Monday, July 1, 2024
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विश्व ब्रह्मऋषि ब्राह्मण महासभा ने रानी लक्ष्मीबाई की जयंती मनाई

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जनवाणी संवाददाता |

गाजियाबाद: जीटी रोड रेलवे मोड़ पर विश्व ब्रह्मर्षि ब्राह्मण महासभा के संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष ब्रह्मर्षि विभूति बी के शर्मा हनुमान के नेतृत्व में रविवार को रानी लक्ष्मीबाई की जयंती मनाई गई। इस दौरान बीके शर्मा हनुमान ने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की महान सेनापति थी। उनका बचपन का नाम मनु भाई था इनका जन्म 19 नवंबर 1828 वाराणसी में हुआ। झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मी बाई पड़ा।

लक्ष्मीबाई के पिता ब्राह्मण थे, जबकि उनकी मां बहादुर व धार्मिक थी। रानी की मां उन्हें मात्र चार वर्ष की आयु में छोड़कर स्वर्ग सिधार गई। रानी लक्ष्मीबाई ने बचपन में ही घुड़सवारी तलवार और बंदूक चलाना सीख लिया था। विवाह के पश्चात 18 51 में रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। परंतु दुर्भाग्यवश वह मर गया। उस समय उसकी उम्र मात्र चार महीने थी। फिर रानी ने एक पुत्र गोद लिया।

उन्होंने उस दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा, परंतु अंग्रेजों को यह अच्छा नहीं लगा की रानी लक्ष्मीबाई का दत्तक पुत्र दामोदर राव उनके सिंहासन का कानूनी वारिस बने, क्योंकि झांसी पर अंग्रेज स्वयं शासन करना चाहते थे। इसलिए अंग्रेजों ने कहा कि झांसी पर रानी लक्ष्मीबाई का अधिकार खत्म हो जाएगा, क्योंकि उनके पति महाराजा गंगाधर का कोई उत्तराधिकारी नहीं है और फिर अंग्रेजों ने झांसी को अपने राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी। उन्होंने बताया कि इसी बात पर अंग्रेज और झांसी वासियों के बीच युद्ध छिड़ गया।

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आत्मसम्मान का प्रतीक था इसी बीच सन 18 सो 57 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो गया। रानी लक्ष्मी बाई युद्ध विद्या में पारंगत थी। वह पूरे शहर को स्वयं देख रही थी। रानी ने पुरुषों का लिबास पहना हुआ था। बच्चा उसकी पीठ पर बंधा हुआ था। रानी ने घोड़े की लगाम मुंह में पकड़ी हुई थी और उनके दोनों हाथों में तलवारें थी।

उन्होंने अंग्रेजों के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं किया और अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया अन्य राजाओं ने उनका साथ नहीं दिया। इस कारण वह हार गई और उन्होंने झांसी पर अंग्रेजो का कब्जा हो जाने दिया। इसके बाद कालपी जाकर उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा।

नाना साहब और तात्या टोपे के साथ मिलकर रानी ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। महारानी लक्ष्मीबाई घुड़सवार की पोशाक में लड़ते-लड़ते 17 जून 1858 को शहीद हो गई, यदि जीवाजी राव सिंधिया ने रानी लक्ष्मीबाई से छल किया न होता तो भारत अट्ठारह सौ सत्तावन में ही अंग्रेजों के आधिपत्य से स्वतंत्र हो गया होता। हर भारतीय को उनकी वीरता सदैव स्मरण रहेगी।

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी। इस अवसर पर विश्व ब्रह्मऋषि ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी विजय कौशिक, राष्ट्रीय महासचिव आरपी शर्मा, डॉक्टर प्रवीण, मिलन मंडल, कार्तिक, राकेश विश्वास, अर्जुन, आर पी शर्मा, हर्षित शर्मा, मौजूद रहे।

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