Friday, March 24, 2023
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अंधविश्वास मूढ़ समाज की निशानी

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भारतवर्ष को दुनिया एक अध्यात्मवादी देश के रूप में भी जानती है। नि:संदेह संतों-पीरों-फकीरों और अनेकानेक अध्यात्मवादी महापुरुषों की इस पावन धरा पर चारों ओर आस्था और विश्वास का समुद्र हिलोरें मारता रहता है। परंतु यही आस्था और विश्वास जब तक संयमित रहता है, इसके परिणाम सुखद, संतोषजनक व सौहार्दपूर्ण रहते हैं, तभी तक इन्हें आस्था और विश्वास के रूप में देखा जा सकता है। जब इसी ‘आस्था और विश्वास‘ के नाम पर हिंसा, क्रूरता, पशुता, राक्षसी प्रवृति, झूठा भय यहां तक कि हत्या और मानव बलि तक की बातें होने लग जाए तो इसे ‘अंधआस्था और अंधविश्वास’ के सिवा और क्या कहा जाए।

यह हमारे देश का एक कटु सत्य है कि संसार के इतने आधुनिक, वैज्ञानिक एवं तर्कशील हो जाने के बावजूद हमारे देश का एक बड़ा वर्ग अभी भी तांत्रिकों, ज्योतिषियों, काला जादू, बंगाली जादू, इंद्र जाल, सिफली, दुआ ताबीज, कंडा-चिल्ला जैसे अनेक व्यसनों में उलझा हुआ है। आए दिन देश के किसी न किसी राज्य से अंधास्था व अंधविश्वास से जुड़ी दिल दहलाने वाली खबरें आती रहती हैं। कोई अपने ही बच्चे की बलि चढ़ाकर भगवान को खुश कर रहा है तो किसी को अपनी खुशहाली की खातिर या अपनी कोई मुराद पूरी करने के लिए अपने पड़ोसी या रिश्तेदार के बच्चे की बलि चाहिए।

कितना आश्चर्य है कि हमारे देश में क्या पढ़ा-लिखा तो क्या अनपढ़ सभी के वाहनों के पहियों में उस समय ब्रेक लग जाता है, जब कोई बिल्ली सामने से गुजर जाती है। यह सभी सदियों पुराने उस सुने-सुनाए अंधविश्वास के वाहक हैं, जिसमें न जाने किसने और कब यह बताया होगा कि ‘बिल्ली का रास्ता काटना अशुभ होता है’।

गत मात्र एक दशक से भी कम समय से न जाने किसके कहने व बताने पर या फिर एक दूसरे को देखकर तमाम युवतियां यहां तक कि अधेड़ महिलाएं अपने पैरों में काला धागा बांधने लगी हैं। इनमें अनपढ़ ही नहीं, बल्कि स्वयं को शिक्षित बताने वाली युवतियां भी शामिल हैं। उम्मीद थी कि शायद कुछ दिनों बाद फैशन का रूप धारण कर चुके इस नये नवेले अंधविश्वास से देश को मुक्ति मिल जाएगी। लेकिन काले धागे को अब लड़कियों की ही तरह लड़कों ने भी अपनी टांगों में बांधना शुरू कर दिया है।

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले से पिछले दिनों अंधविश्वास से जुड़ी एक ऐसी अपराधपूर्ण खबर सामने आई, जिसे सुनकर रूह कांप गई। 25 वर्षीय रौनक सिंह छाबड़ा नामक एक युवक ने अपने 50 वर्षीय गुरु, बसंत साहू की पहले हत्या की और हत्या के बाद वह बड़ी निर्दयता से अपने गुरु का खून भी पी गया। बाद में उसने गुरु बसंत साहू के शव को सन्नाटी जगह में ले जाकर जलाने की कोशिश की। पुलिस ने बसंत साहू की अधजली लाश बरामद करने के बाद जब तफ़्तीश के दौरान उस के शिष्य रौनक सिंह छाबड़ा से पूछताछ की तो उसी ने यह रहस्य खोला कि वह अपने गुरु से काला जादू की विद्या हासिल करना चाहता था। उसकी सोच थी कि गुरु की हत्या के बाद वह काला जादू सीख जाएगा इसीलिए प्रयोग के रूप में उसने कांड को अंजाम दिया।

छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल, झारखण्ड, उड़ीसा व उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों से तो अक्सर ही कभी किसी की चुड़ैल के नाम पर हत्या कर दी जाती है तो किसी को रस्सी या लोहे की जंजीरों से पेड़ों या खंबों में बांधकर रखा जाता है। उसे भूखा प्यासा रखा जाता है और शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। ‘अंधआस्था और अंधविश्वास’ से जकड़े इसी मूढ़ समाज को लक्ष्य बनाकर पूरे देश में विभिन्न सार्वजनक स्थलों,दीवारों,बस व ट्रेन स्टॉप आदि पर यहाँ तक कि बसों व ट्रेनों के भीतर भी झाड़-फूंक, जादू-टोना,इंद्र जाल, वशीकरण के तरीके आदि बताने वाले तमाम बकवास, झूठे व गुमराह करने वाले पोस्टर व हैंड बिल चिपके होते हैं। इन पोस्टर्स में जो दावे किए जाते हैं, उन्हें पढ़कर ही हंसी आती है।

अफसोस कि हमारा सीधा-सादा अंधआस्था और अंधविश्वास का शिकार कोई भी व्यक्ति इन झूठे विज्ञापनों के झांसे में आ जाता है और इन विज्ञापनों में दिए गए नंबरों पर स्वयं फोन कर अपने नुकसान, गुमराही यहां तक कि किसी बड़े से बड़े कुचक्र तक में उलझने के रास्ते स्वयं अख़्तियार कर लेता है। जो स्वयं अनेक पारिवारिक उलझनों व परेशानियों का शिकार हैं, वे दूसरों के घरों में सुख शांति लाने का उपाय बताते फिर रहे हैं। पेट पालने के लिए, जिन्हें स्वयं झूठ व पाखंड का सहारा लेना पड़ता है, वे दूसरों को रोजगार व नौकरी के उपाय बताते रहते हैं। इससे बड़ी हास्यास्पद बात और क्या हो सकती है।

परीक्षा के समय तमाम स्कूल-कॉलेज के बच्चे मस्जिद-मंदिर-मजार-दरगाह-पीपल-बरगद आदि पर जाकर कहीं प्रसाद चढ़ाते हैं तो कहीं जल तो कहीं धागा लपेटते हैं। कहीं-कहीं तो अपनी मांग किसी पर्ची में लिखकर चढ़ा देते हैं। जरा सोचिये कि यदि इन सब टोटकों से लोग परीक्षा पास करने लगें तो पढ़ाई के लिये परिश्रम करने की जरुरत ही क्या? हां, इन सब चक्करों में पड़ने से परीक्षार्थी का कीमती समय जरूर बर्बाद होता है।

आज हमारे देश में जय जवान, जय किसान के साथ साथ जय विज्ञान और जय अनुसंधान जैसे नारे भी जोड़ तो जरूर दिए गए हैं, लेकिन इन पर देश अमल करे इसके पहले देश के लोगों में ‘अंधआस्था और अंधविश्वास’ के विरुद्ध चेतना जगाना भी जरूरी है। जब हमारे राजनेता स्वयं ही अंधआस्था और अंधविश्वास’ को बढ़ावा देंगे, जब वे स्वयं नींबू-मिर्च लटकाकर ‘चश्म-ए-बद दूर’ करेंगे तो इस समाज को अंधेरे कुएं में गिरने से भला कौन बचा सकता है। सच तो यह है कि अंधविश्वास ही अशिक्षित एवं मूढ़ समाज की सबसे बड़ी निशानी है।


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