Monday, July 8, 2024
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देश सच में शर्मसार है

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rituparnमणिपुर में जो हुआ बेहद शर्मनाक था, उससे भी शर्मनाक पुलिस संरक्षण में जाती पीड़िता को भीड़ द्वारा छुड़ा लेना, उससे भी शर्मनाक अपराधियों की करतूत का विरोध का साहस दिखाने वाले पीड़िता के पिता और भाई की भी हत्या निर्वस्त्र पीड़िता के सामने होना, उससे भी शर्मनाक वहां के मुख्यमंत्री का बयान जिसमें कहना कि ऐसी सौ-सौ घटनाएं हुर्इं हैं? उससे भी शर्मनाक पता होकर भी पुलिस एफआईआर लिखे जाने में देरी है। जैसा झुलसते मणिपुरी कह रहे हैं कि इससे भी शर्मसार करने वाले वाकिये सामने आना बाकी है, दुखद है। देश गुस्से में है, होना भी चाहिए। अगर इंसानों का सभ्य समाज जिंदा है तो जिंदा दिखना भी चाहिए। माना कि 4 मई की घटना की सच्चाई का 21 सेकेंड का वीडियो इंटरनेट बंदी के चलते मणिपुर की बाहरी दुनिया को जल्द पता नहीं चल पाया, लेकिन वहां की स्थानीय पुलिस को 19 जुलाई तक पता नहीं चलना कई लिहाज से दुखद व शर्मनाक है।

यह भी बहुत ही दु:खद और चिंताजनक है कि दरिंदगी और शर्म से डुबो देने वाली घटनाओं को लेकर मुख्य न्यायाधीश का खुद आगे बढ़कर हरकत में आना और कार्रवाई के लिए सरकार को समय सीमा की चेतावनी देना है।

राज्य सरकार की विफलता नहीं तो और क्या है? 80 दिन पहले हुई और जिसकी एफआईआर 62 दिन पहले दर्ज होना और मामले के लिए वीडियो वायरल होने का इंतजार करना अपने आप में बड़ा सवाल है? बात महज तीन महिलाओं की आबरू की नहीं, सरे आम, सरे राह और सैकड़ों लोगों के सामने तार-तार करने की भी नहीं बल्कि इससे भी बहुत-बहुत आगे की है।

पीड़िता के बयान बहुत दर्दनाक हैं। कैसे तीन मई को आधुनिक हथियारों से लैस 800 से लेकर 1000 लोग थोबल जिÞले में उस गांव में घुस गए जहां यह घटना घटी? लूटपाट कर आग लगाती भीड़ को पुलिस ने काबू करना तो उल्टा पीड़िताओं को उन्हीं के हवाले कर देना बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है? अपने पिता व भाई के साथ खुद को बचाने जंगलों की ओर भाग रही थी तो पुलिस ऐसी देवदूत बनी जिसने थोड़ी ही दूर पर उन्हें राक्षसों की भीड़ को सौंप दिया।

भीड़ ने 20, 42 और 50 साल महिला को निर्वस्त्र कर दिया। 20 वर्षीया महिला की सरेराह और सरेआम कई-कई बार इज्जत लुटी। दुखद यह भी है कि आरोपियों में से एक पीड़िता के भाई का दोस्त था। सच में मणिपुर में नफरत की दीवारें इंसानियत और रिश्तों को तार-तार करने की हदों से भी ज्यादा है।

एफआईआर से पता चला कि कुल तीन महिलाओं में से दो को नग्न करघुमाया गया। तीसरी को कपड़े उतारने खातिर मजबूर किया गया जो वीडियो में नहीं दिखी। महिला के पति भारतीय सेना में सूबेदार होकर रिटायर हुए। वो कारगिल लड़ाई में आगे होकर लड़ चुके हैं। भारी मन से कहते हैं कि उन्होंने बड़ी-बड़ी लड़ाई लड़ीं, लेकिन अब उन्हें उनका घर भयावह युद्धों के मैदान से ज्यादा खतरनाक लगने लगा है। वो बेबस हैं जो अपनी गरिमा, घर और सारी कमाई यानी सब कुछ खो चुके हैं।

मणिपुर में पिछले 83 दिनों से हिंसा जारी है। राजधानी इंफाल बीचों बीच बसा प्रदेश का 10 प्रतिशत हिस्सा है, जिसमें 57 प्रतिशतद आबादी रहती है। बाकी 90 प्रतिशत पहाड़ी इलाके हैं, जिनमें 43 प्रतिशत लोग रहते हैं। इंफाल घाटी मैतेई बहुल है, जहां ज्यादातर हिंदू हैं तथा आबादी के लिहाज से 53 प्रतिशत हैं। मणिपुर के 60 में से 40 विधायक इसी समुदाय के हैं।

