रवींद्रनाथ टैगोर की रचनात्मक प्रतिभा कविताओं एवं संगीत में सबसे ज्यादा मुखरित हुई है। उनकी कविताओं में नदी और बादल की अठखेलियों से लेकर अध्यात्म तक के विभिन्न विषयों को बखूबी उकेरा गया है तो उपनिषद जैसी भावनाएं भी अभिव्यक्त हुई हैं। साहित्य की शायद ही कोई शाखा हो जिनमें उनकी रचनाएं नहीं हों। उन्होंने कविता, गीत, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि विधाओं में रचना की। उनकी कई कृतियों के अंग्रेजी अनुवाद के बाद पूरा विश्व उनकी प्रतिभा से परिचित हुआ। रवींद्रनाथ के नाटक सांकेतिक हैं। डाकघर, राजा, विसर्जन आदि इसके प्रमाण हैं।
7 मई 1861 को कोलकाता में जन्मे, माता पिता की तेरहवीं संतान साहित्य संगीत तथा कला के क्षेत्र में ‘गुरुदेव’ के नाम से विख्यात रविंद्र नाथ टैगोर ने बचपन में ही ‘होनहार बिरवान के होत चिकने पात’ की उक्ति को चरितार्थ करते हुए आठ वर्ष की उम्र में पहली कविता लिखकर अपने कवि हृदय होने का परिचय दिया तो मात्र 16 वर्ष की उम्र में पहली प्रथम रचना एक लघु कथा के रूप में प्रकाशित हुई। बाद में ‘गुरुदेव’ के नाम से विख्यात हुए रविंद्र नाथ टैगोर ने साहित्य, शिक्षा, संगीत, कला, रंगमंच और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी बहुमुखी प्रतिभा साहित्य कला एवं संगीत के क्षेत्र में वह स्थान प्राप्त किया जो विरले ही प्राप्त कर पाते हैं। अपने मानवतावादी दृष्टिकोण के चलते रविंद्र बाबू को विश्वकवि माना गया है। टैगोर सही मायनों में भारत से पहले विश्वकवि हैं। उनके काव्य के मानवतावाद ने उन्हें दुनिया भर में पहचान दिलाई। दुनिया की अनेक भाषाओं में उनकी रचनाओं का अनुवाद किया गया है। टैगोर की रचनाएं बांग्ला साहित्य में एक नई शैली एवं चिंतन लेकर आई।
एक दर्जन से अधिक उपन्यासों में चोखेर बाली, घरे बाहिरे, गोरा आदि शामिल हैं। रविंद्र नाथ टैगोर के उपन्यासों में मध्यमवर्गीय समाज का बहुत नजदीकी एवं वास्तविकता के साथ चित्रण किया गया है। टैगोर का कथा साहित्य मापदंडों बहुत उच्च स्थान रखता है। समीक्षकों के अनुसार उनकी कृति ‘गोरा’ एक अद्भुत रचना है और आज भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है।
रवींद्रनाथ टैगोर की रचनात्मक प्रतिभा कविताओं एवं संगीत में सबसे ज्यादा मुखरित हुई है। उनकी कविताओं में नदी और बादल की अठखेलियों से लेकर अध्यात्म तक के विभिन्न विषयों को बखूबी उकेरा गया है तो उपनिषद जैसी भावनाएं भी अभिव्यक्त हुई हैं। साहित्य की शायद ही कोई शाखा हो जिनमें उनकी रचनाएं नहीं हों। उन्होंने कविता, गीत, कहानी, उपन्यास, नाटक आदि विधाओं में रचना की। उनकी कई कृतियों के अंग्रेजी अनुवाद के बाद पूरा विश्व उनकी प्रतिभा से परिचित हुआ।
रवींद्रनाथ के नाटक सांकेतिक हैं। डाकघर, राजा, विसर्जन आदि इसके प्रमाण हैं।
भारत के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता टैगोर दुनिया के संभवत: एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया। भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ तथा बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ रविंद्र नाथ टैगोर की ही कलम से निकले हैं। उन्होंने दो हजार से अधिक गीतों की रचना की। रवींद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया है।
टैगोर की प्रमुख रचनाओं में गीतांजलि, गोरा एवं घरे बाईरे प्रमुख हैं उनकी कविताओं में अनूठी ताल और लय है। वर्ष 1877 में उनकी रचना ‘भिखारिन’ खासी चर्चित रही। उन्हें बंगाल का सांस्कृतिक उपदेशक भी कहा जाता है।
