नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉट कॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन है। आज यानि 17 अप्रैल को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की पुण्यतिथि है। डॉ. सर्वपल्ली 20वीं सदी के महान दार्शनिक एवं राजनीतिज्ञ में से एक है।
डॉ. राधाकृष्णन ने पूरी दुनिया को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित कराया। डॉ. सर्वपल्ली देश के पहले उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति थे।
डॉ. सर्वपल्ली बचपन से ही थे मेधावी
प्रकांड विद्वान और दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का दक्षिण भारत के तिरूतनी नाम के एक गांव में 1888 को जन्म हुआ था। वे बचपन से ही मेधावी थे। उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. की उपाधि ली और सन् 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हो गए।
इसके बाद वे प्राध्यापक भी रहे। डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित कराया। सारे विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा की गई।
शिकागो विश्वविद्यालय ने डॉ. राधाकृष्णन को तुलनात्मक धर्मशास्त्र पर भाषण देने के लिए आमंत्रित किया। वे भारतीय दर्शन शास्त्र परिषद् के अध्यक्ष भी रहे। कई भारतीय विश्वविद्यालयों की भांति कोलंबो एवं लंदन विश्वविद्यालय ने भी अपनी-अपनी मानद उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया।
अंग्रेजी सरकार ने किया सम्मानित
डॉ. राधाकृष्णन अपने राष्ट्रप्रेम के लिए विख्यात थे, फिर भी अंग्रेजी सरकार ने उन्हें सर की उपाधि से सम्मानित किया क्योंकि वे छल कपट से कोसों दूर थे। अहंकार तो उनमें नाम मात्र भी न था।
भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने डॉ. राधाकृष्णन
सन् 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बनाए गए। इस महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया। 13 मई, 1962 को डॉ. राधाकृष्णन भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने। सन् 1967 तक राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने देश की अमूल्य सेवा की।
शिक्षकों के लिए किया जीवन समर्पित
डॉ. राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद और लेखक थे। वे जीवनभर अपने आपको शिक्षक मानते रहे। उन्होंने अपना जन्मदिवस शिक्षकों के लिए समर्पित किया। इसलिए 5 सितंबर सारे भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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