Sunday, August 24, 2025
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मिट्टी परीक्षण के बाद ही उर्वरक प्रयोग करें


रबी फसलों की कटाई के बाद खेत की मिट्टी की जांच 3 साल में एक बार अवश्य कराएं और मृदा स्वास्थ्य कार्ड के आधार पर संतुलित उर्वरक का प्रयोग करें। वर्तमान में किसान असंतुलित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर रहा है, जिससे भूमि के भौतिक गुणों एवं उर्वरा शक्ति में गिरावट आ रही है।

जिस कारण फसलों का उत्पादन स्थिर हो रहा है साथ ही असंतुलित उर्वरकों के प्रयोग से फसलों में कीट-व्याधियों का प्रकोप बढ़ रहा है, अर्थात खेती की लागत बढ़ती जा रही है। इसलिए किसान भाई अपने प्रत्येक खेत की मिट्टी की जांच अवश्य करायें एवं भूमि में उपलब्ध पोषक तत्वों के आधार पर ही उर्वरकों का प्रयोग करें।

  • मिट्टी परीक्षण के लिए सबसे पहले खेत में 4 से 6 मिट्टी के नमूना लेने के लिए स्थान का चयन करें, फिर उस जगह की ऊपर की मिट्टी की फावड़ा से साफई कर लें, उसके बाद कुदाली या खुरपी से 6 इंच गहरा गड्ढा कर लें, उसके बाद गड्ढे से खुरपी की सहायता से ऊपर से नीचे दोनों तरफ से आधा किलो मिट्टी खोद लें।

  • उसके बाद सभी गड्ढों की मिट्टी को एक साथ इक करके मिला लें फिर उस ढेर में से मिट्टी के नमूना हेतु आधा किलोग्राम मिट्टी को एक प्लास्टिक या कपड़े की थैली में जमा कर लें, यदि मिट्टी गीली हो तो छांव में सुखा लें।

  • उसके बाद एक कागज पर पेन से किसान का नाम, गांव, खेत की पहचान, खेत में आगे ली जाने वाली फसल का नाम, सिंचाई सुविधा एवं मोबाइल नंबर, आदि लिखकर एक थैली के अंदर और थैली के बाहर चिपका लें।

  • इस प्रकार मिट्टी का नमूना जांच के लिए तैयार हो जाता है। उस नमूना को मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला में भेजकर जाँच करा लें और मृदा स्वास्थ्य कार्ड के आधार पर ही अगली फसलों में उर्वरकों का प्रयोग करें।

  • मिट्टी परीक्षण के बाद यदि मृदा का पी.एच. मान 6.5 से कम है तो मृदा अम्लीय है, उसे सुधारने के लिए चूने की मात्रा 2-3 टन प्रति हेक्टेयर डालकर अम्लीय मृदा सुधार कर सकते हैं।

  • क्षारीय मिट्टी का पी.एच. मान 8.5 से अधिक है तो क्षारीय मिट्टी के सुधार हेतु जिप्सम, गंधकीय प्रेसमड (चीनी मील से निकला अपशिष्ट पदार्थ) कम्पोस्ट पाइराइट आदि डालें।

  • लवणीय मिट्टी का पी.एच. मान 8.5 से कम परन्तु विद्युत चालकता 4 मि. मोज प्रति से.मी. से अधिक होती है एवं विनियम सोडियम कम रहता है तो लवणीय मृदा के सुधार के लिए जल निकास की व्यवस्था आवश्यक है। मेड ऊंचा कर दें और जल को मिट्टी में लगा रहने दें ताकि लवण घुल जाए। उसके बाद पानी को बाहर निकाल दें।


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