नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। हिंदू धर्म में शंख का बहुत ही शुभ माना जाता है साथ ही इसे इसे सुख-समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। लेकिन भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग वर्जित हैं। बता दें कि, न तो महादेव को शंख जल चढ़ाया जाता है और न ही उनकी पूजा में शंख बजाया जाता है। इस मान्यता के पीछे एक पौराणिक कथा है, जो इस प्रकार है। तो चलिए जानते है इसके पीछे क्या कारण है।
शंखचूड़ की कथा
शिवपुराण के अनुसार दैत्यराज दंभ की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति की इच्छा से उसने भगवान विष्णु की घोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे वरदान मांगने को कहा। दंभ ने एक महापराक्रमी पुत्र की कामना की, जिसे विष्णु जी ने तथास्तु कहकर स्वीकार कर लिया। कालांतर में दंभ के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम शंखचूड़ रखा गया।
जब शंखचूड़ युवा हुआ तो उसने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए पुष्कर में घोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे वरदान मांगने को कहा। शंखचूड़ ने इच्छा व्यक्त की कि वह देवताओं के लिए अजेय बन जाए। ब्रह्माजी ने उसकी यह प्रार्थना स्वीकार करते हुए उसे श्री कृष्ण कवच प्रदान किया, जिसे धारण करने से वह तीनों लोकों में अजेय हो गया। ब्रह्माजी ने उसे धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की अनुमति भी दी। उनके आशीर्वाद से शंखचूड़ और तुलसी का विवाह संपन्न हुआ।
ब्रह्माजी के वरदान के कारण शंखचूड़ में अहंकार आ गया और उसने तीनों लोकों पर अधिकार स्थापित कर लिया। उसके अत्याचारों से त्रस्त होकर देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की गुहार लगाई। लेकिन स्वयं विष्णुजी ने उसे वरदान दिया था, इसलिए उन्होंने भगवान शिव से इस संकट को दूर करने की प्रार्थना की। शिवजी ने देवताओं की रक्षा के लिए युद्ध का नेतृत्व किया, लेकिन श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रता धर्म के कारण वे भी शंखचूड़ को पराजित नहीं कर पा रहे थे।
शंख की उत्पत्ति
स्थिति को नियंत्रित करने के लिए विष्णुजी ने एक ब्राह्मण का रूप धारण कर शंखचूड़ से छलपूर्वक उसका श्रीकृष्ण कवच दान में ले लिया। इसके बाद उन्होंने स्वयं शंखचूड़ का रूप धारण कर उसकी पत्नी तुलसी के पतिव्रत धर्म को भंग कर दिया। श्रीकृष्ण कवच के नष्ट होने और तुलसी के पतिव्रत धर्म टूटने के बाद, भगवान शिव ने अपने विजय नामक त्रिशूल से शंखचूड़ का वध कर दिया। उसके वध के बाद, उसकी हड्डियों से शंख की उत्पत्ति हुई। यही कारण है कि शंख को पवित्र और शुभ माना जाता है, लेकिन भगवान शिव को शंख से जल अर्पित करना वर्जित है।