Monday, December 30, 2024
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कुपोषण की चुनौती

Samvad


25 1भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक देश है। दूध, दाल, चावल, मछली, सब्जी और गेहूं उत्पादन में हम दुनिया में पहले स्थान पर हैं। इसके बावजूद देश की एक बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार है। संयुक्त राष्ट्र की ‘द स्टेट आॅफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2022 की रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 के कोरोनाकाल के बाद लोगों का भूख से संघर्ष तेजी से बढ़ा है। साल 2021 में दुनिया के 76.8 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार पाए गए, इनमें 22.4 करोड़ (29 फीसदी) भारतीय थे। यह दुनियाभर में कुल कुपोषितों की संख्या के एक चौथाई से भी अधिक है। कई अन्य रिपोर्ट्स में पहले भी ये दावा किया जा चुका है कि कुपोषण भारत की गम्भीरतम समस्याओं में एक है फिर भी इस समस्या पर सबसे कम ध्यान दिया गया है। आज भारत में दुनिया के सबसे अधिक अविकसित (4.66 करोड़) और कमजोर (2.55 करोड़) बच्चे मौजूद हैं। इसकी वजह से देश पर बीमारियों का बोझ बहुत ज्यादा है, हालांकि राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़े बताते है कि देश में कुपोषण की दर घटी है लेकिन न्यूनतम आमदनी वर्ग वाले परिवारों में आज भी आधे से ज्यादा बच्चे (51 फीसदी) अविकसित और सामान्य से कम वजन (49 फीसदी) के हैं।

वैश्विक भूख सूचकांक की जो रपट 14 अक्तूबर को जारी की गई थी, उसके मुताबिक-‘भारत में भूख का स्तर बेहद गंभीर है।’ दुनिया के जिन 121 देशों का अध्ययन किया गया, उनमें भारत को 107वां स्थान दिया गया है। भारत का स्कोर 29.1 है, जबकि ‘शून्य’ के मायने हैं कि कोई भूखा नहीं है। भारत अपने पड़ोसी देशों-नेपाल (81वां), बांग्लादेश (84वां), श्रीलंका और पाकिस्तान (99वां)-से भी पीछे है। यह यथार्थ से बहुत परे की रपट है।

आंका गया है कि औसतन 5 साल की उम्र से कम करीब 20 फीसदी बच्चे दृश्यमान और जीवन के लिए खतरनाक कुपोषण के शिकार हैं। करीब 35 फीसदी बच्चे उतने लंबे नहीं हैं, जितने होने चाहिए। बेशक भूख, अपौष्टिक भोजन, एक वक्त का खाना और कुपोषण में बुनियादी अंतर हैं। पाकिस्तान की स्थिति को उसके देशवासी भी भारत से बहुत बदतर मानते हैं। श्रीलंका के मौजूदा संकट में भारत ने लाखों टन खाद्यान्न उसे मुहैया कराया था। अलबत्ता वहां के लोग दाने-दाने को मोहताज रहे हैं।

वर्ष 2021 में विश्व में कुपोषितों की संख्या 76.8 करोड़ आंकी गई थी। उनमें 22.4 करोड़ (करीब 29 फीसदी) भारतीय थे। आज इस स्थिति में बहुत सुधार है, क्योंकि खाद्य सुरक्षा औसतन भारतीय का संवैधानिक अधिकार है। इस संदर्भ में यह भी गौरतलब है कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्यान्न उत्पादक देश है। दूध, दाल, चावल, मछली, सब्जी और गेहूं के उत्पादन में भारत दुनिया में पहले स्थान पर है। ऐसा देश ‘भूखा’ कैसे रह सकता है? फिर भी इस देश में पर्याप्त कुपोषण है, यह चिंताजनक स्थिति है। भारत में गरीबी-रेखा के नीचे आबादी काफी है।

