Wednesday, June 18, 2025
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क्यों जरूरी है मैरिज काउंसलिंग

Ravivani 34


उषा जैनी ’शीरीं’ |
विवाह केवल दो लोगों का जीवन भर के लिए बंधन ही नहीं, बल्कि दो परिवारों का एक अटूट रिश्ते में बंधन भी है। पहले संयुक्त परिवार में लड़कियों को लोक व्यवहार, दुनियांदारी, तहजीब व तमीज की ट्रेनिंग स्वत: ही प्राप्त हो जाती थी। वे अपनी मां, ताई, चाची को दादी की सेवा करते देखती थीं। दादाजी की इज्जत, उनकी आज्ञा का पालन करते देखती थीं। उन्हें रिश्तों की अहमियत किसी को समझानी बतलानी नहीं पड़ती थी, इसलिए ससुराल जाकर वे आसानी से एडजस्ट कर लेती थीं।  इसी तरह कितनी भी बेमेल जोड़ी क्यों न हों, पहले शादियां बहुत कम टूटती थीं। समाज व परिवार के दबाव के कारण लड़कियां इस पवित्र बंधन को तोड़ पाने की हिम्मत जुटा नहीं पाती थीं।
पर आज ऐसा नहीं है। एकल परिवार के कारण एक तो रिश्तों के मामले में लड़का लड़की दोनों ही निपट अनाड़ी रह जाते हैं। दूसरा उच्च शिक्षा और पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित वे स्वयं को ही सब कुछ मानने की भूल कर बैठते हैं। अपने से हटकर भी कोई दुनिया है रिश्ते हैं, उनकी कितनी अहमियत है, इस विषय में लड़कियों को जरा भी ज्ञान नहीं होता। कई बार उच्च शिक्षा और नौकरी के गुरूर में वे पति को अपने आगे कुछ न समझ कदम-कदम पर उसके अहम को ठेस पहुंचाती हैं। ऊपर से आज की फिजां में तैरती तमाम भड़काऊ बातें रही सही कमी पूरी कर देती हैं।
काउंसलिंग पहले भी होती थी हालांकि, छोटे पैमाने पर ही सही। तब लड़कियां बगैर तर्क किए जैसा घर की बड़ी औरतें समझातीं, फॉलो कर लेती थीं।
मैरिज काउंसलिंग क्या है?
यहां यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि मैरिज काउंसलिंग के नाम पर केवल व्यवसायिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखने वाली दुकानें भी बहुत खुल गई हैं। अगर कार्यकर्ता मनोवैज्ञानिक, टेंÑड, अनुभवी सोशल वर्कर हैं तो उनसे उम्मीद की जा सकती है। यहां केवल किताबी बातों से काम न चलेगा। फिर भी जैसा होता है मैरिज काउंसलर भावी पति-पत्नी को शादी के बाद की हकीकत से रूबरू करा के शादी के बाद आने वाली आम समस्याओं के प्रति सचेत कर उनसे निपटने के तरीके बताते हैं। खाली युगलों को समझाने  से ही बात नहीं बन सकती, क्योंकि असली प्रॉब्लम तो ससुरालिए हैं, इसलिए मैरिज काउंसलर डॉक्टर मीरा माथुर के अनुसार काउंसलिंग उनके लिए भी उतनी ही अहम मानी जानी चाहिए।
काउंसलिंग के क्या लाभ भी हैं?
वैवाहिक जीवन का आधार स्तंभ सेक्स है लेकिन चूंकि सेक्स हमारे यहां एक वर्जित विषय रहा है अत: युवा इसके बारे में जानकारी हासिल करने से झिझकते हैं। आधी अधूरी जानकारी से ही वे वैवाहिक जीवन में प्रवेश करते हैं। नतीजा कई बार किसी छोटी मोटी साइकोलोजिकल प्रॉब्लम को वे शारीरिक दोष मान बैठते हैं। कई बार इसी के चलते वे नीम हकीमों, के चक्करों में फंस कर अपना समय और पैसा बर्बाद कर लेते हैं। मैरिज काउंसलर युवाओं को पूरी सेक्स एजुकेशन देकर वैवाहिक जीवन को सफल बनाने के गुर बताते हैं। साथ ही गर्भनिरोध के लेटेस्ट वैज्ञानिक उपाय बताते हैं। वे ये सब बातें भावी दंपति की आयु तथा अन्य जरूरी बातों को ध्यान में रख कर करते हैं।
वे लड़कों को भी उनकी जिम्मेदारियां समझाते हैं। मैरिज काउंसलर मनीष मेहता बताते हैं कि काउंसलर भी एक मनोविश्लेषक की भांति उन्हें ट्रीट करता है। उससे बातें करते हुए उनकी जो सोच सामने आती है उससे पता लग सकता है कि विवाहोपरांत इनके बीच कांपेटिबिलिटी संभव है, या नहीं। इससे शादी के लिए फैसला ले पाना सरल हो जाता है। दरअसल शादी के बाद एक नया जीवन शुरू होता है। उसमें हर कदम पर जिम्मेदारियां ही जिम्मेदारियां हैं। हर भावी दंपति सुखी एवं सफल वैवाहिक जीवन की काामना करता है।


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