नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। आज सोमवार को विजया एकादशी है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विजया एकादशी कहा जाता है। वहीं, हिंदू पंचाग के अनुसार एकादशी तिथि की शुरूआत 23 फरवरी को दोपहर 01 बजकर 55 मिनट पर हो रही है। वहीं, इस तिथि का समापन 24 फरवरी को दोपहर 01 बजकर 44 मिनट पर होगा। बता दें कि, विजया एकादशी व्रत 24 फरवरी को किया जाएगा।
धार्मिक ग्रंथों में इस व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। इस व्रत को रखने से साधक को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से साधक को सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन में सफलता मिलती है। श्रीराम ने भी लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए इस व्रत का पालन किया था, जिसके कारण इसे “विजया” नाम प्राप्त हुआ। ऐसे में आइए जानते है विजया एकादशी की पौराणिक कथा और पूजा विधि…
जानें इस व्रत की महिमा
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से विजया एकादशी का व्रत करता है, उसे अनेकों यज्ञों के समान फल प्राप्त होता है। इस व्रत का पुण्य पितरों को मोक्ष प्रदान करने वाला और संतान को समृद्धि देने वाला माना गया है। इसके प्रभाव से जीवन में आने वाली कठिनाइयां समाप्त होती हैं और मनुष्य को आत्मिक शांति प्राप्त होती है। यह एकादशी विशेष रूप से दुष्कर कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए की जाती है।
पूजा विधि
विजया एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान करके व्रत का संकल्प लिया जाता है। भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा चित्र को पीले वस्त्र पहनाकर पूजा करनी चाहिए। धूप, दीप, नैवेद्य, तुलसी दल और पंचामृत से भगवान का अभिषेक करने के बाद श्रीहरि को फल, मिठाई और पीले फूल अर्पित करने चाहिए। इस दिन व्रती को पूरे दिन भगवान विष्णु के नाम-स्मरण और भजन-कीर्तन में लीन रहना चाहिए। रात्रि जागरण करने से व्रत का पुण्य कई गुना बढ़ जाता है। अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए। इस व्रत में
इस दिन इन मंत्रों का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
ॐ विष्णवे नमः।
ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।
विजया एकादशी की पौराणिक कथा
शास्त्रों में प्रसंग आता है कि त्रेता युग में जब भगवान श्री राम लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र तट पर पहुंचे, तब मर्यादा पुरुषोत्तम ने समुद्र देवता से मार्ग देने की प्रार्थना की परन्तु समुद्र देव ने श्रीराम को लंका जाने का मार्ग नहीं दिया। तब श्री राम ने वकदालभ्य मुनि की आज्ञा के अनुसार विजया एकादशी का व्रत विधि पूर्वक किया जिसके प्रभाव से समुद्र ने प्रभु राम को मार्ग प्रदान किया। इसके साथ ही विजया एकादशी का व्रत रावण पर विजय प्रदान कराने में सहायक सिद्ध हुआ और तभी से इस तिथि को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है।