दिलीप कुमार पाठक
यूट्यूब ने अपने पैर पसार लिए हैं, खुद को पूरी तरह स्थापित कर चुका है, उसके पास लोगों का फीडबैक गूगल के जरिए आता है अत: वो लोगों के इंट्रेस्ट के साथ खुद को निरंतर बदलता भी रहता है। अब तो यूट्यूब दुनिया भर के कोने-कोने में उनकी संस्कृति के साथ खुद को फिट करने की कोशिश कर रहा है। क्यों कि उसकी नीतियां यूरोप के लिए अलग हैं तो साउथ एशिया के लिए अलग हैं तो गल्फ के लिए बिल्कुल ही अलग। इससे सिद्ध होता है कि यूट्यूब के पास उसने के लिए पर्याप्त आसमान है।
बीते हफ़्ते बीबीसी ने एक रिपोर्ट के जरिए उन सवालों के जवाब दे दिए जो पिछले कुछ सालों से खूब उठ रहे थे, क्या सोशल मीडिया मेन स्ट्रीम मीडिया से ज़्यादा कारगर हो गया है। क्या यूट्यूब टेलिविजन से ज़्यादा देखा जाता है? दर-असल सोशल मीडिया, सस्ता इन्टरनेट आने के के आने के बाद टेलिविजन चैनलों के लिए खतरे की घंटी बजी थी, आज वो खतरा टेलिविजन के अस्तित्व पर ही बड़ा मंडरा रहा है। यूट्यूब ने डिज्नी, पैरामाउंट, फॉक्स चैनल, नेटफ्लिक्स और अमेजन जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को भी पीछे छोड़ दिया है। दुनिया में यूट्यूब की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। यूके में 16 से 24 वर्ष के आयु वर्ग के 50 प्रतिशत लोग टेलीविजन पर कार्यक्रमों के बजाय यूट्यूब देखना अधिक पसंद करते हैं। “दुनियाभर में हर महीने लगभग तीन अरब लोग यूट्यूब देखते हैं। इनमें से ज्यादातर 25 से 35 वर्ष के बीच के लोग हैं। यानी उनकी उम्र टीवी के मुख्य दर्शकों से कम है। यह अब ऐप्स, विडियो गेम कंसोल और स्मार्ट टीवी पर उपलब्ध है।ह्व भारत में भी टीवी देखने वालों की संख्या में रिकॉर्ड स्तर पर गिरावट दर्ज की गई है।
सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आम लोगों को भी निरंतर अपडेट रहने की आदत ने लोगों को न्यूज चैनलों से भी दूर कर दिया है। टेलीविजन पर न्यूज चैनल देखते दर्शकों का अब यूट्यूब अब पसन्दीदा बन गया है। टेलिविजन दर्शकों के पास पहले रिमोट के अलावा ज़्यादा कुछ नहीं होता था, लेकिन अब तो दर्शकों के पास कन्टेन्ट चुनने की भी स्वतंत्रता है, और वे अपने प्रोग्राम के साथ अपने कमेंट अपनी प्रतिक्रियाओं के जरिए जुड़ भी सकते हैं। भारतीय मीडिया की गिरती हुई रैंकिंग कंटेट में एकरसता भी आम दर्शकों को यूट्यूब की ओर खींचकर ले जा रही है। यूट्यूब पर बढ़ते उपभोक्ताओं की संख्या भारत के टेलीविजन एवं चैनलों के लिए डराने वाली है। दरअसल यूट्यूब की पहुंच लोगों तक रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है।
टेलीविजन एवं यूट्यूब में एक खास अन्तर यह भी है कि कुछ सेवाओं को छोड़ कर यूट्यूब की अधिकांश सेवाएं मुफ़्त हैं। टेलिविजन अपने उपभोक्ताओं से अपने प्रॉडक्ट के बदले कीमत वसूलता है, जबकि यूट्यूब अपने उपभोक्ताओं को देखने के लिए विविध प्रकार का कंटेट तो मुहैया कराता ही है साथ ही कैरियर बनाने, अपनी रचनात्मकता के साथ पैसे कमाने के लिए निशुल्क अपना मंच भी देता है। साथ ही उस मंच पर आपके कंटेट की सुरक्षा एवं आपके अधिकारों की रक्षा करने का भी दावा करता है। यूट्यूब ने साबित कर दिया कि कोई भी व्यक्ति स्टार बन सकता है। गर आपके पास रचनात्मकता है और आपको अभी तक कहीं मंच नहीं मिला तो यूट्यूब आपको मंच प्रदान करेगा। यूट्यूब के लिए एक प्लस पॉइंट यह भी है कि यूट्यूब को कानून के उन दायरों से बाहर रखा गया है जिसके तहत कई देशों के टीवी प्रसारकों को काम करना पड़ता है। यानी टीवी नेटवर्कों में जिस प्रकार के कड़े संपादकीय नियम लागू होते हैं, वैसे यूट्यूब के कंटेंट या सामग्री पर लागू नहीं होते। क्रिस स्टोकेल वाकर का कहना है कि यूट्यूब पर हर मिनट पांच सौ घंटे का कंटेंट अपलोड होता है। इसकी निगरानी करने में कई मुश्किलें आती हैं। यही कारण है कि यूट्यूब को कुछ रियायतें दी गई हैं।
