मान्यता है कि शिव के एक गण का नाम नंदी है। जिस तरह गायों में कामधेनु श्रेष्ठ है, उसी तरह बैलों में नंदी श्रेष्ठ है। नंदी में बल, शक्ति, समर्पण और निर्लेप जैसे गुणों का समावेश है। बैल को मोह-माया और भौतिक इच्छाओं से परे रहने वाला प्राणी माना जाता है। यह सीधा-साधा, शांत रहने वाला प्राणी, आवश्यकता पड़ने पर शेर से भी लड़ सकता है। इसके इन्ही गुणों की समानता के कारण भगवान शिव ने नंदी बैल को अपना वाहन बनाया। धार्मिक मान्यताओं और कथाओं के अनुसार शिलाद ऋषि ने शिव की तपस्या के बाद नंदी को पुत्र के रूप में पाया था।
नंदी को उन्होंने वेदों के ज्ञान सहित अन्य ज्ञान भी प्रदान किया। एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नाम के दो दिव्य संत पधारे। नंदी ने पिता की आज्ञा से उनकी खुब सेवा की जब वे जाने लगे तो उन्होंने ऋषि को तो लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया लेकिन नंदी को नहीं। तब शिलाद ऋषि ने उनसे पूछा, ऋषिवर, आपने दीर्घ आयु का आशीर्वाद मुझे दिया पर मेरे पुत्र नंदी को क्यों नहीं दिया? तब संतों ने सकुचाते हुए उत्तर दिया, शिलाद, तुम्हारा नंदी अल्पायु है।
पिता ने नंदी से कहा, तुम्हारी अल्पायु के बारे में संत कह गए हैं। चिंतित हूं। नंदी हंसने लगा और कहने लगा, आपने मुझे भगवान शिव की कृपा से पाया है तो मेरी उम्र की रक्षा भी वहीं करेंगे आप चिंता न करें। इतना कहते ही नंदी, भुवन नदी के किनारे शिव की तपस्या करने के लिए चले गए। कठोर तप के बाद शिवजी प्रकट हुए और कहा, वरदान मांगों वत्स। तब नंदी के कहा, प्रभु, मैं उम्र भर आपके सानिध्य में रहना चाहता हूं। नंदी के समर्पण भाव से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन और अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया।
प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा