Friday, July 5, 2024
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21 जून अष्टम योग दिवस, मानवता के लिए योग

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SANJIV KUMARभारत की प्राचीनतम धरोहर योग को संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून 2014 को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता प्रदान की। इस वर्ष हम अष्टम योग दिवस मनाने जा रहे हैं। कोरोना संक्रमण काल के दो वर्ष उपरांत इसको बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा। इस बार योग दिवस की थीम ‘मानवता के लिए योग’ रखी गई है। पिछले 2 वर्षों में दुनिया तेजी से बदली है। पूर्व की भांति ही विश्व इस महामारी के काल में भी दो हिस्सों में बंटा दिखाई दिया।
पहिया (चक्र ) उस गोल आकृति को कहा जाता है, जो अपने मध्य में स्थित किसी धूरी पर टिका रहता है। चक्र जैसी आकृति का सबसे पहले कब प्रयोग हुआ? इसके ऊपर विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। जिसके अनुसार मानव ने चक्र जैसी आकृति का प्रयोग मिट्टी के बर्तन बनाने में सर्वप्रथम किया। यह भौतिक वस्तु मानव मन की उपज ही है। क्योंकि प्राकृतिक रूप से इस प्रकार की आकृति सामान्यत नहीं पाई जाती। बावजूद इसके संसार की कोई ऐसी मान्यता नहीं, जहां चक्र को प्रतीकों के रूप में स्थान ना मिला हो।

इस संसार की गति चक्रिय है। पृथ्वी भी अपनी धुरी के साथ ही सूर्य का चक्कर एक तय समय में पूरा करती है। जिसके कारण दिन और रात का चक्र पूर्ण होता है। समस्त संसार एक कालचक्र के अधीन है। जो सदैव गतिशील है। इस चक्रीय व्यवस्था को भारतीय मनीषियों ने बारीकी से परखा। इसलिए आयुर्वेद के जनक चरक ने घोषणा की यद पिंडे तद् ब्रह्मांडे अर्थात जो ब्रह्मांड में है वही पिंड में है। यह भौतिक शरीर पंचमहाभूतों आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी से मिलकर बना है। जीव की मृत्यु के बाद सभी महातत्व अपने-अपने तत्वों में जाकर मिल जाते हैं।

भारत के प्राचीनतम सांख्य दर्शन के अनुसार जीवन एक विकासात्मक प्रक्रिया है। सृष्टि अनेक अवस्थाओं से होकर गुजरने के बाद अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त हुई है। बावजूद इसके यह प्रक्रिया सतत चल रही है। उसी प्रकार मानव शरीर भी ब्रह्मांड की एक पूर्ण इकाई है। ब्रह्मांड की तरह ही भारतीय मनीषियों ने शरीर को भी सप्त चक्रीय अवस्था के अधीन माना। जिस प्रकार चक्र अपनी धुरी पर टिका रहता है, उसी प्रकार सप्त चक्र भी मेरुदंड पर टिके हुए हैं। विभिन्न अवधारणाओं में निर्विवाद रूप से इन्हें ऊर्जा (चेतना) केंद्र माना गया है। मानव संरचना के सबसे निचले चक्र मूलाधार से स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा चक्र से होती हुई उर्जा सहस्रार चक्र पर पहुंचती है, जहां ऊर्जा का चक्र पूर्ण होता है।

जिस प्रकार विद्युत परिपथ चक्र पूर्ण होने पर आवेश का प्रवाह होने लगता है, उसी प्रकार मूलाधार से सहस्रार चक्र का परिपथ पूर्ण होने पर मानव अपने को सही अर्थों में पहचान पाता है। आयुर्वेद भी व्यक्ति के रोगों का कारण उनके सप्त चक्र में ऊर्जा के गतिरोध को ही मानता है। सांख्य दर्शन के व्यवहारिक पक्ष योग ने हजारों वर्षों की यात्रा में असंख्यलोगों को उसी प्रकार गढ़ा है। जिस प्रकार आदिकाल से एक कुंभकार चाक (चक्र) पर मिट्टी के बर्तनों को घड़ता रहा है। यह संयोग है या मानव मन की परिकल्पना है कि उसने चक्र जैसी आकृति को सर्वप्रथम मिट्टी के बर्तन बनाने में प्रयोग किया। मानव के शरीर को भी शास्त्रों में मिट्टी माना गया है। योग भी कुंभकार की ही तरह मानव रूपी मिट्टी को गढ़ने का कार्य करता है।

भारत की प्राचीनतम धरोहर योग को संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून 2014 को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता प्रदान की। इस वर्ष हम अष्टम योग दिवस मनाने जा रहे हैं। कोरोना संक्रमण काल के 2 वर्ष उपरांत इसको बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा। इस बार योग दिवस की थीम ‘मानवता के लिए योग’ रखी गई है। पिछले 2 वर्षों में दुनिया तेजी से बदली है। पूर्व की भांति ही विश्व इस महामारी के काल में भी दो हिस्सों में बंटा दिखाई दिया। एक तरफ भारत जैसे देश ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की अवधारणा को पुष्ट कर रहे थे। वहीं कुछ राष्ट्रों के लिए यह महामारी अवसर था। भारत ने बड़े विश्वास के साथ अपने लोगों को ही नहीं, बल्कि समस्त मानव जाति की रक्षा के लिए उपाय किए। प्रकृति की एक हलचल ने दुनिया के तथाकथित भोग वादी विकास तंत्र की चूलें हिला कर रख दीं। आज पूरे विश्व में बहस चल रही है कि किस प्रकार प्राकृत जीवन दर्शन को अपनाकर विश्व की रक्षा की जाए।

सभी देश भारत की प्राचीनतम पद्धतियों योग, आयुर्वेद जैसी आयुष पद्धतियों को निर्विवाद रूप से अपना रहे हैं। योग का शाब्दिक अर्थ भी जोड़ना ही है। इसलिए योग में ही वह शक्ति है, जो पूरे विश्व को एक सूत्र में पिरो सकता है। भारत ने हजारों वर्षों तक अनेक संकट झेले हैं। लेकिन वह अपने अध्यात्मिक चेतना के कारण हर बार विजेता बनकर उभरा है। यह योग की शक्ति ही प्रतीत होती है कि वर्षों से सुप्त पड़े, भारत की चेतना के ऊर्जा केंद्र धीरे-धीरे जागृत हो रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जब चेतना का यह परिपथ (चक्र) पूर्ण हो जाएगा तो भारत पुन: विश्व गुरु के स्थान पर प्रतिस्थापित होगा तथा हमारा प्रत्येक कार्य मानवता के कल्याण के लिए ही होगा।


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