
बिहार में वोटर लिस्ट विशेष गहन पुनरीक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को जारी रखने की अनुमति दे दी है, लेकिन साथ ही उसने चुनाव आयोग से एक बहुत ही प्रासंगिक प्रश्न पूछा है: अभी क्यों? अदालत ने यह बिल्कुल सही बात कही है कि विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले इस तरह की कवायद से लोगों के मन में संदेह पैदा होना स्वाभाविक है। यह चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह बताए कि यह प्रक्रिया पहले क्यों नहीं की गई, जिससे उसे राज्य के लगभग 8 करोड़ मतदाताओं के दस्तावेजों की जांच करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता। यदि कोई मतदाता पीछे न छूट जाए तो इस कार्य के लिए दस्तावेजीकरण तार्किक और त्रुटिरहित होना चाहिए।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ताओं से भी सवाल किए। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील गोपाल शंकरनारायणन से पीठ ने कहा कि आप खुद बताइए कि चुनाव आयोग जो कर रहा है उसमें गलत क्या है। इस पर वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि वोटर लिस्ट रिविजन का प्रावधान कानून में मौजूद है और यह प्रक्रिया संक्षिप्त रूप में या फिर पूरी लिस्ट को नए सिरे से तैयार करके भी हो सकती है। उन्होंने चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए कहा कि अब इन्होंने एक नया शब्द गढ़ लिया है ह्णस्पेशल इंटेंसिव रिवीजनह्ण। आयोग यह कह रहा है कि 2003 में भी ऐसा किया गया था, लेकिन तब मतदाताओं की संख्या काफी कम थी। अब बिहार में 7 करोड़ से ज्यादा वोटर हैं प्रक्रिया को तेजी से अंजाम दिया जा रहा है।
सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग से तीन मुद्दों पर जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अदालत के समक्ष जो मुद्दा है वह लोकतंत्र की जड़ और मतदान के अधिकार से जुड़ा है। याचिकाकर्ता न केवल चुनाव आयोग के मतदान कराने के अधिकार को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि इसकी प्रक्रिया और समय को भी चुनौती दे रहे हैं। इन तीन मुद्दों पर जवाब देने की जरूरत है। सुनवाई के दौरान जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि आप इस प्रक्रिया को नवंबर में होने वाले चुनाव से क्यों जोड़ रहे हैं? यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो पूरे देश के चुनाव से स्वतंत्र हो सकती है। इस पर चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि प्रक्रिया का पालन किया जाएगा। उन्होंने आश्वासन दिया कि सुनवाई का अवसर दिए बिना किसी को भी मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा।
चुनाव आयोग के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसका मतदाताओं से सीधा संबंध है और अगर मतदाता ही नहीं होंगे तो हमारा अस्तित्व ही नहीं है। आयोग किसी को भी मतदाता सूची से बाहर करने का न तो इरादा रखता है और न ही कर सकता है, जब तक कि आयोग को कानून के प्रावधानों द्वारा ऐसा करने के लिए बाध्य न किया जाए। हम धर्म, जाति आदि के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया है कि इस प्रक्रिया में आधार कार्ड पर विचार क्यों नहीं किया जा रहा है। उसका मानना है कि चुनाव अधिकारियों को आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड पर विचार करना चाहिए। मतदाताओं की सुविधा के लिए ये जरूरी दस्तावेज हैं। यह सच है कि आधार कार्ड को कभी भी नागरिकता का प्रमाण नहीं माना गया। हालांकि, पिछले कई सालों में अवैध प्रवासियों द्वारा इस दस्तावेज के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ खास कदम नहीं उठाए गए हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय को इस पर स्पष्टीकरण देना चाहिए। बिहार में मतदाता सूची का व्यापक पुनरीक्षण कार्य पूरा हो जाएगा, लेकिन चुनाव आयोग को इस मुद्दे से सीख लेकर अन्य राज्यों में भी इसे और अधिक जनहितैषी और निष्पक्ष बनाने के साथ-साथ कमियों को भी दूर करना होगा।
फिलहाल पुनरीक्षण में 15 दिन का समय शेष है। विपक्ष ने तेलंगाना में 22 फीसदी मतदाताओं और कर्नाटक में 18 फीसदी मतदाताओं के नाम काटने पर खूब हंगामा मचाया था। दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकारें किस तरह बन गईं? जम्मू-कश्मीर में भी पुनरीक्षण के बाद चुनाव हुए थे। वहां भी विपक्ष का एनसी-कांग्रेस गठबंधन जीता और अब उनकी सरकार है। 2026 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल आदि राज्यों में भी चुनाव से पहले ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ जरूर किया जाएगा। यह घोषणा चुनाव आयोग कर चुका है। इससे पहले 2003 में पुनरीक्षण का काम किया गया था। बहरहाल ‘आधार कार्ड’ को इस पूरी प्रक्रिया के दौरान निराधार क्यों किया गया, यह सवाल बराबर उठना चाहिए। व्यक्ति की दैहिक पहचान का सबसे मौलिक दस्तावेज यही है। हम इस मुद्दे को उठा चुके हैं।