Tuesday, May 13, 2025
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विजया दशमी विशेष:  ‘कोरोना-रावण’ मारो राम !


डॉ. घनश्याम बादल 

दशहरा  है सद्प्रवृत्तियों की विजय की कामना और कुत्सित भावों का नाश। आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो राम भले ही कम हों, पर नानारूप धरे रावण असंख्य घूम रहे हैं। कोरोना के साथ-साथ इस दशहरे पर इन सब से भी मुक्ति पानी है। भ्रष्टाचार के रूप एक और भी रावण भारत में हैं, जो देश को अंदर बाहर से खोखला कर रहा है। रिश्वतखोरी, बेईमानी, पक्षपात, गलत काम, शोषण, दोहन सब इसी रावण की संततियां हैं इसे मय संतानों के मारना, भगाना होगा तब कहीं जाकर दशहरा विजय दिवस बन पाएगा।
शौर्य, वीरता, मर्यादा व अच्छाई  के आराधक रहे हैं भारतीय। वे हिंसा और रक्तपात में यकीन नहीं करते  पर, शोषण के खिलाफ हम चुप भी नहीं रहते। ऐसा आज से नहीं युगों से होता रहा है। हम अच्छाई के प्रतीक राम को भगवान मानकर पूजते हैं तो बुराई के प्रतीक रावण को राक्षस कहकर जलाते हैं। पाप के नाश को किए गए पराक्रम व बुराई के नाश को समर्थन देने के पर्व के रूप में दशहरे का पर्व मनता है। दशहरे का मतलब है मेले के लिए बच्चों के लिए खिलौने सामूहिक पूजन अर्चना और मिलने मिलाने का मौका। मगर, इस बार हालात बिल्कुल अलग हैं देश में 31 जनवरी को मिले पहले कोरोना संक्रमण प्रकरण के बाद से अब तक लगभग आठ महीने हो गए हैं। देश कभी लॉकडाउन तो कभी अनलॉक की वेदनापूर्ण प्रक्रिया से गुजर रहा है, पांच अनलॉक के बाद भी हालात सामान्य नहीं हैं। मुंह पर मॉस्क और एक दूसरे से कम से कम दो गज की दूरी बहुत जरूरी हो गई है। सरकार की टैगलाइन ‘जब तक दवाई नहीं तब तक ढिलाई नहीं’ मानस पर बैठ चुकी है। ऐसे में कैसे मनाएं दशहरा? कैसे लगें मेले ठेले? कैसे मिलें एक दूसरे से?
नए  राम, नए रावण
राम हर युग  में  रहे हैं। कभी दशरथ पुत्र रामचंद्र थे जो पिता की आज्ञा मान, सारे सुख त्याग, राज छोड़ वनगमन कर गए और वहां जाकर भी आसुरी ताकतों से बिना संसाधनों के भी केवल आत्मबल और अपनी संगठन शक्ति के दम पर रावण जैसे बाहुबलि, साधन संपन्न रावण से भिड़ गए और तब तक लड़े जब तक कि उसका संपूर्ण वंश के साथ नाश नहीं कर दिया। यह राम का पराक्रम भी था और अपने आत्म सम्मान की लड़ाई के लिए पूरी ताकत झोंक देने का माद्दा भी। आज हमारे पास कोरोना से लड़ने की एसओपी है, खुद की जान खतरे में डालकर आम लोगों की जान बचाने वाले कोरोना वारियर्स के रूप में डॉक्टर नर्स दूसरे स्वास्थ्य कर्मी पुलिस कर्मी और दूसरे विभागों के कर्मचारी हैं जो इस देश की खुशी रूपी सीता को वापस लाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। आज के हिसाब से यह सब राम न सही राम के अंश या उनके वंश तो अवश्य ही किए जा सकते हैं। बेहतर हो कि हम दशहरे के अवसर पर इनका सम्मान करें और उनके बताए हुए मानकों का पालन करें। और इस सोच के साथ कोरोना के खिलाफ जंग में उतरें चाहे कुछ भी हो, पर  समाज  की रक्षा के लिए  कोरोना रूपी  रावण से युद्ध में दशहरे को हर हाल में विजय पर्व में बदल कर ही मानेंगे।
मारें नासमझी का रावण 
दूसरी तरफ रावण था जिसे अपने संसाधनों, ताकत, सत्ता, बलवान भाइयों व महाबलि पुत्रों का जबर्दस्त अहंकार था। जिसे अपनी अकूत संपत्ति व अजेय दुर्ग सोने की लंका में रह कर कुछ भी कर लेने व किसी को भी अपमानित, लांछित करने, लात मार कर भगा देने का घमंड विनाश के कगार पर ले जाता है। सही सलाह देने वाले भाई से अलग कर देता है, तो अपराध में साथ देने वले कुंभकर्ण जैसे भाई व देवों तक को हरा देने वाले मेघनाद जैसे बेटों को भी वह मरवा डालता है। उसके काम न मायावी बेटे अहिरावण की माया व षड़यंत्र आते हैं न ही सुरसा या कालनेमि जैसे धुरंधर वीर व मायावी उसे बचा पाते हैं। यानी रावण की नासमझी और अहंकार उसके पतन का कारण बने तो इस दशहरे पर हम खास तौर पर कोरोना के खिलाफ ना समझी ना दिखाएं अपने अहंकार में मास्क उतार कर ना फेंके और अतिशय आत्मविश्वास के चलते 2 गज की दूरी का उल्लंघन ना करें नहीं तो हम में और रावण में फर्क ही क्या रहा और जब फर्क नहीं रहेगा तो फिर हमारा अंत भी वैसा ही हो सकता है जैसा कि रावण का हुआ तो आइए इस विजयदशमी पर हम अपने अंदर बैठे नासमझी के रावण को जीतने ना दें।
श्रीरामचंद्र थोडेÞ बंदर भालुओं को एकत्र कर उसे न केवल रावण परास्त कर देते हैं, अपितु उस समुद्र पर भी पुल बांध देते हैं, जिसे कभी कोई पार ही नहीं कर पाया था तब तक। जानते हैं ऐसा क्यों हुआ? उस सारे पराक्रम व पतन के पीछे है नीयत का खेल। प्रवृत्ति व चिंतन का फर्क, अच्छे और बुरे के भेद का ज्ञान, अहंकार और चुनौती का सामना करने का जज्बा। सत्य और तम का फर्क इन्ही सब को रेखांकित करता है  दशहरे का महाउत्सव। तो आइए सुविधाओं एवं संसाधनों की कमी का रोना छोड़ कर ‘कोरोना रावण’ को अपने ही संसाधनों से परास्त करें इस बार दशहरे पर। संकेत साफ है, यदि एन 95 या दूसरे मास्क उपलब्ध नहीं हैं तो घर के बने मास्क का प्रयोग करें, बीमार होकर अस्पताल जाने या क्वारंटाइन होने से बेहतर है बीमार ही ना पड़े। मौसम बदल रहा है सर्दी, जुकाम, खांसी, बुखार हमला करने की कोशिश करेंगे और यदि वें सफल रहे तो फिर हो सकता है आपको कोविड टेस्ट भी अनचाहे कराना पड़े। इस दशहरे पर संकल्प लें कि कोविड पॉजिटिव तो क्या होना हमें उसके टेस्ट के लक्षणों की सीमा रेखा में भी नहीं आना है।
 दशहरा बनाएं अभूतपूर्व 
एक कुत्सित प्रवृत्ति के रूप में रावण को मारने व भोलेपन और सद्प्रवृत्ति की प्रतीक सीता की रक्षा के लिए किसी भी तरह से  संसाधन जुटाने व व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता का संचार करने का दूसरा नाम भी है दशहरा। यह दशहरा भी है, दंशहरा भी और दशहारा भी। दस प्रकार के पापों-काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। किसी भी युग में और किसी भी रूप  में जन्मे और बढ़ रहे रावणों के वध के उद्घोष का दूसरा नाम ही है दशहरा जो रावण के दस शीशों के प्रतीक दसों दिशाओं में फैले उसके अहंकार और मायाजाल को काटने तोड़ने भेदने का सीधा सीधा संदेश लेकर आता है  आश्विन मास की दशमी को। हमें भी सीता रूपी गरीब जनता के लिए अपने संसाधनों में से कुछ देकर उसे जागरूक करके कोरोना से उसकी रक्षा करनी है और यदि हम ऐसा कर पाए तो इस बार का दशहरा अभूतपूर्व संतुष्टि देकर जाएगा।
हे राम, कितने रावण! 
दशहरा  है सद्प्रवृत्तियों की विजय की कामना और कुत्सित भावों का नाश। आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो राम भले ही कम हों, पर नानारूप धरे रावण असंख्य घूम रहे हैं। कोरोना के साथ-साथ इस दशहरे पर इन सब से भी मुक्ति पानी है। भ्रष्टाचार के रूप एक और भी रावण भारत में हैं, जो देश को अंदर बाहर से खोखला कर रहा है। रिश्वतखोरी, बेईमानी, पक्षपात, गलत काम, शोषण, दोहन सब इसी रावण की संततियां हैं इसे मय संतानों के मारना, भगाना होगा तब कहीं जाकर दशहरा विजय दिवस बन पाएगा।
कौन हैं नए राम
जहां हमें इतने सारे  रावण मारने हैं वहीं हमें नई सोच के राम भी खड़े करने होंगे, क्योंकि जब तक ये राम खड़े नहीं होंगे, तब तक रावण मरने वाला नहीं है। आज  दृढ़ संकल्प और देश की समुद्धि के लिए सब त्याग देने वाले, अपने सुख कम और अपनों के सुख के लिए ज्यादा सोचने वाले राम चाहिएं जो स्वयं के सुख भोग के लिए नहीं अपितु जन्मभूमि को स्वर्ग बनाने के लिए आएं।  ऐसे राम चाहिए जो न्याय की यश पताका फहराएं और अन्याय समूल खत्म करें और इन सबसे बढ़कर इस बार के सबसे खतरनाक सहस्रमुखी और वायरस रूपी महामारी को अपने अंदर समेटने वाले कोरोना रूपी रावण का वध करना अत्यावश्यक है। उम्मीद करें कि जल्दी इस युग के शोधकर्ता रूपी राम बहुत जल्द ही वैक्सीन रूपी अग्निबाण लेकर इस कोरोना  रूपी रावण का दहन करने में सफल होंगे।

फीचर डेस्क Dainik Janwani

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