इस बार महाशिवरात्री मंगलवार एक मार्च को मनाई जाएगी। महाशिवरात्रि से जुड़ी पहली मान्यता ये है कि इस दिन भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे और ब्रह्मा और विष्णु की परीक्षा ली थी और दूसरी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के साथ देवी पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए व्रत किया जाता है और पूजा भी। प्रमुख शिव मंदिरों में इस दिन भक्तों की भीड़ उमड़ती है। और भी कई मान्यताएं और परंपराएं इस पर्व के साथ जुड़ी हैं।
महाशिवरात्रि व्रत की कथा इस प्रकार है
किसी समय वाराणसी के जंगल में एक भील रहता था। उसका नाम गुरुद्रुह था। वह जंगली जानवरों का शिकार कर अपना परिवार पालता था। एक बार शिवरात्रि पर वह शिकार करने वन में गया। उस दिन उसे दिनभर कोई शिकार नहीं मिला और रात भी हो गई। तभी उसे वन में एक झील दिखाई दी। उसने सोचा मैं यहीं पेड़ पर चढ़कर शिकार की राह देखता हूं। कोई न कोई प्राणी यहां पानी पीने आएगा। यह सोचकर वह पानी का बर्तन भरकर बिल्ववृक्ष पर चढ़ गया। उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था।
थोड़ी देर बाद वहां एक हिरनी आई। गुरुद्रुह ने जैसे ही हिरनी को मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे। इस प्रकार रात के प्रथम प्रहर में अंजाने में ही उसके द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई। तभी हिरनी ने उसे देख लिया और उससे पूछा कि तुम क्या चाहते हो। वह बोला कि तुम्हें मारकर मैं अपने परिवार का पालन करूंगा। यह सुनकर हिरनी बोली कि मेरे बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे। मैं उन्हें अपनी बहन को सौंपकर लौट आऊंगी। हिरनी के ऐसा कहने पर शिकारी ने उसे छोड़ दिया।
थोड़ी देर बाद उस हिरनी की बहन उसे खोजते हुए झील के पास आ गई। शिकारी ने उसे देखकर पुन: अपने धनुष पर तीर चढ़ाया। इस बार भी रात के दूसरे प्रहर में बिल्ववृक्ष के पत्ते व जल शिवलिंग पर गिरे और शिवलिंग की पूजा हो गई। उस हिरनी ने भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर रखकर आने को कहा। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। थोड़ी देर बाद वहां एक हिरन अपनी हिरनी को खोज में आया। इस बार भी वही सब हुआ और तीसरे प्रहर में भी शिवलिंग की पूजा हो गई। वह हिरन भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर छोड़कर आने की बात कहकर चला गया। जब वह तीनों हिरनी व हिरन मिले तो प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण तीनों शिकारी के पास आ गए। सबको एक साथ देखकर शिकारी बड़ा खुश हुआ और उसने फिर से अपने धनुष पर बाण चढ़ाया, जिससे चौथे प्रहर में पुन: शिवलिंग की पूजा हो गई।
इस प्रकार गुरुद्रुह दिनभर भूखा-प्यासा रहकर रात भर जागता रहा और चारों प्रहर अंजाने में ही उससे शिव की पूजा हो गई, जिससे शिवरात्रि का व्रत संपन्न हो गया। इस व्रत के प्रभाव से उसके पाप तत्काल ही भस्म हो गए। पुण्य उदय होते ही उसने हिरनों को मारने का विचार त्याग दिया। तभी शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने गुरुद्रुह को वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे। तुम्हें मोक्ष भी प्राप्त होगा। इस प्रकार अंजाने में किए गए शिवरात्रि व्रत से भगवान शंकर ने शिकारी को मोक्ष प्रदान कर दिया।
महाशिवरात्रि पर इन बातों का रखें ध्यान
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भोलेनाथ को कुछ चीजें भूलकर भी अर्पित नहीं करनी चाहिए. इससे आपको पूजा का फल मिलने की बजाय नुकसान उठाना पड़ सकता है। जानें इन चीजों के बारे में।
शंख
शास्त्रों में उल्लेख है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा में शंख भूलकर भी शामिल न करें। क्योंकि शंखचूर नामक असुर का वध भगवान शिव ने किया था। इसलिए उनकी पूजा में इसे शामिल करने की मनाही होती है।
कुमकुम या रोली
इसके साख ही भगवान शिव को कुमकुम और रोली भूलकर भी न लगाएं।
तुलसी का पत्ता
मान्यता है कि भोलेनाथ को तुलसी का पत्ता भी अर्पित नहीं करना चाहिए। पौराणिक कथा के अनुसार जलंधर की पत्नी वृंदा तुलसी का पौधा बन गई थी। और भगवान शिव ने जलंधर का वध किया था। और इसी कारण वृंदा ने शिव पूजा में तुलसी के पत्ते इस्तेमाल न करने को कहा था।
नारियल पानी
नारियल पानी से भगवान शिव का अभिषेक भूलकर भी न करें।
फूल
भगवान शिव के भक्तों को पूजा के दौरान केतकी और केवड़े के फूल का इस्तेमाल करने की मनाही होती है। साथ ही, कनेर और कमल के फूल के अलावा लाल रंग के फूल भी प्रिय नहीं है।
हल्दी
इस बात का भी ध्यान रखें कि भगवान शिव को भूलकर भी हल्दी अर्पित न करें।