- नगर निगम के स्वास्थ्य अनुभाग में चल रहा है नियुक्ति में बड़ा खेल
- परिजन हो रहे परेशान, न तो मिल रहा फंड, न ही मिल रही नौकरी
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: बात जब नौकरी की हो और वह भी बैठे बिठाये, बिना हल-बैल चलाये तो अच्छे से अच्छों का ईमान डगमगा जाता है। सोने पे सुहागा यह कि वह नौकरी सरकारी हो तो फिर क्या कहने। कुछ ऐसा ही तामझाम मिलने की जब सवाल आया तो फर्जी बेगम न सिर्फ सामने आ गई। बल्कि अपनी पूरी सेटिंग से न सिर्फ अपने फर्जी मरहूम शौहर की इकलौती वारिस बन गर्इं। साथ ही अपने को असली वारिस दर्शाते हुए नौकरी भी हासिल कर ली।
मजेदार बात तो यह है कि अपने मरहूम बेटे के सदमे से जब तक उबरकर घर वाले इस पूरी साजिश का पर्दाफाश कर पाते। उससे पहले ही इस फर्जी बेगम ने फर्जी कागजातों के आधार पर फंड भी निकलवा लिया और ठाठ से परमानेंट पोस्ट की नौकरी भी हथिया ली। आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि जब इतना बड़ा फर्जीवाड़ा हो रहा हो, तो बिना मिलीभगत के कुछ भी हो पाना संभव नहीं है। अब असली वारिस तो दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। और फर्जी बेगम ठाठ से नौकरी कर रही है।
स्टेट सिंबल बन गयी सरकारी नौकरी
सरकारी नौकरी की मांग तेजी से बढ़ते हुएं देखकर नि:संदेह हर कोई व्यक्ति उस पद पर बैठना चाहता है तो यहां संबंधित विभाग की सतर्कता और बढ़ जाती है। जिसके तहत पुराने धोखेबाज व्यक्ति को निकालकर नये पारदर्शिता से बिना किसी राजनीतिक दबाव में आकर काम करना चाहिए। साथ ही साथ यदि किसी व्यक्ति को ऐसी कोई जानकारी होती है भले ही जितना भी समय हो गया है उस धोखेबाजी को हुए और नौकरी पर रहते हुए दंडनीय अपराध के अंतर्गत दंड निश्चित है। जहां सिर्फ वर्तमान में नौकरी ही नहीं जाएगी
बल्कि इस बात की सत्यता साबित होने पर जीवनभर की मिलने वाली सहूलियतें भी बंद हो जाएगी। लेकिन जब बात अपने नगर निगम की आती है तो यह सारे कायदे कानून सिर्फ किताबी ज्ञान बनकर रह जाते हैं। यहां के जिम्मेदार अधिकारी आंखें मूंदकर इन फर्जीवाड़ों को पास कर देते हैं। उन्हें बस इस बात से सरोकार होता है कि मोटा माल मिल रहा है। फिर चाहे कोई परेशान हो या चक्कर काटता फिरे।
नौकरी करते हुए हो गया बीमार
नगर निगम में स्थाई सफाई कर्मचारी के पद पर मुजफ्फरनगर निवासी शंकर का पुत्र रघुवीर लगा था। वह नियमित कर्मचारी था। उसकी ड्यूटी नगर निगम के स्वास्थ्य अनुभाग के दिल्ली रोड वाहन डिपो के अन्तर्गत आने वाले माधवपुरम क्षेत्र में लगाई गई थी। पन्द्रह साल की अनवरत सेवा करते हुए रघुवीर बीमार हुआ तो वह कई बार ड्यूटी भी नहीं पहुंच पाता था। एक बार वह अपनी ड्यूटी मुख्यालय जोन में करवाने के लिए नगर स्वास्थ्य अधिकारी से मिला तो यहां उसकी बीमारी देखकर यहां के बाबुओं ने खेल की रूपरेखा बना ली।
ड्यूटी पर ही हो गया देहांत
रघुवीर का गत वर्ष 2023 के प्रारंभ में ड्यूटी करते हुए देहांत हो गया। फिर सूचना पाकर परिजन मुजफ्फरनगर से आये तथा अपने बेटे के पार्थिव शरीर को मुजफ्फरनगर ही ले गये तथा वहीं उसका क्रियाकर्म किया गया। परिजन अपने जवान बेटे की मौत के सदमे में यह भूल गये कि उसकी आॅन ड्यूटी डेथ हुई है तो उसकी जगह मृतक आश्रित में रघुवीर के छोटे भाई को नौकरी मिल सकती है।