भारत सरकार इस पक्ष के साथ-साथ पोषण मिशन 2.0 और मिड डे मील जैसी परियोजनाओं के जरिए इन आंकड़ों पर चिंतन कर रही होगी, क्योंकि आजादी के बाद भारत बिल्कुल बदल गया है। भारत आत्मनिर्भर हो रहा है। कृषि की औसतन विकास-दर लगातार सकारात्मक रही है। रपटकारों को स्पष्ट करना चाहिए कि किस डाटा के आधार पर उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला है कि भारत में भूख गंभीर स्तर की है? संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन की तरफ से बुधवार, 6 जुलाई को दि स्टेट आॅफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन दि वर्ल्ड 2022: रीपरपॉजिंग फूड एंड एग्रीकल्चर पॉलिसीज टू मेक हेल्दी डाइट मोर अफोर्डेबल’ नाम की रिपोर्ट पेश की गई।

इस रिपोर्ट मुताबिक भारत में 97 करोड़ से ज्यादा लोग यानी देश की आबादी का लगभग 71 प्रतिशत हिस्सा पौष्टिक खाने का खर्च उठा पाने में असमर्थ हैं। एफएओ रिपोर्ट के अनुसार एक हेल्दी डाइट की परिभाषा में कई तरीके के मिनिमम प्रोसेस्ड फूड शामिल होते हैं। जैसे संतुलित आहार के लिए थाली में साबुत अनाज, नट्स, फलियां, फलों और सब्जियों की प्रचुरता और मॉडरेट अमाउंट में पशु प्रोटीन होना चाहिए। एफएओ की रिपोर्ट कहती है कि भारत में हेल्दी डाइट पर प्रति व्यक्ति रोजाना (2020 में) अनुमानित 2.97 डॉलर खर्च किया जाता है।

क्रय शक्ति समता के संदर्भ में इसका मतलब है कि चार सदस्यीय परिवार के लिए हर महीने 7,600 रुपये खाने पर खर्च किए जाते हैं। क्रय शक्ति समता अंतरराष्ट्रीय विनिमय का एक सिद्धांत है जिसका अर्थ किन्हीं दो देशों के बीच वस्तु या सेवा की कीमत में मौजूद अंतर से लिया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में भूख से जंग के मोर्चे पर धीमी रफ्तार में ही सही, कुछ सफलता जरूर मिली है। लेकिन, दूसरी ओर मोटापे की समस्या बढ़ रही है। 15 से 49 साल की उम्र वाले 3.4 करोड़ लोग ‘ओवरवेट’ कैटेगरी में आ गए हैं। जबकि, 4 साल पहले यह संख्या 2.5 करोड़ थी।

भारत में, बाल कुपोषण में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। 2015-16 और 2019-21 में किए गए पिछले दो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षणों (एनएफएचएस) के बीच, कम वजन वाले बच्चों में 3.7 प्रतिशत अंक की कमी आई है, बौने बच्चों में 2.9 प्रतिशत अंक की कमी हुई है और जो बच्चे कमजोर हुए हैं उनमें 1.7 प्रतिशत की कमी आई है। यह अच्छी प्रगति है। हालांकि, कोविड-19 महामारी के दो साल और हाल की व्यापक आर्थिक स्थिति के कारण आने वाले वर्षों में कुपोषण में वृद्धि होगी। घर का किराया, ईंधन, बिजली, शैक्षिक खर्च आदि जैसे खर्च बाहरी रूप से नियंत्रित होते हैं। आखिरकार, परिवार कम खाना खरीदेंगे, और अधिकतर बच्चों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

सामान्य समय में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी अधिक पाई जाती है और मुद्रास्फीति और कम आय के समय में वृद्धि की उम्मीद की जा सकती है। ऐसी स्थितियों में, परिवार सबसे पहले फल और सब्जियां में कटौती करेंगे क्योंकि वे अन्य खाद्य पदार्थों (अनाज) की तुलना में अपेक्षाकृत महंगे हैं, लेकिन वे सूक्ष्म पोषक तत्वों के मुख्य स्रोत हैं। भारत की राशन प्रणाली के प्रभाव को, खासकर संकट के दौरान, नकारा नहीं जा सकता। विश्व की एजेंसियां इस प्रणाली की सराहना करती रही हैं। भारत में बीते दो साल से ज्यादा समय से 80 करोड़ लोगों को जो मुफ्त अनाज बांटा जा रहा है, वह भी विश्व की अद्वितीय योजना है। विद्वानजनों का मानना है कि भारत में कुपोषण अपर्याप्त और अपौष्टिक भोजन का नतीजा है।


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