Friday, June 6, 2025
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आप मुझे कामयाब एक्टर कह सकते हैं-मनोज बाजपेयी


अपूर्व सिंह कार्की के निर्देशन में बनी, मनोज बाजपेयी की कोर्टरूम ड्रामा फिल्म ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ जी 5 पर 23 मई को स्ट्रीम हो चुकी है। फिल्म की कहानी एक ऐसे ही बाबा की है, जिसे लोग भगवान मानते हैं और उसने अपनी ही एक नाबालिग भक्त के साथ गलत किया। फिल्म उस नाबालिग लड़की को न्याय दिलाने वाले वकील पीसी सोलंकी पर केंद्रित है, इस वकील के किरदार को मनोज बाजपेयी ने निभाया है और उनकी परफोरमेंस बहुत जबरदस्त है।

इस किरदार के लिए, मनोज बाजपेयी ने इस जिस तरह राजस्थानी लहजा पकड़ा और हर एक्स्पेशन डिलीवर किया, वो कमाल का है। उन्होंने अपने टेलेंट से पीसी सोलंकी की इस कहानी को छोटे पर्दे पर जीवंत कर दिया। फिल्म के लिए मनोज को काफी प्रशंसा मिल रही है। मनोज बाजपेयी के बेहद शानदार अभिनय की बदौलत फिल्म ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ को हिंदी सिनेमा का अब तक का सबसे बेहतरीन कोर्ट ड्रामा कहा जा सकता है।

फिल्म को मिली कामयाबी के बाद इसे ओटीटी पर आॅन स्ट्रीम होने के चंद दिनों बाद ही थियेटर में रिलीज किया गया। ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ के पहले मनोज बाजपेयी ओटीटी फिल्म ‘गुलमोहर’ में नजर आए थे जिसके लिए भी उन्हें काफी प्रशंसा मिली थी। 23 अप्रैल 1965 को बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के बेतिया शहर के पास एक छोटे से गांव बेलवा में जन्मे बाजपेयी अब तक हिंदी सहित तेलुगु और तमिल फिल्मों में नजर आ चुके हैं।

मनोज को अब तक तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, और छह फिल्मफेयर अवॉर्ड सहित भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है। थिएटर से शुरू किए गए एक्टिंग के सफर में मनोज बाजपेयी को पहली बार ‘द्रोहकाल’ (1994) में एक मिनट की भूमिका निभाने का अवसर मिला।

उसके बाद शेखर कपूर की ‘बैंडिट क्वीन’ (1994) में डकैत मानसिंह के किरदार में उन्होंने फिल्म कैरियर की शुरुआत की। राम गोपाल वर्मा की क्राइम ड्रामा फिल्मट ‘सत्या’ (1998) में गैंगस्टर भीकू म्हात्रे के किरदार ने उन्हें इस इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया। इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर क्रीटिक्स अवार्ड मिला।

प्रकाश झा की फिल्मर ‘राजनीति’ (2010) में मनोज बाजपेयी ने एक लालची राजनेता की भूमिका निभाई। उसके बाद वह ‘गैंग्स आॅफ वासेपुर’ (2012) में सरदार खान की भूमिका में नजर आए। ‘चक्रव्यूह’ (2012) में एक नक्सली और ‘स्पेशल 26’ (2013) में एक सीबीआई आॅफीसर के किरदार ने उन्हें इस इंडस्ट्री के श्रेष्ठ अभिनेताओं में स्थापित कर दिया। वेब सिरीज ‘द फैमिली मैन’ (2021) के लिए मनोज बाजपेयी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर ओटीटी अवार्ड मिला। इसके वेब सिरीज के दो सीजन आ चुके हैं और व्यूवर्स को इसके अगले सीजन का इंतजार है। निश्चित ही मनोज बाजपेयी ने इस इंडस्ट्री में एक लंबा सफर तय किया है।

उनका कहना है कि ‘मैं अपनी फिल्में नहीं देखता क्योंकि मुझे पता है कि मैं अपने ही काम से निराश होने वाला हूं, मैं लगातार खुद को बेहतर बनाने के लिए खुद को बदल रहा हूं। मेरे विचार बदल रहे हैं, और मेरी व्याख्याएं बदल रही हैं। इसलिए मैं समय के साथ आगे बढ़ता रहा हूं। कामयाबी का अर्थ अलग अलग लोगों के लिए अलग अलग हो सकता है लेकिन मनोज के लिए इसका फलसफा बिलकुल ही अलग है। वह कहते हैं कि ‘कामयाबी क्या मतलब है, अपना काम चुनने की स्वतंत्रता’। और आज मैं अपना काम चुनने के लिए बिलकुल स्वतंत्र हूं। इसलिए आप मुझे कामयाब भी कह सकते हैं।


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