Thursday, June 8, 2023
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छांव की तलाश

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दीपेश अपने ही धुन में तेज रफ़्तार में हाईवे पर कार चला रहा था कि अचानक गाड़ी बीच सड़क पर रुक गई। उसने बड़ी मुश्किल से साइड में गाड़ी लगाई और उतर कर देखा, तो गाड़ी के कार्बोर्टर में कुछ परेशानी आ गई थी। उसने चारों ओर देखा। कहीं से कहीं तक कुछ नहीं दिख रहा था। गर्मी के दिन और दोपहर का समय। सड़क पर गर्म हवा सांय सांय कर रही थी। रास्ते में उसने कई गाड़ियों को हाथ के इशारे से रोकना चाहा पर कोई गाड़ी नहीं रुकी। स्मार्ट हैंडसम दीपेश की ब्रांडेड सफेद शर्ट पसीने में भीग गई। उसके गोरे चेहरे का रंग तेज धूप से सुर्ख लाल होने लगा। दीपेश कभी गाड़ी में बैठता कभी बाहर गाड़ियों को रोकने की कोशिश करता। उसने कई लोगों को फोन लगाए किंतु शहर से दूर अधिक होने के कारण कुछ ने तो कहा कोशिश करता हूं, पर उनके बोलने से ऐसा लग नहीं रहा था कि वह दीपेश की मदद करेंगे। दीपेश ने एक साइकिल सवार व्यक्ति को रोक कर पूछा-यहां आसपास कोई गाड़ी सुधारने वाला है?

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उसने बताया यहां से पांच-छह किलोमीटर पर एक मैकेनिक की दुकान है। साइकिल सवार बता कर चला गया। उसने सोचा, ऐसे कब तक बैठा रहूंगा, क्यों न पैदल ही चल दिया जाए। कोई गाड़ी मिल गई तो बैठ कर मैकेनिक की दुकान तक तो पहुंच ही जाऊंगा। उसने अपना काला चश्मा पहना और चलने लगा पैदल। कुछ कदम ही चला था कि उसे गर्म हवा (लू) की तपिश से बेचैनी होने लगी। वह आसपास देखने लगा शायद कोई पेड़ दिख जाए, जिसकी छांव के नीचे बैठ थोड़ा सुस्ता लूं, सूरज की तेज तपिश से थोड़ा बच जाऊं।

उसने चारों ओर नजर घुमा कर देखा एक पेड़ भी नहीं दिखा। कभी यह सिंगल रोड हुआ करता था। सड़के दोनों और बड़े-बड़े इस तरह लगे थे कि पूरी सड़क पर छांव रहती थी। जब यह फोन लेन का हाइवे बना, तब हजारों पेड़ काटे डाले गए। अब इस हाइवे सिर्फ धूप दिखती है।

आज दीपेश को चलते-चलते वे दिन याद आ रहे थे, जब उसने लोगों के लिए बड़े-बड़े आलीशान मकान बनाने के वास्ते कॉलोनी बनाई थी। जिसमें सेकड़ो पेड़-पौधे लगे हुए थे। उसने सबके सब कटवा दिए थे। आज दीपेश को नीम व आम की छाया याद आ रही थी। आज उसे चिलचिलाती धूप में महसूस हुआ कि हम जैसे इंडस्ट्रियल लोगों ने अपने लालच में, धरती को सीमेंट कंक्रीट का बना दिया, पेड़ों को कांट-कांट कर धरती की हरी चादर को ही कांट-फाड़ कर नष्ट कर दिया। आज दीपेश को अपनी गलती का एहसास हो रहा था।

वैदेही कोठारी


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