Saturday, December 28, 2024
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जीवन शैली में अतार्किक परिवर्तन से बढ़ रही है आत्महत्या

Samvad


विश्व आत्महत्या निवारण दिवस (10 सितम्बर) पर विशेष


MANOJ TIWARI JIदुनिया में आत्महत्या दर दिनों दिन बढ़ती जा रही है। दुनिया में हर 40 सेकेंड पर एक व्यक्ति की मृत्यु आत्महत्या से होती है। इस वर्ष 21वां विश्व आत्महत्या निवारण दिवस मनाया जा रहा है इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व आत्महत्या निवारण दिवस के लिए नारा दिया है- कार्यवाही के द्वारा आशा जगाना। आत्महत्या ऐसा व्यवहार है जिसमें प्राणी स्वयं का जीवन समाप्त कर लेता है। पहले व्यक्ति में बार-बार आत्महत्या के विचार आते हैं फिर वह आत्महत्या का प्रयास करता है, आत्महत्या के सभी प्रयास सफल नहीं होतें हैं, 25 व्यक्तियों व्दारा आत्महत्या का प्रयास करने पर उनमें से एक व्यक्ति की मौत होती है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में आत्महत्या के विचार अधिक पाया जाता हैं किंतु एक महिला के सापेक्ष तीन पुरुष आत्महत्या करते हैं। आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों के संख्या के आधार पर विश्व में भारत का 43वां स्थान है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विगत वर्ष में लगभग 10 लाख लोगों की मृत्यु आत्महत्या के कारण हुई है। लैंसेट पत्रिका के अनुसार विश्व की कुल 18 प्रतिशत महिलाएं भारत में रहती हैं जबकि विश्व में महिलाओं द्वारा किए जाने वाले कुल आत्महत्या में भारतीय महिलाओं की हिस्सेदारी 36 प्रतिशत है। ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज के अनुसार भारत में हर 4 मिनट में एक आत्महत्या होती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार छात्रों में प्रतिवर्ष आत्महत्या की दर में वृद्धि हो रही है। 2020 में लगभग 12526 छात्रों ने आत्महत्या किया था वहीं 2021 में 13089 छात्रों ने आत्महत्या किया। 15-24 वर्ष के लोगों के मृत्यु का आत्महत्या दूसरा सबसे बड़ा कारण है। 81 प्रतिशत लोग आत्महत्या करने से पूर्व इसका संकेत अवश्य देते हैं। किसी से इसके बारे में चर्चा करते हैं या लिखते हैं।

आत्महत्या का विचार रखने वाले व्यक्ति निम्नलिखित बातें करतें हैं

# मेरे मरने के बाद क्या आपको दुख होगा?
# क्या मेरे बिना आप जी लेंगे?
# अब मुझे जीने का इच्छा नहीं है।
# मुझे कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है।

आत्महत्या के कारण हैं

# आर्थिक तनाव
# सामाजिक अलगाव की स्थिति
# प्रियजनों से मुलाकात न होना
# स्वस्थ मनोरंजन की कमी
# नौकरी छूट जाना
# सामाजिक क्रियाकलापों में शामिल न होना
# धार्मिक अनुष्ठानों में सहभागिता न करना
# घरेलू कलह
# समायोजन की समस्याएं
# अनिश्चितता एवं भय का माहौल
# मानसिक विकार
# भावनाओं पर नियंत्रण न रख पाना # समायोजन कौशल की कमी
# आनुवंशिकता
# साजिश करके आत्महत्या के लिए वातावरण तैयार किया जाना
# आत्महत्या के संसाधनों की आसान उपलब्धता

आत्महत्या का विचार रखने वाले व्यक्तियों के लक्षण

# बार-बार मरने की इच्छा व्यक्त करना ताकि लोग सहायता करें ।
# निराशावादी सोच प्रकट करना कहना कि मैं जी कर क्या करूंगा, मेरे जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है।
# उच्च स्तर का दोष भाव।
# असहाय महसूस करना।
# अपने को मूल्यहीन समझना
# जोखिमपूर्ण व्यवहार करना
# अचानक से व्यवहार एवं दिनचर्या में परिवर्तन।
# नशे का अधिक उपयोग करना।
# अपने पसंदीदा कार्यों में भी अरुचि दिखाना।
# परिवार व मित्रों से दूरी बना लेना।
# स्वयं को समाप्त करने का अवसर एवं साधन तलाश करना।

हस्तक्षेप

# आत्महत्या के साधनों तक पहुंच को सीमित किया जाए
# किशोरों में सामाजिक, समायोजन एवं भावनात्मक जीवन संबंधी कौशलों का विकास किया जाए
# आत्मघाती व्यवहार की पवृति रखने वाले व्यक्तियों का समय से पहचान, आकलन एवं निवारण किया जाए
# आत्महत्या संबंधी खबरों को मीडिया जिम्मेदार ढंग से प्रस्तुत करें।

आत्महत्या निवारण के उपाय

# अपनों से संवाद बंद न करें
# उत्साह को बनाए रखें।
# स्वास्थ्य संबंधी समस्या होने पर उपचार कराएं।
# आत्महत्या का विचार आने पर मनोवैज्ञानिक से परामर्श लें।
# धैर्य रखें
# धनात्मक सोचें
# उन स्थितियों पर ध्यान दें जो आपके नियंत्रण में हो।
# अपने शौक को भी पूरा करें
# स्वस्थ मनोरंजन करें
# परिवार में समय व्यतीत करें
# बच्चों के साथ खेलें
# सृजनात्मक क्षमता का विकास करें
# स्वयं को प्रेरित करें
# जीवन के अच्छे दिनों व घटनाओं का स्मरण करें
# हंँसी मजाक करने वाले व्यक्तियों के साथ समय व्यतीत करें
# कॉमेडी फिल्में देखें
# चुटकुले पढ़ें

आत्महत्या निवारण में समाज के प्रत्येक वर्ग की सहभागिता अत्यंत आवश्यक है। परिवार के सदस्यों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि 40% लोग पारिवारिक स्थितियों के कारण आत्महत्या के लिए बाध्य होते हैं। प्रारंभिक शिक्षा से ही बच्चों को जीवन में संघर्ष की महत्ता की जानकारी प्रदान की जानी चाहिए उन्हें बताया जाना चाहिए कि जीवन में यदि कोई समस्या है तो उसका समाधान किया जा सकता है। सरकार को चाहिए कि शारीरिक स्वास्थ्य देखभाल तंत्र के समान ही लोगों के मानसिक स्वास्थ्य के देखभाल के लिए भी ग्रामीण स्तर पर भी मजबूत मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तंत्र तैयार करें ताकि समय रहते बहुमूल्य जीवन को बचाया जा सके।

डॉ मनोज कुमार तिवारी
वरिष्ठ परामर्शदाता
एआरटी सेंटर, एसएस हॉस्पिटल, आईएमएस, बीएचयू, वाराणसी



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