंध में कोई तर्क पेश नहीं कर सकी। हाई कोर्ट में शशिकांत के केस का हवाला दिया गया। उसमें बताया गया था कि कोई पद किसी के ज्वाइन न करने की वजह से खाली होता है, तो उसे कैसे भरा जाए।
मनीष कुमार शैली बनाम बिहार राज्य केस में सुप्रीम कोर्ट के 2010 के फैसले को भी सरकारी वकील ने दलील में शामिल किया। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, उस केस का फैसला यहां लागू नहीं होता है, क्योंकि यहां तो खाली पदों की बात हो रही है। 2013 में सुप्रीम कोर्ट के केस ‘चेयरमैन डीएसएसएसबी बनाम मिस रजनी’ का हवाला दिया गया। अगर वेटिंग सूची नहीं बनाते हैं, तो उसका कारण दिखाना होगा।
हाई कोर्ट ने इसे भी रिजेक्ट कर दिया। दिल्ली हाई कोर्ट में 2022 के दौरान सुप्रीम कोर्ट में आए ‘रबीराज बनाम भारत संघ’ केस का हवाला दिया गया। उसमें कहा गया कि डीओपीटी के कार्यालय ज्ञापन के आधार पर एक रिजर्व लिस्ट बनाई जाए। गरिश्मा गोयल 2021 यूपीएससी केस, का हवाला दिया गया।
इसमें गोयल ने कहा था कि उसके नंबर, अंतिम चयनित प्रार्थी के बराबर आए हैं। तय सूची में से जब एक अभ्यर्थी ने ज्वाइन नहीं किया, तो अब उनका नंबर आता है। गोयल ने दावा करते हुए अदालत के समक्ष कहा, एक पद रिक्त होने के बाद अब मेरा नंबर है, मुझे नियुक्ति दो। कोर्ट ने कहा, उन्हें ज्वाइनिंग दी जाए। उस वैकेंसी को आगे फॉरवर्ड मत करो।
नई भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं करनी पड़ेगी
इसके बाद अंशुल बनाम हरियाणा राज्य, यह केस पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट के समक्ष आया था। उसमें भी कोर्ट ने गोयल के केस को कोट करते हुए एक उम्मीदवार को नौकरी दे दी। अंत में कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, आपके पास जो वैकेंसी बची है, उन्हें भरने से उम्मीदवारों का भला होगा। आपने वेटिंग लिस्ट भी नहीं बनाई।
ऐसे में आपका भी भला होगा, क्योंकि वैकेंसी भरने के नई भर्ती प्रक्रिया शुरु नहीं करनी पड़ेगी। सरकार का खर्च बचेगा। वे रिक्त पद, जिन पर किसी ने ज्वाइन नहीं किया है, उन्हें भी एसएसबी व सीएपीएफ एसएससीजीडी 2018 के अभ्यर्थियों से भरा जाए। उसमें मेरिट, श्रेणी व स्टेट डोमिसाइल का ध्यान रखा जाए।