दूसरी ओर पहाड़ों में 33 मान्य जनजातियां आबाद हैं जो नगा और कुकी हैं। दोनों खासकर ईसाई हैं। वहीं 8-8 प्रतिशत आबादी मुस्लिम और सनमही समुदाय की है। संविधान का अनुच्छेद 371-सी पहाड़ी जनजातियों को वो विशेष दर्जा और सुविधाएं देता है, जो मैतेई को नहीं मिलते।

इसी लैंड रिफॉर्म एक्ट के कारण मैतेई पहाड़ों में जमीन नहीं खरीद सकते, जबकि जनजातीय के पहाड़ों से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है। बस इसी कारण दोनों में मतभेद हुए जो वक्त के साथ बढ़ते चले गए।

कुकी और मैतेई के बीच बढ़ती दूरियों की वजहें भले ही कुछ भी हों, लेकिन यदि इसके समाधान की कोशिशें होतीं तो शायद मणिपुर के हालात कुछ और होते। ऐसा लगता है कि फिलहाल न तो मजबूत राजनीतिक इच्छा शक्ति ही है और न कोई ठोस प्रयास हो रहे हैं। ये वही मणिपुर है, जहां महिलाओं को पुरुषों से ज्यादा अधिकार मिले हैं।

एशिया का सबसे बड़ा महिला बाजार एमा मार्केट राजधानी इंफाल की शोभा बढ़ाता है। अंग्रेजों के विरोध आंदोलन का खासा इतिहास भी है। शराबबन्दी पर मणिपुरी महिलाओं की जागरूकता मिशाल है। उग्रवाद के उफान के वक्त भी महिलाओं के साथ ऐसी शर्मनाक घटनाएं नहीं हुई।

इधर सोशल मीडिया पर मणिपुर की घटनाओं को लेकर अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं। जाहिर है, ये सब राजनीति का हिस्सा हो सकते हैं। लेकिन सच भी है कि इस दौर में लोग सबसे ज्यादा सोशल मीडिया को देखते, सुनते और भरोसा कर बैठते हैं। सोशल मीडिया की अनदेखी भी नहीं की जा सकती।

कुछ लोग अफीम की खेती पर प्रतिबंध से बौखलाए लोगों की करतूत बताते हैं तो कुछ इसे मूल भारतीयों के अधिकार की लड़ाई कहते हैं। जाहिर है, सोशल मीडिया के दावों की सच्चाई अपने आप में ही सवालिया होती है लेकिन लोगों तक इनके पहुंचने से रोक पाना भी तो बेहद कठिन है।

कैसी विडंबना है कि आधी आबादी के बराबरी के दावों पर काफी कुछ बोलती केंद्र या राज्यों की सरकारें नहीं अघातीं, महिलाओं के सम्मान को लेकर छाती ठोंकती हैं। लेकिन सिवाय कुछ राज्यों में बिना देरी के ऐसे अपराधियों के घर बुलडोजर चल जाते हैं, वहीं मणिपुर में सब कुछ जानते हुए भी अपराधियों पर एफआईआर तक में देरी में कैसी मजबूरी?

शायद वहां के हालात वहां की राजनीति का शिकार होकर खुद इतने बेकाबू हो गए हैं कि अब काबू कर पाना बहुत चुनौती पूर्ण है। मणिपुर पुलिस का रविवार तड़के आया एक ट्वीट महत्वपूर्ण है, जिसमें पहाड़ी और घाटी दोनों जिलों के विभिन्न क्षेत्रों में कुल 126 नाके और जांच चौकियां बनाने तथा हिंसा के संबंध में 413 लोगों को हिरासत में लेने की बात लिखी है।

राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच-37 पर पर जरूरी सामान की आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक वस्तुओं के साथ 749 वाहनों की और एनएच-2 पर 174 वाहनों की आवाजाही सुनिश्चित करने का दावा भी किया गया है। काश, पुलिस पहले चेत जाती?
फुटबॉल को शौक, पत्रकारिता को पैशन कहने वाले वहां के मुख्यमंत्री भले ही कहें कि वो आत्मा की पुकार सुनकर लोगों की सेवा करने राजनीति में आए थे।

तीन मई से जारी मैतेई और कुकी समुदायों की हिंसामें अब तक 160 लोगों की जान गई तो करीब पचास हजार लोगों का विस्थापन ही उनकी सेवा है? अभी देश क्या दुनिया भर में कितना कुछ लिखा जाएगा न इसका कोई दायरा है न कोई जानता है और न ही बता सकता है। एक देश, एक कानून और समान नागरिक संहिता को लेकर सरकार की गंभीरता के बीच मणिपुर की घटना ने आहत करते हुए कई तरह के सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं। सच में देश शर्मसार है।


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