दलित और पिछड़े युवाओं के उत्थान के लिए लाया गया आरक्षण अब सत्ता में पहुंचने माध्यम बनता जा रहा है। अलग-अलग राज्य में राजनैतिक दल जहां आरक्षण को अपने हिसाब से अदल-बदल रहे हैं, वही प्राइवेट सैक्टर में भी आरक्षण लागू करने की कोशिश हो रही है। कुछ राज्यों ने अपने यहां ये आरक्षण लागू किया पर वहां के हाईकोर्ट ने उसे अवैध बताते हुए रोक लगा दी, पर कोशिश जारी है।
सर्वोच्च न्यायालय की सात न्यायधीश की संविधान पीठ आरक्षण में क्रीमीलेयर लागू करने की बात की तो विपक्ष ने राजनैतिक लाभ उठाने के लिए इसका विरोध शुरू कर दिया। हालाकि प्रधानमंत्र नरेंद्र मोदी आश्वस्त कर चुके हैं कि आरक्षण में क्रीमीलेयर लागू नही होगा, इसके बावजूद आरक्षण समर्थक राजनैतिक दलों ने इसके विरूद्ध आंदोलनरत हैं। अभी वे भारत बंद का आह्वान कर ही चुके हैं। इससे पहले कर्नाटक में प्राइवेट नौकरी में स्थानीय के लिए शत-प्रतिशत आरक्षण को लागू करने पर विवाद खड़ा हो गया। हालांकि प्रदेश कैबनेट में पास किया गया ये कानून विरोध को देखते हुए ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, पर खत्म नहीं किया गया। मुख्यमंत्री ने कहा है कि अगली केबनेट की बैठक में इसपर फिर विचार होगा।
हाल के लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के आते-आते प्रचार आरक्षण पर आकर सिमट गया। भाजपा नेता अपने भाषणों में दावा कर रहे हैं कि हम देश में मुस्लिम आरक्षण लागू नहीं होने देंगे। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सभाओं में मुस्लिम आरक्षण पर चिंता जाहिर कर रहे हैं। वह कह रहे हैं कि सत्ता में आते ही इंडिया गठबंधन दलित और पिछड़ों का आरक्षण काटकर मुस्लिमों को दे देगा। वे देश का विभाजन करवा देंगे। इस पर कुछ बड़े नेता तो चुप्पी साधे हैं, किंतु समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन ने एक बयान में कहा है कि इंडिया गठबधंन के सत्ता में आते ही संविधान में संशोधन कर मुस्लिमों को सरकारी सेवाओं में आरक्षण दिया जाएगा।
आज आरक्षण राजनेताओं को सत्ता में पंहुचने का माध्यम नजर आने लगा है, वे इसे बढ़ाने की बात कर रहे हैं, खत्म करने की नहीं। किसी को यह सोचने की फुरसत नहीं कि आरक्षण की मार से बचने के लिए देश के प्रतिभाशाली युवा आज विदेशों में जाकर शिक्षा ले रहे हैं। शिक्षा पूरी कर वहीं नौकरी या व्यवसाय कर चुने गए देश के विकास में योगदान कर रहे हैं। भारत के बाहर जाकर बसी भारत की मेधा से प्रभावित होते देश के विकास पर किसी को सोचने का समय नहीं।
कर्नाटक से पहले प्राइवेट सेक्टर में स्थानीय लोगों को आरक्षण देने के लिए आंध्र प्रदेश और हरियाणा में कोशिश की गई थी। वहीं, मध्य प्रदेश में भी सरकार ने ऐसा ही कहा था, लेकिन यह कोशिश रंग नहीं ला पाई थी। 2019 में आंध्र प्रदेश में पहली बार ऐसा कोई कानून बना था जहां 75 प्रतिशत स्थानीय लोगों को प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण देने की बात कही गई थी। पर हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था। फिलहाल, ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है। महाराष्ट्र में 2019 में शिवसेना-कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन की सरकार बनने के बाद प्राइवेट नौकरियों में स्थानीयों को 80 प्रतिशत नौकरियां देने का प्रस्ताव लाया गया था। सरकार सरकार इसे विधानसभा में भी लाना चाहती थी, लेकिन इसे लाया नहीं गया।
हरियाणा में 2020 में तब की मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने प्राइवेट नौकरियों में स्थानीयों को 75 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए कानून पास किया था। हाईकोर्ट ने पिछले साल नवंबर में इस कानून को रद्द कर दिया। झारखंड में दिसंबर 2023 में हेमंत सोरेन की सरकार ने सरकारी नौकरियों की ग्रुप तीन और चार में स्थानीयों को 100 प्रतिशत आरक्षण देने के मकसद से बिल पास किया था। ये बिल विधानसभा में पास हो गया था, लेकिन गवर्नर ने इसे लौटा दिया था। आज के हालात का निष्कर्ष ये है कि प्रत्येक दल आरक्षण की सीढ़ी से सत्ता में पहुंचने के प्रयास में लगा है। उसे उससे वास्ता नही कि आरक्षण की जद में आने वाली प्रतिभाएं इसे लेकर क्या सोचती हैं? 2012 में केंद्र सरकार प्रमोशन में आरक्षण का बिल ला चुकी है। संसद में बिल रखे जाने के दौरान एक सांसद द्वारा मंत्री से छीन कर बिल की प्रति फाड़ दिए जाने के कारण ये अटक गया, नहीं तो प्रमोशन में भी आरक्षण लागू हो चुका होता।
अब क्रीमीलेयर तै करने के बारे में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के आंदेश को वे ही ठेंगा दिखाने को तैयार हैं, जो अब तक इससे लाभ लेते रहे हैं। आरक्षण का लाभ उठा चुके उच्च स्थिति में पहुंचने वाले ही विकास की धारा से वंचित अपनी जाति वालों के लिए आरक्षण का लाभ छोड़ने को तैयार नहीं है। आज हालत यह है कि सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ आदेश करे या कोई अन्य मांग हो, आरक्षण को कम करने को कोई राजनैतिक दल छोड़ने को तैयार नहीं। कोई इसके खत्म करने की बात नहीं कर रहा। सब बढ़ाने की बात कर रहे हैं।आरक्षण के दायरे से बाहर की जाति और युवा सब देख रहे हैं। अभी हाल में यूपीएससी में लेटरल एंट्री को लेकर हुए बवाल ने बाद सरकार ने 45 पदों पर लेटरल एंट्री का प्रस्ताव वापस लेना पड़ा। विपक्ष का कहना था कि सरकार आरक्षण खत्म करने की कोशिश कर रही है। विपक्ष आरोप लगा रहा है, सरकार अपनी छवि बचाने को बार-बार पीछे हटती जा रही है। ऐसे में आरक्षण से बाहर रह रही युवा पीढ़ी के भविष्य की किसी को चिंता नहीं। आरक्षण समर्थक कोई नेता और राजनैतिक दल ये नहीं सोच रहा कि ये आरक्षण से बाहर रहे युवा उनके बारे में क्या विचार और सोच बना रहे हैं?