आज के आधुनिक युग में पति-पत्नी के रिश्तों के समीकरण बदल चुके हैं। आज पति के साथ-साथ पत्नी भी धनोपार्जन हेतु बाहर नौकरी करने जाती हैं। कहीं कहीं तो पत्नी, पति से अधिक शिक्षित, समझदार व अधिक कमाऊ होती है मगर उसे अपेक्षित सम्मान व सहयोग नहीं मिलता। जब पत्नी को इतना सब करने के बाद भी अपमानित होना पड़ता है, तो कुछ समय तक तो वह इसे सहन करती है मगर जब पति की प्रताड़ना अपनी सीमाएं पार कर लेती है तो वह बरदाश्त नहीं कर पाती और विद्रोह करने पर उतारू हो जाती है। पति को यह बात नागवार गुजरती है और वह उस पर आरोप लगाने शुरू कर देता है। इसकी परिणति अलगाव व तलाक जैसी स्थितियों में होती है।
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एक साथ जीने-मरने की कसमें खाने वाले, दूर तक साथ चलने के वादे करने वाले जीवनसाथी पल भर में ही इतने पराये हो जाते हैं कि एक साथ बिताए मधुर क्षणों को एक पल के लिए भी याद नहीं करते। सिर्फ कटु अनुभवों की स्मृतियां ही शेष रह जाती हैं। इसके पीछे अनेक कारण हैं।
पति का अपरिपक्व होना : कई बार माता-पिता लड़के के आर्थिक रूप से निर्भर होते ही उसकी शादी कर देते हैं जबकि शादी के लिए सिर्फ नौकरी ही नहीं वरन परिपक्व होना भी अति आवश्यक है। मध्यमवर्गीय परिवारों में तो यह स्थिति आम देखने को मिलती है। इस सब का परिणाम पत्नी को भुगतना पड़ता है। मानसिक रूप से तैयार न होने के कारण पति, पत्नी की इच्छाओं, जरूरतों व भावनाओं को भली-भांति समझ पाता नहीं। उसमें पत्नी के प्रति अपनी जिम्मेदारियों की अच्छी समझ न होने के कारण पत्नी लगातार खुद को उपेक्षित महसूस करती है।
उसे लगता है कि पति उसका ख्याल नहीं रखता, उससे प्यार नहीं करता, यहां तक कि कभी-कभी वह यह भी महसूस करती है कि पति को उसकी जरूरत ही नहीं। उसे सिर्फ उस पर जबरदस्ती थोपा गया है। परिणामस्वरूप वे दोनों मानसिक रूप से जुड़ नहीं पाते और या तो कुछ महीनों या वर्षों बाद ही अलग हो जाते हैं या फिर जिन्दगी को एक बोझ समझ कर ढोते चले जाते हैं।
पुरुष होने का दंभ : अधिकांश मध्यमवर्गीय परिवारों के पुरूष पत्नी के समक्ष झुकना कभी पसंद नहीं करते। मसलन यदि पत्नी भी नौकरी करती है तो वे अपने दंभ के कारण उससे सहयोग नहीं करते। उन्हें भय होता है कि यदि वे पत्नी की बातें मानने लगेंगे तो लोग उन्हें ‘जोरू का गुलाम’ जैसी उपाधि से विभूषित करेंगे जो उन्हें कभी गवारा नहीं होगा। उनके मन व दिमाग में व्याप्त ईगो उन्हें पत्नी से दूर ले जाती है ओर वे वैवाहिक जीवन के सच्चे आनन्द से वंचित रह जाते हैं।
पत्नी के गुणों से ईर्ष्या : बहुत-से पुरुष पत्नी के अपने से अधिक शिक्षित, अनुभवी, सुंदर व कमाऊ होने से ईर्ष्या करते हैं व उसे सम्मान देने की बजाय मानसिक प्रताड़ना देते हैं।
यदि अन्य लोग उनके सामने पत्नी की प्रशंसा करते हैं तो वे खुद को अपमानित महसूस करते हैं। पत्नी की किसी उपलब्धि पर उन्हें प्रसन्नता नहीं होती और वे उसके किसी भी कार्य को महत्व नहीं देते। पत्नी कभी कोई स्वतंत्र निर्णय लेती है तो उन्हें नागवार गुजरता है। नतीजा यह होता है कि पत्नी का मनोबल गिर जाता है और वह मानसिक रूप से पति के साथ जुड़ नहीं पाती। यह नहीं है कि पति ही पूर्णतया दोषी होता है। कई मामलों में पत्नी में भी ये सब कमियां पाई जाती हैं। कई महिलाएं आर्थिक रूप से निर्भर होती हैं तो वे पति व ससुराल के अन्य सदस्यों को कोई महत्व नहीं देतीं व उनके प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी पूर्ण रूप से नहीं निभाती।
यदि आप चाहती हैं कि पति आपकी भावनाओं को समझे तो आपको अपनी इन भूलों को सुधारना होगा। सदैव अपने कमाने के लिए यदि आप पति व अन्य सदस्यों को ताने देंगी व उन पर हावी होने का प्रयत्न करेंगी तो आपके शिक्षित होने का उन्हें क्या लाभ? पति-पत्नी में आपसी विश्वास, सूझबूझ व निष्ठा का होना अति आवश्यक है, तभी आप सही तौर पर शिक्षित कहला सकते हैं। एक-दूसरे को अपना हितैषी, सहयोगी व सलाहकार मान कर चलें। एक-दूसरे को पूर्ण रूप से समझने का प्रयत्न करें। छोटी-मोटी तकरार को झगड़े का रूप न दें। आप पाएंगे कि जिन मधुर क्षणों को आपने अपनी-अपनी ईगो के वशीभूत होकर खो दिया, वे कितने आनंददायक हैं।
भाषणा गुप्ता