छह माह की कम-से-कम सजा होगी निर्धारित
रघुवीर के परिजन तो कई महीने सदमे में ही रहे, लेकिन नगर निगम के स्वास्थ्य अनुभाग में शातिरों ने साजिश को अंजाम देना शुरू कर दिया। उन्होंने फर्जी कागजातों के आधार पर रघुवीर की एक बेगम का भी जुगाड़ कर लिया। साथ ही उसको खुद ही असली बेगम साबित करने का पूरा इंतजाम कर लिया। यहां यह बताना भी आवश्यक है जहां ऐसी परिस्थितियों में एक कड़ा कानून बनाया गया है। जहां निश्चित तौर पर धोखेबाजी से जाति के नाम पर बनाएं गए इस प्रमाणपत्र के अभ्यर्थी को तीन साल की या फिर 6 महीने की कम-से-कम सजा निर्धारित होगी। साथ ही साथ निश्चित तौर पर नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।
जालसाजों ने पूरा फंड भी खुद ही डकारा
नगर निगम के स्वास्थ्य अनुभाग के घाघ मठाधीशों ने रघुवीर का फंड भी खुद ही डकार लिया तथा जिसको रघुवीर की बेगम साबित किया है। उसको परमानेंट नौकरी दे दी गई है। भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत यदि कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार की धोखेबाजी करते हुए पकड़ा जाता है जिसमें किसी भी प्रकार के नकली दस्तावेज तैयार करके लगाएं जाते हैं
और सरकारी नौकरी प्राप्त की जाती है तो यह सब अपराध कानून की सेक्शन 466, 468, 471 तथा के अंतर्गत आते है। साथ ही साथ सेक्शन 420 भारतीय दंड संहिता का केस भी चलेगा। इसके साथ ही साथ अगर आप जाति प्रमाणपत्र धोखेबाजी से बनवाते है तो उस प्रमाणपत्र को जारी करनेवाले आधिकारिक आफिसर की भी नौकरी जाएगी।
कैसे पास किया मैरिज सर्टिफिकेट?
किसी भी सरकारी विभाग में नौकरी से पहले कागजातों की जांच होती है। डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के बगैर कॉलेजों में दाखिले तक नहीं होते। ऐसे में सवाल ये है किसी भी जांच पैनल की सहमति लिये बिना इस महिला के शादी से संबंधित यह मैरिज सर्टिफिकेट पास होना अपने आप में हैरान करने वाला है। यदि जांच हों तो फर्जी मैरिज कराने वाले दूसरे विभागों के शातिरों के चेहरों के नकाब भी उतर सकते हैं और उनका खेल भी सामने आ सकता है।
परिजन परेशान होकर लगा रहे चक्कर
रघुवीर के असली परिजन इसी संबंध में मुजफ्फरनगर से दर्जनों बार मेरठ नगर निगम आ चुके हैं। वह पहले तो स्वास्थ्य अनुभाग के अनुचर, लिपिक और बड़े बाबुओं से मिले। इसके बाद नगर स्वास्थ्य अधिकारी डा.हरपाल सिंह से कई बार मिल चुके हैं। लेकिन उनको जांच का आश्वासन देकर टरकाया जा रहा है। साफ जाहिर है कि मिलीभगत का खेल निचले स्तर से लेकर कितने आला स्तर तक चल रहा है।
पूर्व पार्षद ने संभाल लिया मोर्चा
मामले में नगर निगम के रालोद के पूर्व पार्षद अब्दुल गफ्फार ने मोर्चा संभाल लिया है। उनका कहना है कि यहां अधिकांशत: प्रकरण में जालसाजों ने पूरा फर्जीवाड़ा कर रखा है। यह बहुत ही गंभीर विषय है। जब वास्तविक परिजन जीवित हैं, फिर फर्जी को नौकरी पर कैसे रख लिया गया है। हम इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच के साथ तमाम दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों को दंडित करायेंगे।