- मेरठ में अब भी मौजूद है परवेज मुशर्रफ के परिजनों की कब्रें
- इन्ही पर फातिहा पढ़ने आना चाहता था तानाशाह
- देश छोड़ने पर प्रतिबंध के चलते मेरठ नहीं आ सका था तानाशाह
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: ‘मुहब्बत प्यार के दरिया यहां दिन-रात बहते हैं, यहां हिंदू मुसलमा प्रेम से मिलजुल कर रहते हैं, यहां नफरत नहीं मिलती मुहब्बत राज करती है, तभी तो अहल-ए-दिल हिंदुस्ता को इश्काबाद कहते हैं’। पंजाबी शायर ईशा नाज की यह पंक्तियां हकीकत में दो देशों के बीच की खाई को पाटने की कोशिश है। आज भले ही दो देश (भारत- पाक) राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के चिंताजनक दौर से गुजर रहे हों, लेकिन अपने यहां की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत आज भी एक दूसरे के लिए मिसाल है।
भारत में कई धार्मिक स्थान ऐसे हैं जहां रंजिश से परे नूरानियत बरसती है। जहां दोनों देशों के लोग भाईचारे को सलाम करते हैं। मेरठ हमेशा से ही ऐतिहासिक धरोहरों का गवाह रहा है। यह क्रांति की भूमि होने के साथ-साथ अपने अंदर इतिहास भी समेटे हुए है। पाकिस्तान के तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ ने रविवार को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। यह तानाशाह मेरठ आने की हसरत लिए इस दुनिया से विदा हो गया।
दरअसल मेरठ में जनरल परवेज मुशर्रफ के कई परिजनों की कब्रें हैं। उनके कई परिवार के लोगों को यहां दफनाया गया है। मेरठ में ईदगाह चौराहे के पास चिश्ती पहलवान के नाम से एक कब्रिस्तान है। कब्रिस्तान में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति व तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ के लगभग दर्जनभर परिजन दफन है।
हालांकि लोगों को इसकी बहुत कम जानकारी है। पाकिस्तान का यह तानाशाह चाहता था कि वे एक बार मेरठ आकर अपने परिजनों की कब्रों पर फातिहा पढ़ें, लेकिन उस समय उन्हें पाकिस्तान छोड़ने की इजाजत नहीं थी जिसके चलते तानाशाह की मेरठ आने की हसरत दिल में ही रह गई।
परवेज मुशर्रफ के परिजन जो इस कब्रिस्तान में दफन
- प्रोफेसर हुस्ना बेगम (परवेज मुशर्रफ की सगी खाला अथवा मौसी की लड़की)
- काजी बशीरुद्दीन (परवेज मुशर्रफ के खालू अथवा मौसा)
- काजी नजमुद्दीन (परवेज मुशर्रफ की कजन सिस्टर के दादा)
- सैयद मुहम्मद हुसैन शाह (परवेज मुशर्रफ की कजन सिस्टर के बहनोई)
- शाहिदा बानो (परवेज मुशर्रफ की रिश्ते की बहन)
- जकिया बेगम (परवेज मुशर्रफ की सगी खाला की लड़की)
- सैयदा बेगम (परवेज मुशर्रफ की सगी खाला अथवा मौसी)
- काजी जहीरउ%E