‘भाभी, क्या बात है आजकल आप मंदिर नहीं आ रही हैं। आज बहुत दिनों के बाद दिखाई दे रही हैं।’
‘बस, वैसे ही, कहीं आने-जाने का मन नहीं करता।’
‘नहीं कुछ तो बात है वरना आप तो रोजाना सुबह मंदिर में दर्शन के लिए आ जाती थीं और जब भजन का कार्यक्रम होता था तो सबसे पहले उपस्थित हो जाती थीं!’
‘अब क्या बताऊं जीजी, जब से ये गए हैं, लोगों की निगाह ही बदल गई है। मंदिर में पूजा-पाठ, हवन और भजन- कीर्तन के समय जब भी आती हूं तो पास-पड़ोसी तक मुंह फेर लेते हैं। लगता है कि उन्हें मेरा चेहरा देखकर कुछ अशुभ का संकेत मिलने लगता है! सोचती हूं कि क्या विधवा हो जाना पाप है!’
‘लेकिन भाभी ऐसा क्यों है! क्या विधवा महिला का शुभ कामों में आने या उसे देख लेने से ही अशुभ हो जाता है! क्या वही लोगों के लिए अशुभ होती है? पंवार अंकल की पत्नी तो दस बरस पहले ही गुजर गई थीं। फिर शर्मा जी भी तो अभी कोरोनाकाल में ही विधुर हुए हैं। वे भी मंदिर में नियमित आते हैं। उनके आने पर तो कोई मुंह नहीं फेरता!’