1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले महान कवि लेखक नाटककार संगीतकार की उपलब्धियां आरंभिक दौर में कोलकाता और उसके आसपास के क्षेत्र तक ही सीमित रहीं पर गीतांजलि का नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद उनकी ख्याति विश्वव्यापी हो गई उनको अपनी जिस पुस्तक गीतांजलि पर साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला उसकी कहानी भी बड़ी रोचक है।
51 वर्ष की उम्र में रविंद्र नाथ टैगोर अपने बेटे के साथ इंग्लैंड गए और इस यात्रा ने रविंद्र नाथ टैगोर का आभामंडल ही बदल दिया। समुद्री मार्ग से जाते समय उन्होंने अपने कविता संग्रह ‘गीतांजलि’ का अंग्रेजी अनुवाद करना प्रारंभ किया। गीतांजलि का अनुवाद करने के पीछे उनका कोई उद्देश्य नहीं था केवल समय काटने के लिए कुछ करने की गरज से उन्होंने गीतांजलि का अनुवाद एक नोटबुक में लिखना शुरू किया और यात्रा समाप्त होते-होते उन्होंने इस अनुवाद को पूरा भी कर दिया। अनुवाद करते समय टैगोर को किंचित भी आभास नहीं था कि वे एक बहुत महान कार्य करने जा रहे हैं। लंदन में जहाज से उतरते समय उनका पुत्र उस सूटकेस को जहाज में ही भूल गया जिसमें वह नोटबुक रखी थी। इस ऐतिहासिक कृति की नियति में किसी बंद सूटकेस में लुप्त होना नहीं लिखा था। वह सूटकेस जिस व्यक्ति को मिला उसने स्वयं उस सूटकेस को रवींद्रनाथ टैगोर तक अगले ही दिन पहुंचा दिया।
लंदन में टैगोर के अंग्रेज मित्र चित्रकार रोथेंस्टिन को जब यह पता चला कि गीतांजलि को स्वयं रवींद्रनाथ टैगोर ने अनुवादित किया है तो उन्होंने उसे पढ़ने की इच्छा जाहिर की। गीतांजलि पढ़ने के बाद रोथेंस्टिन उस पर मुग्ध हो गए। उन्होंने अपने मित्र डब्ल्यू.बी. यीट्स को गीतांजलि के बारे में बताया और वहीं नोटबुक उन्हें भी पढ़ने के लिए दी। इसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। यीट्स ने स्वयं गीतांजलि के अंग्रेजी के मूल संस्करण का प्रस्तावना लिखा। सितंबर 1912 में गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद की कुछ सीमित प्रतियां इंडिया सोसायटी के सहयोग से प्रकाशित की गई।
लंदन में गीतांजलि की खूब सराहना हुई। जल्द ही गीतांजलि के शब्द माधुर्य ने संपूर्ण विश्व को सम्मोहित कर लिया। पहली बार भारतीय मनीषा की झलक पश्चिमी जगत ने देखी। गीतांजलि के प्रकाशित होने के एक साल बाद 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। टैगोर पहले ऐसे भारतीय थे जिन्होंने पूर्वी और पश्चिमी दुनिया के मध्य सेतु बनने का कार्य किया था। टैगोर केवल भारत के ही नहीं समूचे विश्व के साहित्य, कला और संगीत के एक महान प्रकाश स्तंभ हैं।
1901 में शांति निकेतन की स्थापना कर गुरु-शिष्य परंपरा को नया आयाम देने वाले गुरुदेव ने 2,000 से अधिक गीत लिखे थे जिनका संगीत संयोजन इतना अद्भुत है कि इन्हें रवींद्र संगीत के नाम से पहचाना जाता है। गुरुदेव का लिखा ‘एकला चालो रे’ गाना गांधीजी को विशेष पसंद था।
रवींद्रनाथ को अंग्रेजों ने 1915 में नाइटहुड की उपाधि दी लेकिन जलियांवाला बाग कांड की खिलाफत में उन्होंने उपाधि लौटा दी। रवींद्रनाथ ने अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, चीन सहित दर्जनों देशों की यात्राएं की थी। 7 अगस्त 1941 को रविंद्र नाथ टैगोर का देहावसान हो गया। भले ही भौतिक रूप से उनका शरीर नष्ट हुआ लेकिन उनके रचना संसार ने उन्हें एक कालजयी महान विभूति के रूप में अमर कर दिया है।