Thursday, May 29, 2025
- Advertisement -

…तमन्ना इतनी बस ‘भोले’ की मन्नत हो जाए पूरी

  • देश के कई हिस्सों में जाती है सुहेल की बनाई कांवड़
  • अपनी श्रद्धा से चौथी पीढ़ी लगी हुई है इस काम में

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: ‘कोई हिन्दू लिए बैठा कोई मुस्लिम लिए बैठा, वतन को बांटने का ख्वाब हर जालिम लिए बैठा, किसे मालूम है जयराम के घर रोटियां कम हैं, खबर किसको कटोरा चौक पर कासिम लिए बैठा’। देश के हालातों की कड़वी सच्चाई को बयां करने के लिए यह पंक्तियां काफी हैं। यह तस्वीर का वो पहलू है जिसमें सिर्फ अंधेरा दिखाई देता है। इससे पलट तस्वीर का दूसरा पहलू सुकून के पल देने वाला भी है।

जहां सुहेल जैसे लोग अपनी पूरी टीम के साथ मिलकर दिन रात की मेहनत के बाद दिनेश, राकेश और अंकित के लिए कांवड़ तैयार करते हैं और इसमें भी उनका यह जज्बा देखिए कि यह कांवड़ वो पैसा कमाने के लिए नहीं बल्कि अपनी श्रद्धा के तौर पर तैयार करते हैं ताकि ‘शिवभक्त भोलों’ की मन्नत में कुछ हिस्सा उनका भी पूरा हो जाए। सुहेल अपनी पीढ़ी की चौथी कड़ी है जो इस काम को अंजाम दे रही है।

01 16

दरअसल, आज के इस जहरीले वातावरण में यदि कोई प्यार के दो बोल भी बोल ले तो वो किसी अमृत से कम नहीं होते। सुहेल के जज्बे को हम सलाम करते हैं क्योंकि वो जिस काम को अंजाम देने में जुटा है वो अपने आप में एक मिसाल है। यहां यह भी एक कड़वा सच है कि सुहेल की विचारधारा के और बहुत से लोग ऐसे भी मिल जाएंगे जिनकी सोंच सुहेल की सोंच से कोसों दूर हैं। सुहेल की सोच सिर्फ कांवड़ तक ही सीमित नहीं है बल्कि जब दशहरा का पर्व आता है तो वो जलाने के उद्देश्य से रावण के पुतले भी तैयार करता है।

कांवड़ तैयार कर चले जाते हैं हरिद्वार

सुहेल बताते हैं कि जब कांवड़ का दौर शुरु होता है तो उससे दो तीन महीने पहले ही वो अपनी पूरी टीम के साथ कांवड़ तैयार करने में जुट जाते हैं। इस दौरान वो 100 से अधिक छोटी बड़ी कांवड़ तैयार कर लेते हैं। उनकी यह श्रद्धा यहीं पूरी नहीं होती। जैसे-जैसे शिवरात्रि का पर्व नजदीक आता है तो सुहेल अपनी तैयार की हुई कांवड़ों के साथ हरिद्वार चले जाते हैं और फिर वहां इन कांवड़ों का वितरण करते हैं।

बाकायदा वो हर की पौड़ी के पास दुकान लगाते हैं और जो भी शिवभक्त उनकी दुकान से कांवड़ खरीदता है तो इसमें कोई मोल भाव नहीं होता, अपनी श्रद्धा व आस्था के रुप में ‘भोला’ जो भी नजराना पेश करता है सुहेल उसे कुबूल कर लेते हैं। सुहेल खुद कहते हैं कि कांवड़ उनकी कमाई का जरिया नहीं बल्कि दिल की श्रद्धा का मामला है।

देश के कई हिस्सों में जाती हैं सुहेल की कांवड़

जो कांवड़ सुहेल और उनकी टीम तैयार करती है वो देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले कांवड़िये अपने साथ लेकर जाते हैं। बकौल सुहेल जहां पहले सिर्फ डंडे वाली कांवड़ का जोर था। वहीं अब कई तरह की फैन्सी कांवड़ों का दौर चल पड़ा है और उसी हिसाब से वो कांवड़ तैयार करते हैं। इसके अलावा मंदिर वाली कांवड़, पालकी वाली कांवड़ व डोले वाली कांवड़ खास तौर पर तैयार की जाती है।

सुहेल यह भी बताते हैं कि जो बड़ी कांवड़ वो बनाते हैं उसमें नीचे पहिए जरूर लगाते हैं ताकि शिव भक्तों को इसे चलाने में ज्यादा जोर न लगाना पड़े। उनकी यह कांवड़ हापुड़, बुलंदशहर, गाजियाबाद, दिल्ली, गुुड़गांव, राजस्थान, पानीपत, सोनीपत, लुधियाना व पंजाब के अन्य हिस्सों तक में जाती है। सुहेल कई कांवड़ विशेष आॅर्डर पर भी तैयार करते हैं।

spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Saharanpur News: सहारनपुर पुलिस की हुई वाहन चोरों से मुठभेड़ गोली लगने से एक बदमाश घायल

जनवाणी संवाददाता |सहारनपुर: कुतुबशेर थाना पुलिस की शातिर वाहन...
spot_imgspot_img