पहले टीवी उद्योग को नहीं लगता था कि उन्हें यूट्यूब से कभी खतरा पैदा हो सकता है, लेकिन अब वह हॉलीवुड से लेकर नेटफ्लिक्स और डिज्नी जैसे कई चैनलों का प्रबल प्रतिस्पर्धी बन गया है। ‘यूट्यूब को एक सबसे बड़ा फायदा यह है कि वह अपने यूजरों द्वारा बनाया कंटेंट देता है जिन्हें यह नहीं सोचना पड़ता कि क्या ट्रैंड करेगा या लोकप्रिय होगा और क्या नहीं।’
जबकि टीवी कंपनियों और ओटीटी प्लैटफार्मों को इस पर बहुत सोचना पड़ता है क्योंकि उन्हें अपने कंटेंट में काफी पैसा भी लगाना होता है। इसमें समय लगता है और कई बार वह कंटेंट लोगों को पसंद नहीं आता। मगर यूट्यूब के सामने यह मसला बिल्कुल नहीं है। यानी यूट्यूब कोई जोखिम नहीं उठाता। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि यूट्यूब भली भांति जानता है कि हम क्या देख रहे हैं। मगर यूट्यूब की एक कमी यह है कि वो दूसरे चैनलों की तरह महंगे ड्रामे नहीं बना रहा है और ना ही बड़ी खेल प्रतियोगिताओं का प्रसारण करता है। वहीं टीवी और स्ट्रीमिंग प्लैटफार्म यूट्यूब की पहुंच का फायदा भी उठाना चाहते हैं। यहीं पर यूट्यूब थोड़ा हल्का सिद्ध होता है, और यह भी सच है अगर यूट्यूब ने खेल प्रसारण आदि पर हाथ आजमाया तो शायद टीवी के लिए वो बुरे सपने से कम नहीं होगा। गूगल का प्लेटफॉर्म यूट्यूब अपने सर्वोत्तम की ओर बढ़ रहा है।
यूट्यूब ने अपने पैर पसार लिए हैं खुद को पूरी तरह स्थापित कर चुका है, उसके पास लोगों का फीडबैक गूगल के जरिए आता है अत: वो लोगों के इंट्रेस्ट के साथ खुद को निरंतर बदलता भी रहता है। अब तो यूट्यूब दुनिया भर के कोने – कोने में उनकी संस्कृति के साथ खुद को फिट करने की कोशिश कर रहा है। क्यों कि उसकी नीतियाँ यूरोप के लिए अलग हैं तो साउथ एशिया के लिए अलग हैं तो गल्फ के लिए बिल्कुल ही अलग। इससे सिद्ध होता है कि यूट्यूब के पास उसने के लिए पर्याप्त आसमान है। लगता है यूट्यूब इस बात से भी सतर्क है कि जैसे उसने टेलीविजन के लिए एक चुनौती पेश की थी और आज उसके अस्तित्व पर ही खतरा के रूप में विशाल रूप ले चुका है उसी तरह यूट्यूब के लिए भी कोई नया प्लेटफॉर्म चुनौती बन सकता है, यही कारण है कि अभी पिछले कुछ सालों से टिक-टॉक पर शॉर्ट विडिओ क्रिएटर की बाढ़ आ गई थी, चूंकि अब हर कोई बड़ा कंटेट लेकर यूट्यूब पर नहीं आ सकता, सभी के पास लम्बा कंटेट हो जरूरी तो नहीं। अत: समय की नजाकत को देखते हुए यूट्यूब ने अपने प्लेटफॉर्म पर शॉर्ट वीडियोज के लिए भी जगह दी अत: अब तो यूट्यूब पर शॉर्ट वीडियोज बनाने वालों की अच्छी खासी संख्या हो गई है। टिक – टॉक की चुनौती से निबटने के बाद अभी कोई चुनौती दिख नहीं रही है। बीते सालो से भारत में कंटेट विविधता एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एकाधिकारवादी लोगों के बाद पत्रकारों की अच्छी खासी तादाद भी यूट्यूब पर सक्रिय हो गई है। बीते कुछ सालों से मेन स्ट्रीम मीडिया भी विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आने के बाद भी यूट्यूब पर सक्रिय पत्रकारों के लिए यूट्यूब एक आवाज बनकर उभरा है। यूट्यूब की लोगों तक व्यापक पहुंच, कंटेट विविधता, कंटेट की सुरक्षा का वायदा उसे लोगों के बीच लोकप्रिय बना रहा है। यही कारण है कि टेलीविजन अपना स्वर्णिम दौर देखने के बाद आज कठिन दौर से गुजर रहा है।