नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। यह तिथि विशेष मानी जाती है क्योंकि इसी दिन से भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार माह की योगनिद्रा में चले जाते हैं। यह काल चातुर्मास कहलाता है, जो कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है, जिसे देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु की यह योगनिद्रा कोई सामान्य नींद नहीं, बल्कि एक दिव्य ऊर्जात्मक विश्राम है। इस काल में वे सृष्टि के संचालन से विराम लेते हैं, और यह कार्य भगवान शिव संभालते हैं। इसी कारण इन चार महीनों में विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन जैसे शुभ कर्म वर्जित माने जाते हैं। यह काल तपस्या, उपवास, संयम और भक्ति के लिए विशेष रूप से उपयुक्त होता है। इस योगनिद्रा के पीछे एक अत्यंत प्रेरणादायक कथा है, जो असुरराज बलि से जुड़ी है।
राक्षस कुल में जन्मे एक महान राजा थे
राजा बलि, प्रह्लाद के वंशज और राक्षस कुल में जन्मे एक महान राजा थे। उन्होंने कठोर तप और महादान के बल पर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। उनकी शक्ति और धार्मिकता से देवता भी भयभीत हो उठे। इंद्रलोक छिन गया और देवता असहाय हो गए। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास सहायता हेतु पहुंचे।
भगवान विष्णु ने धारण किया वामन अवतार
देवताओं की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया। एक तेजस्वी ब्राह्मण बालक के रूप में। वे राजा बलि के यज्ञ में पहुंचे और विनम्रता से तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा बलि ने बिना संकोच के दान देने का वचन दिया। तभी वामन ने विराट रूप धारण कर लिया और पहले पग में पृथ्वी, दूसरे पग में आकाश को नाप लिया।
तीसरे पग के लिए कोई स्थान न बचा
अब तीसरे पग के लिए कोई स्थान न बचा। राजा बलि ने अपनी भक्ति का परिचय देते हुए अपना सिर अर्पित कर दिया और कहा, “भगवन, तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजिए।” इस त्याग और समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि वे पाताल लोक के राजा बनेंगे और भगवान स्वयं उनके द्वारपाल के रूप में पाताल में निवास करेंगे।
योगनिद्रा की शुरुआत
इसी दिन से भगवान विष्णु हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल एकादशी को पाताल लोक में राजा बलि के पास योगनिद्रा में लीन हो जाते हैं। यह योगनिद्रा केवल विश्राम नहीं, बल्कि भक्ति से बंधे ईश्वर की लीला और वचनपालन का प्रतीक है।
देवउठनी एकादशी: पुनः जागरण और शुभ कार्यों की शुरुआत
चार महीने बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु जागते हैं। इस दिन को प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी कहते हैं। इसी दिन से विवाह आदि शुभ कार्य पुनः आरंभ किए जाते हैं। राजा बलि और भगवान विष्णु की यह कथा भक्त और भगवान के बीच अनूठे प्रेम, त्याग और विश्वास का अनुपम उदाहरण है।